मानव – धर्म
शांत गगन हो, शांत धरा हो,
कहीं भी कोई, असमय न मरा हो ।
दार्शनिकों ने देखा एक संसार,
महापुरूषों ने चलाया एक संसार ।
माँ ने किया बस एक-सा प्यार,
प्रकृति ने दिया बस एक उपहार॥
यह हम सबका एक ही विश्व
हम सब एक, सब कुछ एकत्व
जब सर्वत्र है, एक ही तत्व,
यत्र-तत्र बस रज, तम, सत्व ॥
फिर देर क्या भाई और बहनो,
तोड़ो सीमाएँ दिलों और देशों की ।
कोई नहीं पराया, सभी हैं अपने,
नहीं परवाह अब इन वेशों की॥
पूरा विश्व बस एक ही घर हो,
और उसमें हों अपने ही अपने।
तुमने कभी देखा ऐसा सपना?
मैंने तो देखे ऐसे ही सपने॥
एक हमारी धरती माता हो,
संतान हम उसी की कहलाएँ।
एक हमारा मानव-धर्म हो
उसी के होकर हम रह जाएँ ।।