हमें जिंदगी में लाना होगा भरोसा जो कदम कदम पर जिंदगी की आहट को उमंगो की तरह पिरो दे, और वह अर्थ खोजना होगा जो मनुष्य को मनुष्य होने की प्रेरणा दे।वह लम्हे चुरा
यह!नशे से,कमतर,बिल्कुल नहीं।जो-भीख की तरह,मांगने पर भी,नहीं मिलता।ऐसी!लत है यह,जो लग जाय,तब!छुड़ाने से भी,न छूटे।क्योंकि- यह प्रेम हैजो!अपूर्ण है,अपनी ही,लिखावट में।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर
मतदान जरुरी हैसंविधान की रक्षा के लिए ये हमाराअधिकार ही नही है क़ानून व्यवस्था के लिए मतदान जरुरी हैभारत के विकास के लिएसम्मान के साथ एक नये बदलाव के संग मतदान सबके लिए जरुरी&n
माता-पिता और बड़ों की बातें, समझो आशीर्वाद, बीते समय के साथ में, बहुत आयेंगे याद । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
पिता पुत्र को टोंकता, यह कीजो वह नाय, अपनी गलती के सबक, बेटे को समझाय। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
सोया, खाया, करता रहा, अमूल्य समय बर्बाद, अस बालक सूखे तरु, चाहे जो डालो फिर खाद। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
चैन दिवस का उड़ गया, उड़ी रात की नींद, ऐसे बालक से रखो, आगे बढ़ने की उम्मीद । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
वो मेरा नहीं हो सकता तो क्या हुआक्या इतनी सी बात के लिए उसे चाहना छोड़ दूं
कभी अघाया न थका, देते तुम्हें मन की पीर, छह गज राखो फ़ासला, जाओ न उसके तीर । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
जो विपत्ति में साथ दे, उसे नहीं बिसराओ, काँधे से काँधा दो मिला, जब भी मौका पाओ। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
जो जन समय निकाल ले, आपकी खातिर आज, उसको कभी न भूलियो, उसको रखियो याद । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
समय बड़ा बलवान है, देत पटखनी जोर, कभी ग़रीब की आँख का, नहीं भिगोना कोर । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
रजत ! यह तुम क्या कह रहे हो ? मैंने कभी तुम्हें इस नजर से देखा ही नहीं , मैं तो तुम्हें अपना सबसे अच्छा दोस्त ही समझती हूं। किंतु मैं तो तुमसे मन ही मन प्रेम करता आ रहा हूं, जब से मैंने तुम्हें
बदल रही है,दुनिया! बदल गया है,देश!आखिर देखो-हमने भी,अब! बदल लिया, परिवेश!तुमने! बढ़ाया जबसे, मुझसे,फासला! गलतफहमियां हमारी! तब से, तरक्की कर ली हैं।और तभी से,दी
आओ पास बैठो तुम्हारी सारी शिकायतें सुनेंगे हम,यूँ दूर - दूर रहने से एक दिन बहुत दूरियाँ बढ़ जाएंगी...
सपनो को सवार ने के लिये. कूच्छ काम करता जा. अपनो के खुशी के लिये कुच्च लिखता जा . &n
जात-पात देखो नहीं, न मजहब, पंथ या धर्म, प्रत्याशी को वोट दो, देख के उसके कर्म । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
जात-पात की बात जो, देता रोज बताय, उस पर झाड़ू फेर दो, कितना भी बहकाय । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
प्रणाम सिस्टर, Yes, हम वही देखे जो देखना चाहते है । हम वही बोले जो सकारात्मक है। हम वही सुने जो सत्यता की ओर ले जाए जिस तरह से एक बच्चा रेत से सीपी को चुन लेता है
मैने मुस्कुरा कर जीत लिया दर्द अपना लोग मुझे दर्द देकर भी मुस्कुरा ना सके