प्रथम बूंद अर्ध्य की
आता जब-जब अंधकार
घोर रात्रि का।
जलाते दीप सपनों के
सूरज का होता न पता!
हमारी हर आहट के साथ
जो भी तारा टिमटिमाता
अथवा
चाँद, चाँदनी से
जो भी संदेश भिजवाता।
ये संदेश बनते प्रेरक
रहते अमिट, अमर
स्मृति पटल पर,
जीवन भर !
होता जो विजयी....
अंधकार से निकल
एक प्रकाश किरण बन
अरूणिमा का संदेश दे...
साथ नव आशा के!
वही है वंदनीय
अत:
सूर्य को अर्पित
प्रथम बूँद अर्ध्य की
उसी को समर्पित॥