कान्हा ,
आज की रात,
तुम मत आना !
क्योंकि अब यहाँ कोई वसुदेव नहीं ,
हर बाप धृतराष्ट्र है !
हर बेटा पापी दुर्योधन ,
हर मामा शकुनि ,
तो हर भाई दुःशासन है !
ना कोई देवकी ना कोई यशोदा,
अब तो हर घर पूतना है !
यहाँ कोई द्रोपदी नहीं,
जो अपने चीरहरण में,
तुम्हे पुकारे !
अब सखी गोपी नहीं ,
ना ही कोई मीरा है !
अब कोई ब्रज नहीं ,
हर जगह बुलंदशहर है !
ना धर्म है.
ना धर्मराज युद्धिष्ठिर !
ना कर्म है,
ना कर्मयोद्धा अर्जुन !
अब गीता नहीं ,
ज्ञान नहीं ,
ना प्रेम है !
अब संजय नहीं ,
चारो और कंस है !
और शिशुपाल की प्रतिष्ठा हर गाली के साथ बढ़ रही है !
ऐसे में क्या करोगे जन्म लेकर ?
हम सब को आपस में ही मर-कट जाने दो !