प्रणाम सद्गुरू,
हाँ, जिस प्रकार से एक बीज में विशाल वृक्ष छिपा है। उसी प्रकार से हमारे अंदर ही असली राज छिपा है। आप अंदर से कैसे हैं वही बाहर शरीर मन व आपका जीवन शैली निर्भर करता है। हम बाहर से कितना आदर्श हो लेकिन अंदर ही अंदर आप वही रहेंगे जो आप सोचते है । कहने का मतलब अगर दो तरह का सोच विचार है तो आप शांत नही रह सकते है।बेचैनी रहेगी क्योंकि बाहर एक चेहरा बनाए है अंदर दुसरा चेहरा धक्का मार रहा है। अधिकतर हम घर में अलग व्यवहार करते है और बाजार में व्यवहार बदल जाता है। अपनी पत्नी से कैसा व्यवहार करते है और बाहर की स्त्री से जो व्यवहार करते है जरा सोचना विचारणा। जब हम अपने अंदर झाकते हैं तो देखते हैं कितना विचार चल रहे होते है कभी विचार रुका है गौर करना। हम वही होंगे जो हमारे अंदर छिपा है। ओशो के अनुसार "हमारे अंदर सदा कुम्भ का मेला भरा हुआ है।" मन सतत सोच विचार कर रहा होता है। अधिकतर विचार नकारात्मक होते है। लेकिन हम मन की बात नही कर रहे हैं।आपके अन्दर जो साक्षी स्वरुप है उसकी बात हो रही है।
save tree🌲save earth🌏&save life❤