3 अप्रैल 2022
रविवार
समय 11:35
मेरी प्यारी सखी,
तुम तो जानती ही हो जब हम बच्चे थे, हम पर मार भी पड़ती थी और डांट भी हम लोग खाते थे। पर जब से फरमान आया है बच्चों पर हाथ नहीं उठाना। बस कक्षा में तब से शोर ही शोर है। बच्चे भी अब अध्यापकों की नहीं सुनते।
पापा तो हमारे बोल कर आते थे, चमड़ी चमड़ी मास्टर साहब तुम्हारी, हड्डियां हमारी। जितना ठोकना है ठोक लेना।
मतलब हमारे शरीर का भी हिस्सा बांट कर लिया करते थे।
अध्यापक गण भी इस बात का खूब ख्याल रखते थे। मन भर कर कूट लेते थे हमें। पर आज तो अध्यापकगण हीं बच्चों से डरे डरे रहते हैं।
कुछ दिनों से उछल कूद करने वाला डस्की बेटी का डॉगी बिल्कुल शांत हो गया है। लगातार उसे दिन में 4-5 बार दस्त होने से उसकी ताकत शायद कम हो गई है, वरना तो उसका भागा दौड़ी करना और उसके पीछे हमारा शोर मचाने का मिला-जुला कार्यक्रम सुबह से ही चालू हो जाता था।
डॉक्टर से पूछ कर उसके लिए दवाई लेकर आए। लेकिन समस्या थी उसे खिलाएं कैसे?
दस्त की वजह से खाना भी वह बहुत कम खा रहा था। तो बेटी ने जबरदस्ती उसे पकड़ कर उसके हाथ पैर बांधे और उसके मुंह में चम्मच से दूध में घोलकर दवाई डाली।
बच्चों की तरह वह भी मुंह दूसरी तरफ कर दवाई निकालने की कोशिश करने लगा।
उसे देखकर मुझे अपने बेटे की याद आई। बचपन में वह भी ऐसे ही दवाई पिलाते वक्त मुंह दूसरी तरफ कर दवाई गिरा दिया करता था। पर बिटिया भी हमारी सावधान थी अच्छे से दोबारा उसका मुंह पकड़ लिया, ताकि दवाई गिरा ना सके।
अभी तो शांत बैठा है देखते हैं उसकी शरारतें कब शुरू होंगी।
इतने दिनों से उसके शोर की आदत सी हो गई थी ना। अब शांत है अच्छा नहीं लग रहा।
भगवान करें जल्दी ठीक हो जाए। चलो ठीक है अब चलती हूं।
पापिया