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सुरक्षा गार्डों को निर्देश देते हुए आज पहली बार विक्रम ने रश्मी को देखा था। उसे देखते ही वो मंतर मुग्ध हो गया था। जैसे उसी की तलाश हो उसे । ये गर्ल्स कॉलेज है सुरक्षा में कोई चूक नहीं होनी चाहिए। आज स

कुछ समय पहले श्रद्धा की बहन सौम्या की शादी शेखर से हुई थी। सौम्या बहुत खुले विचारो वाली लड़की थी. शादी के बाद भी उसका अपने दोस्तों के साथ घूमना फिरना। वो बेपरवाह सा स्वभाव था। वो अक्सर मायके आ जाया कर

अनबनी बारिश है कुछ ऐसी, जिसका कुछ पता नहीं। कब बरसे, कब निकल जाए सूरज। गर्मी का मौसम, उम्मीद जगाते बादल। न जाने कब बरस पड़े, लेकर ठंडी हवा का कलेवर। अनबनी बारिश है कुछ ऐसी, जिसका कुछ पता नहीं। बूंदा ब

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*मानव जीवन प्राप्त करके प्रत्येक मनुष्य को सत्कर्म एवं परमार्थ करने का प्रयास करना चाहिए ।  इस जीवन में कोई भी मनुष्य कर्म करने से नहीं बच सकता या यह कहा जाय कि निरंतर मनुष्य के द्वारा कर्म किए ज

हम मोहब्बत को तो प्यारे हो रहे हैं हम ये कैसे सीधे साधे हो रहे हैं वो हमे भी मार डालेगा कभी तो हम भरोसे जिसके सारे हो रहे हैं

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 आज रविवार की इत्मीनान वाली सुबह में घर की बालकनी में हल्की ठंडक के बीच गरम चाय की चुस्कियां लेते हुए अखबार पढ़ रहे थे| अन्दर के किसी चौथे पांचवे प्रष्ठ पर छपी एक छोटी सी ख़बर को पढ़ कर पहले आगे बढ़ गए|

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जब!दिल से,आवाज आती है,किसी नाम की,इसकी धड़कन! बढ़ जाती है।यह दिल! यूं ही- नहीं धड़कता, हर किसी के लिए।यह जिसका,तलबगार  होता,उसी के लिए, धड़कता है।क्योंकि- इसका भी,&n

एक था जादूगर, दिखाता था वो रंगीन दुनिया। खेत खलिहान, और दूध की नदियां। चारो ओर खुशियों, की बहार। जादूगर का जादू, थे जो कुछ खास। रहते थे जो सदा, उसके पास। करता था उन पर ही काम, बाकी सब मुरख और अनजान। ज

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बढ़ना ही है,तो बढ़ो!तुम!नदी की तरह।एक!जुनून के साथ,अपनी-मंजिल पाने के लिए। बहती नदियों को,कभी कोई!राह! दिखाया है?समुद्र से-मिलने के लिए।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।&n

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बढ़ना ही है,तो बढ़ो!तुम!नदी की तरह।एक!जुनून के साथ,अपनी-मंजिल पाने के लिए। बहती नदियों को,कभी कोई!राह! दिखाया है?समुद्र से-मिलने के लिए।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।&n

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 हाल ही में एक फिल्म रिलीज़ हुई है “हीरामंडी”| हालाँकि मैंने वो फिल्म अब तक देखी नहीं है, लेकिन जैसा कि प्रचारित है कि ये फिल्म वेश्याओं पर आधारित है| इस विषयवस्तु पर फिल्म बनाने पर किसी को कोई आपत्त

*पहली ड्युटि*हम सबको पता है कि भारत के बाकी सभी पर्वों की तरह चुनाव का पर्व भी अहम होता है। लोकतंत्र और चुनाव दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। इसलिए एक लोकतांत्रिक देश में हर दूसरे-तीसरे साल इस पर्व से स

हम बने ,सुख -दुख के' साथी !साथ हमारा जैसे दिया और बाती। साथी बने तुम, जीवन भर के लिए ,रहें संग,तन में जैसे,श्वांस आती जाती। हवा के झोंके से, तुम जीवन में आए , साथ रहा, जैसे रात्रि आती -

हर रिश्ते का नाम हो, यह जरूरी तो नहीं! कुछ बेनाम रिश्ते, रुकी हुई जिंदगी को साँसे दे जाते है!!                        

एहतियात बहुत जरूरी है! चाहे सड़क पार कर रहे हो या हद!!                  

*बुन्देली दोहा प्रतियोगिता-162**संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़शनिवार,दिनांक - 04/05/2024*बिषय - ' सुड़ी '**1*रेंन,कनक,कै हो कुदइ,जादाँ नहीं खटात।मइँनन जो भरके

साथी मेरा, प्यारा मन। रहता हरपल, साथ हरदम। कभी दुलारे, कभी निहारे। कभी पुकारे, सुन हमदम। बाहरी साथी, छोड़ते साथ। छोड़ देते, पकड़ा हाथ। तोड़ते दिल, तोड़ते जज्बात। मेरा मन, न छोड़े साथ। न तोड़े दिल, न छ

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मेरा!प्रेम ही,तुमसे- आज तक, मेरे डरने का,कारण रहा।लेकिन- तेरा मुझसे,न डरने का कारण,क्या रहा?मैं आज तक,नहीं समझ न सका।इसी-ऊहापोह में,जहां का तहां- पड़ा रहा मैं!धीरे-धीरे, होता

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भावना के,भाव का,अभिषेक हो,तुम!अंतर्मन में,आस्था की,उपासना हो,तुम!मुश्किलों में,साहसों का,उत्साह हो,तुम!जो होगा,अच्छा ही होगा,यह देव वाक्य हो,तुम!फुर्सत के,अकेलेपन की,सारी याद हो,तुम!गुजरे हुए, लम

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