प्रणाम स्वामी जी,
हाँ,हमारा दृष्टिकोण निर्भर करता है कि हम कैसे देखते है। किसी घटना को हम कैसे लेते है जैसे एक गिलास पानी से आधा भरा है इसकी दो दृष्टिकोण हो सकता है एक तो गिलास में पानी आधा भर गया है। और दुसरा अभी भी गिलास में पानी आधा खाली है। आप आधे भरे प्याले का जश्न मना सकते है और शेष खाली का दुख। किसी का एक्सीडेंट हो गया चाहे तो वह भाग्य को कोश सकता है कि मैं कैसे एक्सीडेंट हो गया। या भगवान को धन्यवाद दे सकता है कि मेरा एक्सीडेंट हुआ जिसमे किसी बड़े हादसे से मै बच गया। आपके जीवन में जो घटना घटती है आप उसे कैसे लेते आप के दृष्टि पर निर्भर करता है आप दुखी भी हो सकते या आप चुनौती मान कर स्वीकार सकते है। संकट को अपना गुरु मान सकते हो अपना जीवन निखार सकते हो। सर रखकर बैठने की अपेक्षा हमारा दृष्टिकोण सकारात्मक व उदार होना चाहिए।
आपके पास बाइक है आप उसे चला सकते सफर का आनन्द ले सकते है। आप ये समझ पैदा कर सकते हैं कि कितने लोगो के पास तो बाइक ही नही है। या फिर आपके पास यातायात के साधन होते हुए भी अन्दर ही अन्दर आपको ये बात खाए जा रहा है कि मेरे पास कार नही है । कब कार होगा मेरे पास ।आप वर्तमान में ये सोचकर गहरे चिंता में जा सकते है । अपना आज बरबाद कर सकते है ।आप ही जिम्मेदार है आपके होने में ।
जिस क्षण हमे देखना होता है कि उस घटना को कैसे देखे उस क्षण ज्ञान की बड़ी बोध की या होश की आवश्यकता होती है। गहरी समझ से हम उस कठिन परिस्थिति को सरलता में तब्दील कर सकते है। हम उसे कैसे स्वीकार करते हैं। उस समय हमारी समझ ही औषधि का काम करेगा।
save tree🌲save earth🌏&save life❤