कई बार मन में सवाल उठता है की आखिरकार एक ही देश और काल में पैदा हुए पले -बढे, वही हवा-पानी-भोजन और फिर दोनों के खून का रंग भी वही लाल, फिर एक आतंकी और एक संत कैसे बन जाता है ? और इन आतंकियों की संख्या अचानक क्यों बढ़ती जा रही है ? जवाब में हम एक धर्म विशेष और उसकी शिक्षा को दोष देकर अपना पिंड छुड़ा लेते हैं !मगर क्या सिर्फ इतना ही सच है ? यह सच तो है लेकिन अगर विस्तार से जानेंगे तो अधिक बेहतर ढंग से समझ सकेंगे जिसका असर प्रभावी और दूरगामी होगा ! इसके लिए हमें हिन्दू संस्कृति की पौराणिक कथाओं को पढ़ना होगा, जिसकी हर कहानी में राक्षस और देवताओं को दिखाया जाता है जिनके बीच हमेशा युद्ध होते रहता है ! इन सब कहानियों में अंत में किस को हर बार विजयी दिखाया जाता है ? देवताओं को,फिर चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े, क्यों? जिससे समाज में सदा देवताओं का राज रहे !राक्षसों और शैतानों का नहीं ! जिससे देवता गुण वाले प्रोत्साहित हों और राक्षसी प्रवत्ति के लोग निरुत्साहित किये जा सके!
असल में ये देवता और राक्षस हर एक मनुष्य के अंदर हैं !जिनके बीच युद्ध,जिसे हम अन्तर्द्वन्द्व कहते हैं ,होता रहता है !सनातन संस्कृति में देवताओं की जीतका मनोवैज्ञानिक और दूरगामी असर, हमारे मन मस्तिक पर ,जाने अनजाने पड़ता रहता है ! इसके लिए महान ग्रंथों ने सतत प्रयास किये ,कहानी सुना सुना के !जहां हर कहानी में एक सन्देश होता ! सुख शांति संतोष का पाठ पढ़ाया जाता ! उठते बैठते सोते जागते, जीवन के हर महत्व्पूर्ण घटनाक्रम में ऐसा कुछ किया जाता की आपके अंदर का देवता जागता रहे और शैतान सोता रहे !वर्ना वही शैतान फिर आप के हाथों क्या क्या कर सकता है ,यह भी बताया गया ! देवता अर्थात हमारे अंदर बैठी अच्छी आत्मा की क्या क्या कमजोरियां हैं ,उससे निपटने के उपाय भी बताये जाते ! देवताओं की निष्क्रियता ,सदा सुख भोगने की चाहत,युद्ध अर्थात संघर्ष से दूर रहने की प्रवत्ति ! यह हम आज भी अच्छे लोगों में देख सकते हैं,हममें कभी जल्दी एकजुटता नहीं हो पाती !दूसरी तरह राक्षस कुटिल ,कपटी ,मायावी ,अत्याचारी,धूर्त,व्यभिचारी, हिंसकऔर पापी, ऊपर से सदा एकजुट ,चाहे तो अपने आस पास नजर डालकर देख लीजिए !
ये पौराणिक कहानियां ,जो सदियों तक पढ़ाई गयीं ,मगर इस युग में हमारे तथाकथित सेक्युलर बुद्धिजीवियों ने इसकी हंसी उड़ा-उड़ाकर, इनके प्रमाणिक होने ना होने पर बहस करके, इनमे छिपे गूढ़ सन्देश से हमें दूर कर दिया! जिसका खामियाजा ये पीढ़ी भुगतने को अभिशप्त है !अब तो राक्षसों की कहानियां पढ़ाई जाती,उनका महिमामंडन होता ! तथाकथित धर्म अपने प्रचार-प्रसार के लिए तमाम अधर्म करने की प्रेरणा दे रहा है ! वो आप के अंदर बैठे देवता को मार रहा है और जानवर को बढ़ावा दे रहा है ! जंगली जानवर बनना भी अच्छा लगने लगा है ! आप के अंदर के शैतान को जगा दीजिये फिर देखिये आप क्या करते हैं ! यही नहीं , फिल्म और साहित्य में भी कला और स्वतंत्रता के नाम पर खलनायक को हीरों बनाया जाने लगा ! समाज के हर क्षेत्र में राक्षस तेजी से प्रगति कर रहे हैं और प्रतिष्ठित हैं !बाजार सिर्फ जीत को मानता है जीवन मूल्य को नहीं ! तो इन सब बातों का असर तो फिर प्रतिकूल होगा ही ! समाज में राम और रावण तो हर काल में होते हैं ! सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है की आप का समाज राम के लिए है या रावण के लिए ! वो किसको अपना हीरो मानता है ! आप राम बनने की शिक्षा देते हो या रावण बनने की ! आप के अनुयायी तो फिर उसी का अनुसरण करेंगे !और यही हो रहा है !