तिब्बत और कश्मीर
दोनों आसपास हैं और दोनों , पिछली शताब्दी में ,एक ही तरह की समस्या से गुजरे हैं ! पहले तिब्बत बाद में कश्मीर ! तिब्बत में बुद्धिज़्म सैकड़ो वर्षों से है ! जिसका मूल मन्त्र है ध्यान और अहिंसा ! शांतप्रिय लोग हैं, मगर वहाँ क्या हुआ ? इतिहास गवाह है ! चीन की विस्तारवादी कट्टरता के आगे, कैसी अहिंसा और कैसी शांति ? दलाई लामा को सब कुछ छोड़ कर भागना पड़ा ! वो भी ऐसा की पिछले साठ सालों में वापस लौट नहीं पाये और अब लौटने की कोई उम्मीद भी नहीं ! फिर बेशक अमेरिका इंग्लैंड फ़्रांस रशिया घूम घूम कर मदद मांगते रहे ! इतनी कोशिशों के बाद अब तक क्या हुआ? कुछ नहीं, सच कहें तो यूं ही चलता रहा तो कुछ होगा भी नहीं ! जो अपनी मदद खुद नहीं कर सकते उसे दूसरा कोई मदद नहीं करता ! दलाई लामा ने शांति का पाठ तो पढ़ा और पढ़ाया भी ,मगर शायद यह पढ़ना-पढ़ाना भूल गए की अगर आपका पड़ोसी अशांति का पाठ पढ़ने वाला है और वो आपके घर में भी अशांति फैलाना चाहता है तो उसे कैसे रोके ? तिब्बत में ऐसी अमानवता की गयी थी की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता ! मगर ना दुनिया रुकी ना वो किसी के लिए रुकती है ! जो ज़िंदा हैं , चल सकते हैं, वो चलते रहते हैं ,जो छूट जाते हैं ,वो पीछे धीरे धीरे गुम हो जाते हैं !
कश्मीर ने तिब्बत से कोई सबक नहीं लिया ! दिन रात ज्ञान की बात करने वाले कश्मीरी पंडित अपना क्षत्रिय धर्म भूल गए और तिब्बत कांड के दो -तीन दशक के अंदर ही अपने ही घर से बेघर कर दिए गए ! क्या वो वापस जा पाएंगे ? इस सवाल के जवाब में उनसे ही पूछा जाना चाहिए की जब वो लाखों की संख्या में थे , तब अपनी रक्षा नहीं कर पाये तो फिर अब कैसे रह के कर पाएंगे ! फिर चाहे कितनी भी पुलिस लगा दी जाए और कितनी भी दीवारे ऊंची कर दी जाये ! आप का पड़ोसी तो वही है जिसने आप को दौड़ाया था ! अब वो आप को क्यों वापस आने देगा ? क्यों ? क्यों ? क्यों ? और अगर आप किसी की मदद से अंदर घुसना चाहोगे तो वो उलटा उससे लड़ेगा ! क्योंकि वो लड़ना जानता है ! वो लड़ कर मरने को तैयार है, मारने को तैयार है ! और तुम्हे मरने से डर लगता हैं ! मगर तुम ये भूल गए की जो डर गया उसे जीने का कोई हक़ नहीं ! हास्यास्पद तो तब हो जाता है जब तुम एक आतंकी से भी मानवता की उम्मीद पाले रखते हो ! और तो और हिन्दुस्तान की मानवतावादी गैंग की हरकतों को देख कर भी कुढ़ते रहते हैं ! अरे ये अवार्ड वापसी गैंग किसी आतंकवादी के मरने पर आंसू नहीं बहायेगी तो क्या तुम्हारे लिए रोयेगी ? अब इसे नादानी कहें या बेवकूफी , तुम किससे उम्मीद करते हो ? जो चीन की मानसिकता से प्रेरित है वो तिब्बत के साथ कभी नहीं जा सकता ! ये मानवतावादी मानवता के साथ नहीं,बल्कि कट्टरता के साथ हैं ! सच कहें तो चीन की कट्टर विचारधारा से पैदा हुए ये गैंग बौद्धिक आतंकी हैं ! इनसे दया की उम्मीद कैसी ?
मगर सवाल तो ये उठता है की आपको इनकी जरूरत क्यों है !जो अपनी मदद खुद नहीं कर सकते उन्हें कोई मदद नहीं करता ! अपनी सुरक्षा खुद करनी पड़ती है !तुम सरकार की तरफ देखते हो ! सरकार क्या करेगी ?घर बना देगी, पुलिस लगा देगी !मगर चौबीस घंटे पड़ोस के गुंडे मवाली से तो खुद ही लड़ना पड़ता है !तुम पड़ोसी की पुलिस में रिपोर्ट कर सकते हो मगर सरकार तो पड़ोसी की भी है और फिर गुंडे को सजा देना न्यायलय का काम है ! और यह सर्वविदित है की न्याय में कितने जनम लग जाते हैं !सच तो ये है की तुम तिब्बत की तरह भटक रहे हो जबकि शान से जीना है अस्तित्व बचाना है तो यहूदियों से सीखो!
यहूदिओं ने भी बहुत लम्बे समय तक दुनिया के हर देश में यातनाएं झेली ! वो भी संख्या में कम थे ! मगर संघर्ष किया और अंत में एक छोटा सा ही सही एक अपना देश बनाने में कामयाब हुए ! इसराइल उन्हें भीख में प्रेम से नहीं मिला ! आज भी हर पल संघर्ष करते हैं ! बात बात में पुलिस के पास, अमेरिका के पास , यू एन में नहीं जाते ! सरकार , विश्व राजनीति और कूटनीति अपनी जगह है , और अस्तित्व की हर पल की लड़ाई अपनी जगह है ! प्रकृति में कुछ भी प्रेम से नहीं मिलता ! सब बकवास है ! बच्चा भी पीड़ा के साथ जन्म लेता है ! चारों और अस्तित्व की लड़ाई निरन्तर चलती रहती है ! साँस लेना भी एक संघर्ष ही है ! कमजोरों को किसी काल में कभी कुछ नहीं मिला ! ना तिब्बतियों को मिलेगा ना कश्मीरीपण्डित को ! उलटे सौ पचास साल में आप इतिहास में गुम हो जाओगे ! अगर अपने नाम के साथ शान से जीना है तो इसराइल बनना होगा, विशेष कर आतंक की दुनिया में ! विश्व को भी और भारत को भी !