कमरों में एसी के सामने उसकी ठंडी हवा का मजा तो रोज लेते हो , कभी कमरे से बाहर जाकर एसी के पीछे दो मिनट भी खड़े होकर देखा है की वो हवा कितनी गर्म फेकता है ! कभी गलती से एसी के पिछवाड़े के सामने पड़ गए तो तुरंत वहाँ से हठ कर फिर से कमरे में घुस जाते हो ! और फिर चीखते -चिल्लाते हो ,'कितनी गर्मी है , ओह माय गॉड '! अरे भाई भगवान को क्यों बीच में लाते हो , ये तो तुम्हारे द्वारा की गयी गर्मी है ! मगर नहीं , हमें क्या करना है बाहर की गर्मी से , हमारा तो कमरा ठंडा रहे , हमें बस कुछ और नहीं सोचना-समझना !
ये है भोग संस्कृति का छोटा सा उदाहरण ! ऐसे और कई हैं,
घर को साफ़ करके कचरा बाहर सड़क पर फेंक देना !
अमीर बनने के लिए कईओं को गरीब बना देना !
मेरा सिर्फ एक मकान नहीं बल्कि हर शहर में घर बन जाए फिर चाहे कई बेघर रहें !
हर घर में मार्बल से लेकर सागौन का भरपूर सुविधा-सौंदर्य हो फिर चाहे पहाड़ गायब -जंगल सूख जाएँ !
मैं दिन भर खाता रहूँ फिर चाहे कई भूखे सो जाएँ !
मेरे पास सैकड़ो कपडे हों फिर चाहे कई नंगे घूमे !
मेरा कुत्ता दूध पिए फिर चाहे इंसान के कई बच्चों को साफ़ पानी भी नसीब ना हो !
हर कदम पर मिल जाएगी , हमारी आधुनिक जीवन शैली की ये सोच ! अरे मूर्ख ,अंदर ठंडी के लिए बाहर गर्मी करना , मतलब असंतुलन !कब तक और कहाँ तक घर-कमरे के भीतर रहोगे , कभी तो बाहर निकलोगे तुम ! इस असंतुलन के दुष्परिणाम को जितना जल्दी समझ सको तो समझ लो, वर्ना ......