बहस चल रही है की हिन्दी में बेस्ट सेलर क्यों नहीं! प्रासंगिक विषय है और विचारणीय भी !जो इस राह से गुजर रहे हैं वो इसको बेहतर समझ सकते हैं और समझा भी ! अनुभव से प्रमाणिकता आती है !
इसमें कोई शक नहीं की वामपंथी गैंग ने प्रकाशक के साथ मिल कर सिर्फ उसी हिन्दी लेखक को आगे प्रमोट किया जो उन्हें पसंद हों ,मतलब जो उनकी विचारधारा से हो ! इसमें इन्हे फायदा था ,स्वाभाविक है ,इनका मठ फलता फूलता ! प्रकाशक भी इनके साथ सिर्फ इसलिए चिपके रहे क्योंकि उनकी किताबें थोक में खरीदने वाले इसी गैंग के थे !अब थोक खरीद में कितना कचरा बेचा -खरीदा जाता है हम सब जानते हैं फिर चाहे वो फल-सब्जी-अनाज हो या साहित्य ! इन्होने बाजार में बेचने की कभी कोशिश नहीं की ! जब लाइब्रेरी में बेचने से लखपति-करोड़पति बना जा सकता है तो फिर बाजार की क्या जरूरत !बहरहाल जो अच्छा लिख सकते थे या तो भाग खड़े हुए या फिर हतोत्साहित होकर लिखना छोड़ गए ! जिसका नुकसान हिन्दी पाठक को हुआ और वो अंग्रेजी पढ़ने के लिए मजबूर हुआ !
एक क्लासिक उदाहरण है ! जब मैंने लिखना शुरू किया उस समय हिन्दी के लटके झटके से वाकिफ नहीं था ! दो साल के अतिरिक्त मेडिकल अध्ययन अस्पतालों के चक्कर तथा कई बीमार परिवार से अनुभव आदि की कड़ी मेहनत से मैंने पहली उपन्यास " बंधन " लिखी! यह एक बेहतरीन उपन्यास है ,स्वयं कहना उचित नही मगर इस बात से अंदाज लगाया जा सकता है की इसे कुछ ही समय बाद हिन्दी के नंबर एक प्रकाशक राजकमल ने छापी और फिर कई भाषाओं में अनुवाद छपा !हिन्दी में भी इसके कई सस्करण छपे !लेकिन इसे हिन्दी के मेन गैंग ने स्वीकार नहीं किया !अपने स्वतंत्र मिजाज के कारण मैं भी कभी स्वीकार्य नहीं हो पाया ! जिसका खामियाजा मुझसे अधिक मेरी किताबो ने भोगा! मेरी जगह कोई और होता तो छोड़कर भाग जाता चूंकि लेखन मेरी रोजी रोटी नहीं , मैं अब तक टिक पाया वर्ना !
खैर ," बंधन " जब कुछ विशेष दोस्तो के हाथ लगी तो उनका कहना था की अगर ये अंग्रेजी में छपती तो बेस्ट सेलर होती !अंग्रेजी के बेस्ट पब्लिशर रूपा को संपर्क करने पर उन्हें ये किताब पसंद आई और उन्होंने इसे अंग्रेजी में eternal bonds नाम से छापी तो ये बाजार में उपलब्ध हो पाई !वर्ना हिन्दी की किताबें तो दुकानों में मिलती ही नहीं !अंग्रेजी में छपने का फायदा ये हुआ की वो पाठक जो अच्छी हिन्दी पुस्तक पढ़ना चाहते थे उन्होंने मेरी अन्य पुस्तकें पढ़ी !मेरी एक और उपन्यास " हॉस्टल के पन्नो से " पढ़ कर कईओं ने कहा की ये चेतन भगत की थ्री इडियट से कहीं बेहतर और बड़े फलक की उपन्यास है !दोनों करीब करीब एक समय ही आई थी ! मगर एक पर फिल्म बन गई और एक अंधेरे में ! चूंकि ट्रांसलेशन के बाद वो बात नहीं आ पाती जो मूल भाषा में होती है ,मुझे कईओं ने अंग्रेजी में लिखने की सलाह दी ! लिख तो मैं अंग्रेजी में भी सकता हूँ मगर दिल सिर्फ और सिर्फ हिन्दी में बात करता है, रोता हँसता सोचता है ,और मैं सिर्फ बेस्ट सेलर बनने के लिए अपना आनंद नहीं छोड़ना चाहता ! ये तथाकथित बेस्ट सेलर भी समय के साथ कितनी जल्दी मिट्टी में मिल जाते हैं ये उनसे पूछो जो चेतन भगत की किताबें पढ़ कर अगले दिन रद्दी में बेंच देते हैं !मेरी कोशिश है की मैं अगले दिन रद्दी में ना फेंका जाऊं बल्कि पाठक के दिल में बस जाऊं , फिर चाहे वो दो चार पढ़ने वाले ही क्यों ना हों !