धर्म से बड़ा कोई 'कु' शासक नहीं !
धर्म से बड़ा कोई लोभी व्यापार ी नहीं !
धर्म से बड़ा कोई अत्याचारी नहीं !
धर्म से बड़ा कोई षड्यंत्रकारी नहीं !
धर्म से बड़ा कोई अधर्मी नहीं ! आदि आदि ...
फिर भी धर्म पूजनीय है फलफूल और फ़ैल रहा है !
क्योंकि धर्म से बढ़ा कोई डर नहीं, नशा नहीं , कमजोरी नहीं !
यह मूलमंत्र धर्म को पैदा करने वाले समझ गए थे तभी उन्होंने धर्म का जन्म दिया !
जिससे पहले वो और बाद में उनके खास चाहने वाले कुछ भी मन माफिक सदियों तक करने की आजादी पा सकें !
यहां धर्म को उसके ""सनातन"" अर्थ में ना लेकर बल्कि आज के व्यवहारिक संदर्भ में देखें ! यकीन नहीं होता तो एक छोटा सा उदाहरण देख ले , फेसबुक पर ही , आतंकी हमला, बम ब्लास्ट , बलात्कार से लेकर, एक अपराधी को सजा मिलने या जेल से गलती से छूटने जैसी कोई घटना ही क्यों ना हो , उसके विरोध में लिखी गयी किसी भी पोस्ट को पढ़ें और उसपर विशेष टिप्पणियों को देखें , कैसे कुछ लोग बेशर्मी से कुतर्कों के माध्यम से धीरे से इनका समर्थन करने लग पड़ते हैं , फिर चाहे उनका उस अपराधी से दूर दूर तक कोई व्यक्तिगत सम्बन्ध ना हो, सिवाये धर्म को छोड़ कर !