प्रणाम सद्गुरू,
जल ही जीवन है । जल हमारे लिए एक विकराल समस्या बनता जा रहा है। जलस्तर एकदम नीचे चला गया है। अब गाँवो में भी कई गाँवो का बोर सूखता जा रहा है ।अप्रैल के आते तक बोर से पानी आना बन्द हो जाता है। शहरों में तो गर्मी के दिनो में काफी लाइन लगाना पड़ता है। बारिश तो अब बाढ़ के रुप में होता है जो बहकर समुद्र में मिल जाता है। जल स्तर तो बढ़ता जा रहा है लेकिन वह हमारे उपयोग के लायक है कि नही या फिर उस समय हमे पानी नही मिल पाता जिस समय जरूरत होती है। जब जरुरत पूरी हो जाता है तो उस समय पानी की उपलब्धता की क्या काम।
आपको पता है पृथ्वी पर 75 प्रतिशत जल है शेष 25 प्रतिशत स्थल है। 97 प्रतिशत समुद्र का खारा पानी व 3 प्रतिशत पीने योग्य है झील तालाब व नदियों में जिसमे कुछ बर्फ के रुप में मौजूद है। इन 3 प्रतिशत में पृथ्वी पर 68 प्रतिशत से अधिक ताजा पानी हिमखंडों और ग्लेशियरों में पाया जाता है, और 30 प्रतिशत से अधिक भूजल में पाया जाता है। हमारे ताजे पानी का केवल 0.3 प्रतिशत झीलों, नदियों और दलदलों के सतही पानी में पाया जाता है।
30 प्रतिशत भू-जल जो अधिकतर पीने के लिए उपयोग में लाया जाता है। पहले की अपेक्षा गहराई में उपलब्ध हो पाता है। जिसकी निकासी के लिए अधिक व्यय करना पड़ता है। कहीं कहीं तो पानी ही नही निकलता ऐसे में बोर कराने वाले या किसान की हालत और दयनीय हो जाता है। हम कितना पानी इस्तेमाल करते है और चलते नल को खुला देख क्या हम बन्द करते है। हम दूसरों को सलाह देते है कि नल को खुला चलता हुआ छोड़ना नही चाहिए। पर रियल में क्या हम बन्द करते है। कही पर भी नल से पानी जा रहा है और हम उसे अनदेखा कर निकल पड़ते है। या बन्द करते हैं तो ये देखते है कोई देख तो नही रहा। जब पानी कम है आपका स्रोत तो आपको नहाने ,कपड़ा धोने ,बर्तन सफाई में विशेष एहतियात बरतनी होगी ताकि कम पानी को कैसे अधिक से अधिक इस्तेमाल में लाया जाए।
कोई व्यक्तिगत रूप से ये समझ पैदा हो जाए कि जल का सही वितरण व गुणवत्ता सही हो।हम वैश्विक स्तर पर सोचे विचारे कि नदी का पानी शुद्ध कैसे करे? ज्यादा बहने वाले नदी को कैसे सुखे नदी से जोड़ा जाए? पेड़ क्यो कट रहे है प्रत्येक व्यक्ति संवेदनशील क्यो नही है? वृक्ष लगाकर सेल्फी ले लेते है और वर्षो तक मोबाइल में सेव रहता है पर वृक्षारोपण कर उसे एक साल तक सुरक्षित नहीं रख पाते। हमारी चेतना कितने दिनो तक सोई रहेगी ।जब तक अपने अंदर ये विचार जहन नही करेगा तब तक हम न समझ पेड़ काटते रहेंगे मृदा प्रदूषण करेंगे और ऊर्जा बरबाद करेंगे।
हम सड़क पार कर लेते है क्यो ;क्योकि जान का सवाल होता है । पर प्राकृतिक संसाधनों के दोहन में बेहोश रहते हैं। हम अपने बच्चो की देखभाल कर लेते है पर एक पौधा भी रोप नही पाते ।बेतहासा अन्न उत्पादन बढ़ा लेते हैं पर मिट्टी की सुरक्षा की तनिक नही सोचते। एक दिन पानी के लिए युद्घ होगा। जमीन के लिए विवाद तो बरसो से चला आ रहा है। जलपुरुष के नाम को सार्थक कर रहे राजेंद्र कुमार सिंह का विचार है कि जल हमें ही नहीं पृथ्वी एवं पर्यावरण को बचाने के लिए भी जल का सरंक्षण बहुत आवश्यक है। बिना पानी के हरियाली के विषय में सोचा भी नहीं जा सकता है। जब तक हम पानी का वास्तविक मूल्य नहीं समझेंगे तब तक जल संरक्षण की दिशा में कुछ सार्थक नहीं किया जा सकता।
save tree🌲save earth🌏&save life❤