आशा का पाठ पढ़ाना तो सरल है,
आशा जगाना ही कठिन है।
आशा करना तो सरल है,
आशा बनना ही कठिन है।
अपना जानना तो सरल है,
अपना बनाना ही कठिन है।
जिसको अपना कहते हो,
वह देन है तुमको ईश्वर की।
तुमने कितनों को अपना बनाया,
गिनती होगी उँगली-भर की।
आशा करना.............................।
अपना बनाने जिस दिन चलोगे,
पराया न तुम्हें दिखेगा कोई।
सब अपने ही अपने दिखेंगे,
तुममें परायेपन की भ्रम दृष्टि सोई
बस इस परायी दृष्टि का,
उद्गम पहचानना ही कठिन है।
आशा करना........................।
इस उद्गम, भ्रम दृष्टि को,
समूल नष्ट करना तुम्हें है ।
विश्व की अनगिनत समस्याओं
का हल निहित इसमें है।
आशा की यह कल्पना सरल है,
साकार करना ही कठिन है।
आशा करना तो सरल है,
आशा बनना ही कठिन है।
आशा का पाठ पढ़ाना तो सरल है, आशा जगाना ही कठिन है।