विश्व युद्ध नीति
आज जब दुनिया एक ग्लोबल विलेज बन चुकी है तो अपने अपने देश की सीमाओं के आगे जा कर हमें यह भी देखना चाहिए की आखिरकार विश्व को कौन चला रहा है और कैसे ! इसके लिए एक संस्था है संयुक्त राष्ट्र ( United Nations) ! इस अंतरराष्ट्रीय संगठन के उद्देश्य में उल् लेख है कि यह अंतरराष्ट्रीय कानून को बनाने में सहयोग करती है ! साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति, मानव अधिकार और विश्व शांति के लिए कार्यरत है। बस यही से गड़बड़ी दिखने लगती है ! क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध के विजेता देशों ने मिलकर संयुक्त राष्ट्र को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हस्तक्षेप करने के उद्देश्य से स्थापित किया था। संयुक्त राष्ट्र की संरचना में सर्वाधिक शक्तिशाली है सुरक्षा परिषद ! इसके स्थायी सदस्यों को Permanent Five, Big Five और P5 के नाम से भी जाना जाता है, जिनमे शामिल हैं अमेरिका ,रूस ,इंग्लैंड , फ़्रांस और चीन !इन सभी के पास वीटो का अधिकार है। युद्ध के सबसे शक्तिशाली देश , जो जीते थे , वही विश्व शांति और युद्ध ना हो सुनिश्चित कर रहे हैं ! मतलब जो हारा हुआ है वो कभी अपनी बात ना रख पाए और जीते हुए को स्थायी रूप से अपनी चलाने का मौका मिले ! इससे अधिक महत्वपूर्ण है वो , जो सीधे नहीं लिखा गया है, मगर नग्न सत्य है, वो यह की आगे जो भी युद्ध हो वो इनकी सहूलियत के हिसाब से हो ! अब आप पूछेंगे ,वो कैसे ? यह बेहद दिलचस्प है ! क्योंकि कुछ आंकड़े हैं जो इसे और मजेदार बनाते हैं ! आज के दिन हथियारों का सबसे अधिक निर्माण और बिक्री कौन से देश कर रहे हैं ?अमेरिका : 31%, रूस : 27%,फ्रांस :5%, इंग्लैंड :5%, चीन : 5% अर्थात वही जो स्थायी सदस्य हैं ! कितना मजेदार है की यही क़ानून बनाते हैं यही हथियार बना कर बेचते हैं और यही न्याय भी करते हैं ! मतलब पूरी दादागिरी वो भी श्वेत वस्त्र धारण करके ! हास्यस्पद तो यह है की संयुक्त राष्ट्र के व्यक्त उद्देश्य में युद्ध रोकना भी लिखा है ! क्या कोई बतलायेगा की हथियार बेचने वाला युद्ध क्यों रुकवाएगा ? वो भी तब जब इनकी पूरी इकोनॉमी मुख्यतः शस्त्र निर्माण और बेचने पर आधारित है ! जब युद्ध ही नहीं होगा तो इनके हथियार खरीदेगा कौन और क्यों ? हां यह दीगर बात है की यह कभी नहीं चाहेंगे की इनके घर में युद्ध हो जिससे इनके जान माल की क्षति हो ! इसलिए ध्यान से देखे तो द्वितीव विश्व युद्ध के बाद अगर कही युद्ध होता रहा है तो वो या तो पूर्व एशिया वियतनाम आदि में या कालांतर में पश्चिम एशिया में ! जो निरंतर जारी है ! ये एक तरफ आतंकवाद को बन्दूक देते हैं और दूसरी तरफ मलाला को शांति पुरस्कार ! बेहद शातिराना खेल खेला जा रहा है ! असल में ये निरंतर युद्ध की भूमि तलाशते और बनाते हैं , वहाँ फिर हथियार के उपयोग के हालात बनाये जाते हैं ! पिछले कुछ समय से इस लॉबी ने, इस्लाम की आक्रमकता और कट्टरता और विस्तारवाद को बेहद षड्यंत्रपूर्व शातिराना ढंग से दुरपयोग किया है ! सच कहें तो ,आतंकवाद जो एक किस्म का आधुनिक गुरिल्ला युद्ध ही है, वो इन्ही का पालापोसा है ! अब जब पश्चिम एशिया पूरी तरह बर्बाद हो गया तो अब इनकी निगाह मध्य की और है ! अफगानिस्तान के बाद पकिस्तान इनके लिए सर्वाधिक उपयुक्त उर्वरा भूमि है ! ये लोग कई सालो से इसे इसके लिए तैयार कर रहे हैं ! पाक पहले अपने पश्चिम में अफगान के लिए उपयोग हुआ अब पूर्व में भारत की तरफ रुख करेगा ! और ऐसा करने के लिए ये सब पीठ पीछे इसे उकसायेंगे ! हिंदुस्तान भी कब तक शांति का फूल लेकर खड़ा रहेगा ! वो भी युद्ध से बचने के लिए अस्त्र शस्त्र खरीदने इन्ही के पास जाएगा ! यह हमें भी देंगे,हमारी पीठ भी सहलाएंगे, आतंकवाद के विरोध में बात भी करेंगे , और फिर एक बड़ी खेप शस्त्र की पाक को पीछे से दे आएंगे ! हिंदुस्तान इन के बीच एक चक्रव्यूह में फस गया है ! अगर वो सिर्फ शांति का पाठ ही पढ़ता रहेगा तो उसके भीतर कई पाकिस्तान बन जाएंगे और अगर विरोध करता है तो फिर युद्ध के लिए तैयार रहे ! ऐसे हालात में बिना लड़े पूरी तरह से बर्बाद होने से अच्छा है की लड़ कर कुछ बचा ले ! और हो सके तो शस्त्र बेचने वाले का हाथ भी पकड़ कर उसे भी युद्ध की भूमि में घसीट लाये ! जिससे युद्ध की बर्बादी के कुछ छीटें उसके दामन पर भी पड़े !आग सेकने वालो के हाथ भी जलें , इसके लिए हमें उन लोगों को इकठ्ठा करना होगा जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से इन चंद लोगों की दादागिरी चुपचाप झेल रहे हैं मगर अपमानित होकर अंदर ही अंदर सुलग रहे हैं ! यहाँ कोई शांति का पाठ पढ़ाने कृपया ना आये ! क्योंकि अहिंसा के साथ जीना , ना तो समाज में ना ही जंगल में सम्भव है ! यहाँ सिर्फ इतना बताना ही काफी होगा की यह जितने भी मानव अधिकार की बात करने वाले संगठन हो या मीडिया या फिर सेक्युलर ब्रिगेड , सभी उन्ही के द्वारा पाले गए हैं जो हथियार बनाते-बेचते हैं ! यह खेल उतना भी सीधा सरल नहीं जितना बताया जाता है ! दुर्भाग्य सिर्फ इतना है की महाभारत जैसी रचना की भूमि के लोग कृष्ण लीला को भूले हुए हैं !