मनुष्य की दो अवस्थाएँ है !
एक अवस्था है विचार की !
और एक अवस्था है निर्विचार की!
जब हम विचार की अवस्था में होते है... !
तब मन में तूफ़ान चलते रहते है ! मन का आकाश सदा बदलिओं से भरा रहता है !
उहापोह , अनंत विचार !
एक भीड़ मन में लगी रहती है !
एक बाज़ार भरा हुआ है !
यह विक्षिप्त जैसी दशा है !
एक दूसरी अवस्था है निर्विचार की !
जहां बाज़ार खाली हो गया ,
दुकाने बंद हो गयी, विचार जा चुके !
*lसन्नाटा हो गया ! चुप्पी हो गयी !
जब हम विचार से भरे होते है, तब तक दुविधा से जुड़े रहेंगे !
जैसे ही हम निर्विचार हुए कि विवेक से जुड़ गए !
आप विचारो से खाली हुए कि विवेक का द्वार खुला !
हमारे विचार दुधारी तलवार होती है, औऱ हमें वैसा ही उसका प्रयोग करना होगा।
जीवन में जो कुछ भी अप्रिय घटे उसका दोष किसी दूसरे को दे देना... यह तो विचारों नकारात्मक उपयोग हो गया ??
इसके अलावा हम विवेक से समस्या के कारण खोजें स्वीकार करें और उनमें सुधार करें बस मंजिल पा लें.. !!