ऊर्जा ना तो खत्म होती है ना ही पैदा की जा सकती है, बस उसका रूप-स्वरुप बदल सकता है ! यह मैं नहीं वि
ज्ञान कहता है ! वैज्ञानिक कई उदाहरण के द्वारा इसे प्रमाणित भी करते हैं!
मान लेते हैं ! मगर
विज्ञान ने तो पिछले कुछ १०० -२०० साल से यह बोलना शरू किया है , हम तो सदियों से कहते आये हैं !
वो कैसे ? यह सवाल पूछ कर "हिन्दू हेटर गैंग " कुटिल मुस्कान बिखेरेगी और गणेश के हाथी-सर जैसे अनेक अन्य महान उदाहरणों में छिपे आध्यात्मिक दर्शन को न समझते हुए बिना किसी तर्कपूर्ण बहस के ही उसका मजाक उड़ा देगी !
उनसे सिर्फ एक सवाल , मानव जब तक जीवित रहता है उसमे जीवन है अर्थात हर जीव के शरीर में ऊर्जा है , प्राण निकलते ही शरीर मिट्टी का हो जाता है अर्थात मरते ही ऊर्जा शरीर से निकल जाती है , मरने के बाद आखिरकार यह ऊर्जा जाती कहां है ?
कोई जवाब है,वन बुक वन गॉड वन जीवन वाले लोगो के पास ? नहीं ! मगर सनातन धर्म के पास इसकी व्याख्या है , इसे पुनर्जन्म के सिद्धान्त से आसानी से समझा जा सकता है !यहां कहा गया है की आत्मा एक शरीर से निकल कर नए शरीर में प्रवेश करती है! यह शरीर किसी भी जीव जन्तु का हो सकता है ! क्या कुत्ते से लेकर सूअर और इंसान के मरने में मूल रूप में कोई फर्क है ? नहीं , सिर्फ इस सभी के शरीर में फर्क है ! ऊर्जा रूपी जीवन अर्थात आत्मा सब में एक सामान है !
इसी सिद्धांत के एक कदम आगे जाएँ तो सनातन धर्म ही अनादि और अनंत की बात करता है ! अर्थात जिसका ना कोई प्रारम्भ है ना अंत ! विज्ञान की बिग बैंग थ्योरी वाले वैज्ञानिक भी यहीं तो आ कर अटक जाते हैं ! यहां तक की स्टीफन हॉकिंग जैसे आधुनिक वैज्ञानिक भी अपनी ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ़ टाइम पुस्तक में पूछ ही लेते हैं की अगर किसी बिंदू पर समय प्राम्भ हुआ तो उसके पहले क्या था ? सरल शब्दो में अगर ईश्वर ने ब्रह्माण्ड का निर्माण किया तो उसके पहले वो क्या कर रहा था ? और इन वैज्ञानिको की दुविधा को हम इस सवाल से बड़ा देते हैं की अगर बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड का जन्म एक महाविस्फोट के परिणामस्वरूप हुआ तो उसके पूर्व क्या था? सीधे सरल शब्दो में महाविस्फोट की ऊर्जा आखिर कहां से आयी ? वो ऊर्जा पहले क्या कर रही थी ? इसका कोई जवाब नही है विज्ञान के पास ! असल में यह ऊर्जा कही से नहीं आयी, ना कही जाएगी ! यह ऊर्जा एक चक्र में अपना रूप स्वरुप बदलते हुए घूम रही है, निरन्तर ! एक कालचक्र, जिसका ना कोई प्रारम्भ होता है ना कोई अंत ! यही सनातन सत्य है यही शिव हैं ,यही महाकाल है , जिसकी कल्पना सदियों पहले कर दी गयी , जिसे विस्तार में लिख दिया गया वेद -पुराणों में , जिसे पढ़ कर पश्चिम के वैज्ञानिक भी चुपचाप लाभान्वित होते हैं , मगर हिंदुस्तान में इसे नहीं पढ़ा जाता , ऐसा माहौल बना दिया गया की एक आम हिंदुस्तानी इसे ना पढ़े ना इस पर विश्वास करे ! क्यों ? सीधी सी बात है ऐसा करते ही कइयों का बौद्धिक वर्चस्व ख़त्म हो जाएगा ,और धर्म की कई नयी नयी दुकाने बंद हो जाएंगी !