मनुष्य
हमने उन्हें जाना
तो पाया था
एक नितांत उदार मन
हमने उनकी आँखो में झाँका था
हमने देखे थे
अनगिनत मासूम प्रतिबिंब
हमने उनकी भावनाओं को अनुभव किया था
हमने अनुभव की थी
“वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना
हम निराश हो गये थे
उन्होंने कारण पूछा था
हम चुप हो गये थे
आज, फिर
सामने वही प्रश्न
किंतु उत्तर बदले हुए
एक नितांत स्वार्थी मन
आँखों में अगणित्त काँटेदार जंगल
पूर्ण, परिवर्तन-
एक गुलाब का नागफनी में
"वसुधैव कुटुम्बकम्” का 'एकम् अहम् कारकम्’ में
हमें गर्व है-
वे ‘मनुष्य’ बन चुके हैं
ऐसे मनुष्य
जिन्हें अधिकार है
अब इस दुनिया में
गर्व से जीवनयापन करने का ।