इस्तांबुल के एयरपोर्ट में बम धमाका , यह तुर्की में कैराना के एडवांस मॉडल के आगमन की सूचना है ! कैराना के कई मॉडल हैं , पाकिस्तान से लेकर सीरिया तो बांग्लादेश से लेकर इंडोनेशिया !
कैराना नाम नहीं बल्कि प्रतीक है, जो हर शहर हर देश में अलग अलग रूप अलग अलग अवस्था में है ! ये समाजीक व्यवस्था का वो मॉडल है जो धर्म के पहिए पर सवार होकर तेजी से अपना विस्तार कर रहा है ! ये संक्रमण के उस रोग की तरह है जिसके रोगाणु समाज के हर क्षेत्र में प्रवेश कर तेजी से अपना प्रभाव जमा कर उस पर कब्जा कर लेते हैं ! भारत में राजनीति से लेकर कला साहित्य यहाँ तक की बॉलीवुड में भी ये अपनी तरह से अपना प्रभाव जमा रहा है ! क्योंकि ये अपने जन्म से ही विश्व पर कब्जा करना चाहता है इसलिए इसका दखल विश्व स्तर पर है ! है ! ये एक सामाजिक रोग है जिसके लक्षण कैंसर की तरह हैं ! यह तेजी से फैलता है और प्रभावित हिस्से को अंत में काट कर फेकना ही पड़ता है ! ये कटे हुए रोग ग्रस्त अंग बाद में भी किसी और के भी किसी काम के नहीं रहते !
जैसे कैंसर का कोई इलाज नहीं है इसका भी नहीं है ! कौन करेगा इसका इलाज , धर्म ? वो क्यों इसका इलाज करने चला ,उसी का तो ये पैदा किया और पालापोशा हुआ है ! उसका तो शासन है विभिन्न कैराना पर ! प्रजातांत्रिक राजनेता? वो भी क्यों ईलाज करने चला, उसे तो कैराना की एकजुट भीड़ मिलती है, फिर चाहे वो भारत हो या इंग्लैंड ! वो तो चाहता है की अधिक से अधिक कैराना बने और उसका काम आसान हो ! तो क्या कोई तानाशाह करेगा इसका ईलाज ? ये व्यवस्था तो उल्टे तानाशाह पैदा करती है ! हाँ विरोधी विचारधारा वाला तानाशाह हो तो बात अलग हो सकती है, मगर वो भी इसे कुछ समय तक दबा सकता है, जैसेकि चीन ! मगर वो खुद भी तो अपने किस्म के कैराना के लिए ही जाना जाता है ! वैसे भी एक किस्म के कैराना की जगह दूसरा कैराना बना लेना यह कोई समाधान नहीं ! विश्व अब तक इसका इलाज एलोपैथी की तरह कर रहा है, जिसके फायदे कम साइड इफेक्ट अधिक हैं ! क्या विकास से इसका इलाज संभव है ? बिल्कुल नहीं , कम से कम भौतिक विकास तो इसका समाधान नहीं ,अगर होता तो फ्लोरिडा से लेकर पेरिस शूटआउट में ये सफल नहीं हो पाते ! हाँ इसका इलाज सिर्फ और सिर्फ मानसिक विकास में है ! असल में तो कैराना हम सब में हैं ! असुर गुण हरेक मानव के भीतर हैं ! इसे संस्करों से,बौद्धिकता से , मानसिकता से, विचारधारा के प्रभाव से , संक्षिप्त में कहें तो मनुष्य के मानसिक विकास से नियंत्रित करना संभव है ! जिस तरह से आयुर्वेद में रोग के मूल कारणों को पनपने ही नहीं दिया जाता शरीर को स्वस्थ और सक्षम बनाया जाता है जिससे वो रोग से लड़ सके ! ये काम होता है, चिंतक का, लेखक का, जो सच को सच बता सकें ! विश्व अपने समय के बौद्धिक नेतृत्व की तलाश में है ! भारत की सनातन संस्कृति, सह अस्तित्व और विश्व शांति की जनक , इसका समाधान हो सकती थी, दुर्भाग्य से भारत खुद अपने कैराना से जूझ रहा है !