वेदों को श्रुति कहते हैं जिसका अर्थ है 'सुना हुआ'।वेदों को अपौरुषेय (जिसे कोई व्यक्ति न रच सकता हो ) यानि ईश्वर कृत माना जाता है ! असल में ये महान ग्रंथ स्मृति हैं यानि मनुष्यों की बुद्धि -स्मृति पर आधारित।सरल शब्दों में कहें तो इसकी रचना धीरे धीरे समय के साथ संस्कृति और सभ्यता के विकासक्रम के साथ साथ होती चली गयी , जिसका लिखित संकलन (क्योंकि लिखने की कला का विकास बाद में हुआ )सदियों के बाद आया होगा ! वैसे भी 'वेद' शब्द संस्कृत भाषा के 'विद्' से बना है, इस शब्द को समझने के लिए इससे बने विद्यार्थी को समझते हैं तो फिर ये आसान हो जाएगा ! विद्यार्थी वह होता है जो कोई चीज सीख रहा होता है ! इस तरह वेद का शाब्दिक अर्थ 'जानने वाला ग्रन्थ ' या बेहतर शब्दों में 'ज्ञान के ग्रंथ' हैं, इसी से 'विदित' (जाना हुआ), 'विद्या' (ज्ञान), 'विद्वान' (ज्ञानी) जैसे शब्द आए ।
ये शब्द अपने शब्दार्थ के साथ अपनी कहानी खुद बयान करते हैं मगर पश्चिम के तथाकथित विद्वान हमारे कुछ बिके हुए इतिहासकारों के साथ मिल कर वेदों की रचना का समय काल और वैदिक काल को पता लगा कर बतलाने का एक षड्यंत्र पूर्ण कार्य पिछली कुछ शताब्दी से कर रहे हैं , जिससे ये ग्रन्थ अति प्राचीन ना रह जाए और यह सिद्ध किया जा सके की आर्य बाहर से आये थे ! और इस तरह एक अति प्राचीन सभ्यता के गौरवपूर्ण संस्कृति को धूमिल और भ्रमित किया जा सके ! और फिर बाद में इन में कमियों को जबरन दिखा कर इनके मानने वालों में निम्न होने की भावना और हेय दृष्टि पनप सके ! जिससे तुलनात्मक रूप से वे (पश्चिम वाले )श्रेष्ठ साबित हो जाएँ ! ये अपने से बड़ी लकीर को मिटा कर छोटा करने की साजिश है !ये बड़ी लकीर अर्थात श्रेष्ठ होने का अहसास क्या क्या गुल खिलाता है समझना कोई बहुत मुस्किल नहीं ! आज हम पश्चिम के सामने नतमस्तक हैं और उनके पीछे भाग रहे हैं , क्या यह सच नहीं ?