रजत ! यह तुम क्या कह रहे हो ? मैंने कभी तुम्हें इस नजर से देखा ही नहीं , मैं तो तुम्हें अपना सबसे अच्छा दोस्त ही समझती हूं।
किंतु मैं तो तुमसे मन ही मन प्रेम करता आ रहा हूं, जब से मैंने तुम्हें देखा है, तब से तुम्हें ही , अपनी जीवन संगिनी बनाने का सपना देख रहा था।
यह बात तुमने मुझसे पहले क्यों नहीं की? मैं तुम्हारी गलतफहमी तभी दूर कर देती।
यह मेरी गलतफहमी नहीं है, मैंने तो तुमसे जब दोस्ती की थी , धीरे-धीरे तुमसे प्यार भी हो गया और अब मैं तुम्हें खो नहीं सकता, तुम्हारे साथ जीने के सपने देख रहा हूं।
किंतु मैं दोस्ती और प्यार को अलग रखती हूं , जिससे हम प्यार करते हैं, उससे वह बात नहीं कह सकते जो हम अपने दोस्तों से कर लेते हैं इसीलिए मैंने दोस्ती और प्यार को अलग-अलग रखा है।
प्यार तो मैं किसी और से करती हूं, किंतु मैं तुम्हें भी खोना नहीं चाहती इसीलिए मैं हमेशा तुम्हें अपने दोस्त के रूप में ही देखना चाहूंगी।
तुम यह क्या कह रही हो ? तुम इस तरह मेरा दिल तोड़कर नहीं जा सकतीं। तुमने मुझे इससे पहले कभी नहीं बताया,कि तुम किसी और से प्यार करती हो , इसका मतलब तुमने मुझे धोखा दिया है।
नहीं ,मैंने तुम्हें कोई धोखा नहीं दिया। नहीं ,मैं तुमसे कभी प्रेम करने के विषय में, सोचा ही नहीं है, क्या कभी तुमसे मैने प्रेम का इजहार किया? क्या तुम्हें मेरी किसी बात से ऐसा लगा कि मैं तुमसे प्रेम करती हूं ?
इतने दिनों से हम लोग साथ रह रहे हैं, एक दूसरे के साथ उठते- बैठते हैं, अपनी बातें शेयर करते हैं, वह प्यार नहीं ,तो और क्या है ?
वह सिर्फ हमारी दोस्ती थी, रजत !तुम मुझे गलत मत समझो !मैं तुम्हें आज भी अपना दोस्त ही समझती हूं और मैं अपने इस दोस्त को खोना भी नहीं चाहती। तुम समझने का प्रयास करो ! कह कर सलोनी वहां से चली गई।
रजत उसे जाते हुए देखता रहा, रजत तो उससे सच्चा प्यार करता था, किंतु कभी इजहार ही नहीं कर पाया उसने सोचा- इशारों में, बातचीत से, कभी न कभी तो सलोनी समझ ही जाएगी किंतु सलोनी जब उसे लगा कि सलोनी उसके प्यार को समझ ही नहीं पा रही है। तब उसने उससे अपने प्यार का इजहार किया किंतु क्या परिणाम निकला ? उससे पहले ही कोई और उसका हमसफर बनने की तैयारी कर रहा था। गलती सलोनी की भी नहीं है, कभी उसने इस विषय में उससे बात ही नहीं की। दुखी हृदय से वह अपने घर लौट आया क्या करता ?प्यार वह तो कर सकता है किंतु किसी से जबरदस्ती, प्यार करवा तो नहीं सकता। आज जो उन दोनों के बीच वाक्या हुआ, उसके कारण रजत थोड़ा हताश हो गया था किंतु वह अपने को धीरे-धीरे संभालने का प्रयास कर रहा था। चलो !कम से कम हमारी दोस्ती ही बनी रहेगी , हमारा मिलना तो होता ही रहेगा। यह संतोष करके रजत कुछ दिनों के लिए अपने मामा के घर चला गया ताकि उसका मन उसके हृदय में आए ,तूफानों में भटके न.......
