अति भ्रष्ट एक अधिकारी मित्र ने आवश्यकता से अधिक पैसे देकर अपने एकलौते पुत्र को बिगाड़ लिया था! कम उम्र में ही चमचमाती कार दे दी ! लाड़ले ने भी जम कर ऐश मारना शुरू कर दिया था ! एक दिन कॉलेज से भाग कर शराब के नशे में धुत अपनी प्रेमिका के साथ हिमाचल में मस्ती कर रहे थे ! शराब और शबाब अनियन्त्रित हो जाए तो जवानी को बर्बाद कर देती है !लेकिन पहाड़ ज़रा सी चूक को भी माफ़ नहीं करते और एक शाम उसकी कार गहरी खाई में जा गिरी ! हादसा इतना भयावह था की शरीर के टुकड़े मिलना भी मुश्किल हो गया था ! मैंने मित्र को उसके बाद टूटते देखा ! पैसे की कोई कीमत नहीं रह जाती जब उसका कोई उपभोग करने वाला नहीं ! और वो जीते जी पागल हो गए थे !
मैंने इस के बाद अपनी पहली कहानी लिखी थी " सब्र "! हुआ यूं की उपरोक्त दुर्घटना के कुछ ही दिनों बाद मैं एक सड़क जाम में फॅस गया था ! पता चला की आगे ओवरटेक के कारन कार और ट्रक की भिड़ंत हुई है ! और उसके बाद दोनों तरफ के लोगो ने एक कतार में खड़े होने की जगह इतनी सारी कतारे बना ली की दोनों तरफ के लोग फिर निकल नहीं पा रहे थे ! बड़ी मुश्किल से जब मैं उस दुर्घटना स्थल से निकल रहा था तभी एक युवक को ओवरटेक करके तेजी से निकलता देख मुझे बहुत गुस्सा आया था मगर आगे जा कर देखता हूं की वो भी दुर्घटना का शिकार हो जाता है ! आखिरकर हमें जल्दी किस बात की होती है ! सच कहें तो हमें सब्र नहीं ! अधिकांश गाड़ी वाले पढेलिखे होंगे मगर आप सड़क और पार्किंग में देख लीजिये हम कितने गैर जिम्मेदारी से पेश आते हैं ! सिग्नल पर , ,तीन तीन एक स्कूटर पर सवार स्कूल जाते बच्चो को रेड सिग्नल पार करते आप हर शहर में देख सकते है ! टोकने पर वो आप पर हँसते हैं और उनके अभिवावक बुरा सा मुँह बनाते हैं मानो हमने कोई गलत बात बोल दी ! इन बच्चों के दुर्घटना का जिम्मेवार कोई और लेकिन शिकार हम -आप !
कल सुना है की कड़ा मोटर व्हीकल कानून बना है जिसमे एक है बच्चे की गलती पर अभिभावक को सजा ! सवाल उठता है की हमें ही इस तरह के कानून की जरूरत क्यों पड़ती है ? स्वच्छ भारत अभियान की जरूरत हिंदुस्तान को ही क्यों ? ये यह दर्शता है की हमारी आदते कितनी गंदी हैं और हम सामाजिक रूप से स्वच्छ नहीं ! यह सच है सरकार कितनी भी सुन्दर मॉल बस स्टैंड स्टेशन बना दे , हम साल दो साल में ही उसका हुलिया बिगाड़ देंगे ! कितनी भी अच्छी हाइवे बना दो , दुसरे ही दिन डिवाइडर को तोड़ कर बीच में से निकलने के जुगाड़ में लग जाएंगे ! कितने क़ानून बनाओगे ? अब आदतों का तो कानून बनने से रहा ! और अगर बन गया तो हम उसे भी भ्रष्ट कर देंगे ! कई बार मैं स्वयं से पूछता हूँ की हम इतनी प्रचीन और गौरवशाली सभ्यता के लोग इतने असभ्य क्यों और कब हो गए ?