प्रणाम सद्गुरू,
Yes, हम रोजाना दैनिक क्रिया करते है। जिसमे पाचों इन्द्रियों का उपयोग होता है। जैसे हम खाना खाते है जीवन के लिए जो आवश्यक है पर जीभ से स्वाद लिया जाता है कभी खट्टा,कभी मीठा,कभी नमकीन। स्वाद के ही कारण हम कभी ज्यादा खा लेते है और खाने के ज्यादा आदि हो जाते हैं। ऐसा भी होता है कि हमे स्वाद से मतलब न हो और केवल जीवन के लिए खाए। इसमे संघर्ष करने की जरुरत न पड़े सहज रुप से हम खाए तो हम इस स्वाद रुपी इंद्रिय के पार हो जाते है।शायद सद्गुरु इसी पार की बात कर रहे है ।ऐसे ही भोगते भोगते हम अन्य इंद्रियों के पार चले जाते हैं। पर कैसे कौन सा श्रम या साधना करनी होगी। हमारा बोध बढ़ना चाहिए या ये कहे बोध का होना पर्याप्त है बोध के होते ही हम अंधेरे से बाहर हो जाते हैं ।बोध वो सम्यक दृष्टि है जो भोग व त्याग के मध्य से जन्मता है। बोध के होते हो हमारा संसार गौण हो जाता है और संसार के पार चले जाते है। संसार में रहकर संसार के पार कैसे चले जाए ? या तो मृत्यु होगी ।
save tree🌲save earth🌏&save life❤