रजत को अपने मामा के घर आए हुए ,लगभग एक माह हो गया था, तभी उसकी मम्मी का फोन आया रजत तुम्हारी दोस्त सलोनी की शादी है, और उसने तुम्हें भी बुलाया है। शायद रजत को एक उम्मीद थी ,वह भी टूट गई वह उदास बैठा हुआ था। वह मन ही मन सोच रहा था- कि सलोनी को शादी की इतनी जल्दी क्यों है ? कुछ समय और रुक जाती। अब उसके विवाह में जाकर भी क्या हो जाएगा ?वह तो मुझसे दूर चली जाएगी।उसे क्रोध भी आया ,अब क्या मेरे ''जले पर नमक छिड़कने के लिए ''मुझे बुला रही है। उसकी उदासी का कारण उसके मामा के लड़के ने जानना चाहा ,तब रजत ने संपूर्ण बात अपने मामा के लड़के को बता दी।
सकारात्मक सोच रखते हुए उसके मामा ने के लड़के ने उससे कहा -वह तेरी किस्मत पर नहीं थी , किंतु तुम्हारी दोस्ती तो अभी भी है। तू उसके विवाह में जा...... अपनी दोस्ती तो निभा। ईश्वर जो करता है ,अच्छे के लिए ही करता है। अपने मामा के लड़के के कहने पर, रजत ,सलोनी की शादी में शामिल होने के लिए आ गया।
शादी की धूमधाम से तैयारी चल रही थीं , रजत ने सलोनी को, इस तरह सजे हुए दुल्हन के रूप में देखा उसका दिल टुकड़े-टुकड़े हो गया। वह स्वयं सलोनी के सपने देखता था। अब बहुत हो चुका है, वह बर्दाश्त नहीं कर पाएगा। यह सोचकर वहाँ से जाने के लिए अब तैयारी कर रहा था। तभी वहां का माहौल, उसे बिगड़ा हुआ नजर आया। भीड़ इकट्ठा हो गई , न जाने क्या हो रहा है ? सभी मंडप की ओर जा रहे हैं। रजत को पता चला , कि सलोनी का विवाह टूट गया, कारण कोई नहीं जानता था।
कोई कह रहा था - दहेज अधिक मांग लिया होगा। कोई कह रहा था- लड़का सही नहीं है। अनेक तरह की बातें चल रही थीं।
सलोनी के माता- पिता दुखीथे। बेटी का विवाह टूट गया अब इससे कौन विवाह करेगा ? धीरे-धीरे बारात भी लौट गई किंतु सलोनी की आंखों में एक भी आंसू नहीं था। उसे कोई पश्चताप नहीं था। रजत उससे मिलना चाहता था किंतु इतने मेहमानों का लिहाज करके वह कुछ नहीं बोला -वह जानना चाहता था कि आखिर यह रिश्ता क्यों टूटा ?
तभी अचानक रजत के नाम की गुहार लगाई गई ,सब कुछ ठहर सा गया , रजत वहां आकर खड़ा हो गया. सलोनी के पापा ने उससे पूछा-क्या तुम सलोनी से प्यार करते हो ?
जी झेंपते हुए रजत ने , हामी भरी !
क्या तुम ,मेरी बेटी से विवाह करना चाहोगे ?
जी..... रजत कुछ समझ नहीं पाया कि वह क्या जवाब दे ? वह सलोनी से विवाह तो करना चाहता था पर विवाह इस तरह होगा यह उसने सोचा भी नहीं था।
कुछ लोगों ने कहा -यदि प्यार करता है तो विवाह करने में क्या परेशानी है ?
जी मुझे तो कोई परेशानी नहीं है, अपनी बेटी से पूछ लीजिए।
तब सलोनी के पापा ने कहा -उसी ने तुम्हें बुलवाया है। रजत सहर्ष विवाह करने के लिए तैयार हो गया। और उसका सलोनी से विवाह भी हो गया , जो वह चाहता था ,वह हो गया किंतु एक बात उसके, मन में रह -रहकर उभर रही थी , आखिर सलोनी का रिश्ता क्यों टूटा ?
सलोनी ने उसकी शंका का निवारण पहली रात्रि ही कर दिया। बोली-मैं प्रकाश को प्यार तो करती थी किंतु कभी उसे दोस्त नहीं समझ पाई, एक अलग ही डर था हम दोनों के बीच ,हम दोनों ही अजनबी से थे। कभी-कभी मैं प्रकाश में तुम्हें ढूंढती , अक्सर मैं उससे तुम्हारी बातें करती , जब मैं उससे तुम्हारी बातें करती तो वह चिढ़ जाता था और कहता - जब तुम उसके व्यवहार से इतनी प्रभावित हो , वह तुम्हें अच्छे से समझता है, तुमसे प्यार भी करता है , तब तुम उसी से विवाह क्यों नहीं कर लेतीं ?'' मुझे रजत बनाने का प्रयास मत करो ! मुझे लगता है ,हम दोनों का विवाह नहीं चल पाएगा क्योंकि प्यार में पहले दोस्ती होना जरूरी है, एक दूसरे को समझना जरूरी है ,तभी हम विवाह के रिश्ते को और प्यार के रिश्ते को आगे बढ़ा पाएंगे।मुझे लग रहा था ,यानि आभास हुआ ,मैं प्रकाश से ज्यादा तुम्हें 'मिस 'करूंगी , यह सोचकर, हम दोनों ने ही आपसी सहमति से, विवाह तोड़ दिया। वह चाहती तो पहले भी विवाह तोड़ सकती थी किंतु वह रजत को भी परखना चाहती थी कि ऐसे समय में उसके साथ में खड़ा होता है या नहीं।
रजत ने पूछा -फिर क्या हुआ ?
फिर क्या होना था? तुम परीक्षा में पास हो गए जिससे दोस्ती की है ,वही प्यार करें उसी से विवाह भी हो जाए ,इससे बेहतर और क्या होगा ?'जो तुम्हारे लिए अपनी अपना जीवन ही दाव पर लगा दे ,कहकर सलोनी व्यंग्य से हंसने लगी।