जब सिखाया तुमने मुझे....
जब सिखाया तुमने मुझे गुनगुनाना,
लगा सारा जहाँ बस गा ही रहा है ।
जब सिखाया तुमने मुझे बतियाना,
देखा, आसमाँ, घरा से बतिया रहा है ।
जब सिखाया तुमने मुझे मुसकुराना,
लगा, घर उपवनसब मुसकुरा रहे हैं ।
जब सिखाया तुमने मुझे डगमगाना,
मैंने देखा तुम्हारा शरीर डगमगा रहा है ।
जब सिखायी तुमने मुझे स्वार्थ की बातें,
मैंने पाया स्वार्थ स्वयं चला जा रहा है ।
जब बताया मुझे तुमने अपना-पराया,
तो देखा कि एक परदा-सा उठा जा रहा है ।
जब सिखाया तुमने मुझे भेद जाति, देश का,
मैंने देखा कि सारा जग सिमटा जा रहा है ।