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चटक रही पैरों की घुंघरूबिखर रहा अलते का रंग अधरों पर लाली मुस्काईस्वाभिमान से पुलकित अंगस्याही नई भरे नैनो मेंनई कहानी लिखनी है खोया था अधिकार जो अब तकपाने की ज़िद लिखनी हैसमता का अधिकार हमा

दुल्हन सी लगती थी पहले नई नवेलीअब तो बन गई यह भूतिया हवेली.....उलझ उलझ के सुलझ रही हैबनकर रह गई यह सिर्फ़ एक पहेली.....चांदनी रात हो या हो फिर रात घनेरी ना जाती मैं कभी अब वहां अकेली.....झाड़-फूं

प्रकृति रहस्यमय खजानो से छिपी पड़ी हैविविध रूप व रहस्य इसके अंदर हैंनदी, सागर, महा सागरों,द्वीपो से भरी हैंप्रकृति तरंगों में अवयवों से मिलता आकर्षण हैं सूरज का लालित्य प्रभा वृद्धि कर जाती हैप्र

हज़ारों ख्वाहिशें हैं तुम उन में से एक हो प्रेमिल खयालात हैं तुम उन में से एक हो .....हज़ारों चेहरे हैं दीदार तुम्हारा ही चाहिए लाख सवालात हैं तुम उन में से एक हो.....सुकून तेरी अंजुमन में आ

मैं पानी हूं पानी जिसे लोग शुद्ध नहीं जहरीले बनाने पर लगे होते है,मेरा कोई रंग नहीं होताबात बहुत जरूरी कहता हूं,पत्थर चट्टानों से टकराकर मैं अपनी राह बनाकर बहता हूं, हर प्यासी जुबां पर

शैतान मन चुलबुल सा मेरा हरदम रहता है पागल सा वोउड़ता बादलों में परियों सा वोरहता नींदों में ख्वाबों सा वोबाते करता है अंजान सा वो....शैतान मन चुलबुल सा मेरा कभी कहता कोई किस्सा वोकभी गुनगुनात

रूख गयी हूं अब तेरे दर के सामने इश्कजादे ,अब इश्क करो या दगा यह तुम्हें पता हैं.....इन सुंदर वादियों में कहीं खो जाऊंगी मैं,अब रास्ते में फुल हो या कांटे यह तुम्हें पता हैं.....मैं एक एहसास लम्हा गुजर

हर तरह एक नई चालों का जाल नज़र आता हैं जिधर भी देखो रंजिशो का बवाल नज़र आता हैं.... हर कोई चलता है यहां अपनी अंतिम चाल,सबकी नफरतों का एक जंजाल नज़र आता हैं.... गुजर जाता है जीवन इसी चाल

तुम इतना समझ जाओ कि मैं तुम्हें समझा सकूंगी, कुछ अनसुलझी सी पहेलियों को सुलझा पाऊंगी ।वो मोहब्बत जो तुमने कभी हमसे की ही नहीं, उन गुनाहओ की सजा मैं कब तक निभा पाऊंगी ।उस प्रेम के कसमें वादें

प्यार का कोई मौसम नहीजब हर बात लगे निराली नैनो को अश्रुओं से सींचे जब प्यार दिखे खाली खाली.....                          प्या

जीवन सूत्र 6 सुख और दुख हैं अस्थायी, इनमें संतुलित रहें श्री कृष्ण प्रेमालय में बने कृष्ण मंदिर में रोज शाम को सांध्य पूजा और आरती के बाद संक्षिप्त धर्म चर्चा होती है। आचार्य सत्यव्रत की ज्ञ

समय समय की बात हैताना-बाना रिश्तों कहर पल उलझ ही जाता हैकर लिए हर एक जतन पर कुछ काम ना आता हैअपनी वाणी मीठी कर लीकड़वाहट को दूर कियाछोड़ो मीठा बोलो कड़वा क्यूं सबने मजबूर कियासंयम और शा

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यूं तो-मैं सह लूंगा,तेरे दिये-इस चोट को भी,लेकिन-इसका मतलब,यह नहीं कि-मैं पत्थर हूं,दर्द!तो-मुझे,होगा ही,जैसे-तुमको होता है।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।      &nb

                     राजनीति को परे रखते हुए, ऋण सीमा या ऋण सीमा वित्तीय अनुशासन की अवधारणा है। हालाँकि, सीमा में लगातार परिवर्तन, विशेष रूप से प

जीवन सूत्र 5: शरीर की अवस्था में बदलाव स्वीकार करें        हजारों वर्ष पूर्व श्री कृष्ण के मुखारविंद से कही गई गीता आज भी उसी उत्साह के साथ पढ़ी और सुनी जाती है।आधुनिक संदर्भों में

प्रकृति की ओर से हमें बहुत सारी देने दी गई है। जिनके बिना धरती पर जीवन बिल्कुल असंभव है। उन सभी देनों में से सबसे अनमोल देन है पानी। पानी बिना धरती पर जीवन बिल्कुल असंभव है। पानी मानव की सबसे बड़ी और

हाइकु कविता :- दो जून रोटीहो गयी मोटी,होटलों में  पहुंच।दो जून रोटी,***पाने खातिरवो कत्ल कर देता।दो जून रोटी।।***गरीब से ये,क्या क्या नहीं करातीदो जून रोटी।।***शादी पार्टी में,बहुत इठलाती।दो जून

अभी तक आपने पढ़ा -शब्बो समीर के पापा से छुप -छुपकर मिलने जाती है किन्तु उन्हें उसके विषय में कुछ नहीं मालूम। तब उनकी पत्नी साधना को समीर और शब्बो के रिश्ते में शक़ होता है ,तब समीर उन्हें बताता है कि उस

 आषाढ़ मास के प्रमुख व्रतोत्सव  आषाढ़ मास – 5 जून से 3 जुलाई – के व्रतोत्सव  नारद जयन्ती, गंगा दशहरा, निर्जला एकादशी और वट सावित्री के पर्व मनाते हुए ज्येष्ठ पूर्णिमा के साथ रविवार 4 जून को ज्येष्ठ मा

नवलकिशोर जी के मन में ,आज 'तूफान 'मचा है ,बाहरी वातावरण भी उसके सामने कोई मायने नहीं रखता। वो बस यूँ ही चले जा रहे हैं। कुछ समझ नहीं आता ,कहाँ जाएँ ,क्या करें ? दुनिया में देखा जाये ,तो आज के समय में