समझ ऐ मानव-मन
समझो, सागर की लहरों में छिपे हुए संदेश को,
हरी वादियों, घटाओं के घनघोर परिवेश को।
स्वच्छ, शीतल पवन की हिलोरों ने कहा है कुछ,
तपता सूर्य, अपनी अग्नि भाषा में कह गया कुछ।
चाँद-तारों की मौन चमक, नहीं है उतनी मौन।
सबकी है अपनी भाषा, पर समझने वाला कौन?
सरिता तुमसे कुछ कहकर आगे बढ़ती रही सदैव।
बूँदें बारिश की भी शोर करती रहीं जब तब।
समझ ऐ मानव मन, इन सब साथियों का मंतव्य।
संभव है छिपी हो तेरी जिज्ञासा और गंतव्या।।