प्रणाम सिस्टर,
Yes, हम क्या खाए और कैसा खाए हमारा शरीर एक भौतिक शरीर है जो मेटर से निर्मित है। जब किसी हिंसक व पालतु पशु-पक्षी का मांस खाते है तो उसका आचरण,डर व बल भी उसमे समाहित रहता है जो मनुष्य के मन पर प्रभाव डालता है। मांस प्राकृतिक नही है जबकि अन्न फल नेचुरल है हमारी आँते उतना नही पचा पाता जितना अन्न या फल।
इस पृथ्वी पर सभी लोगो का अधिकार है। सभी के लिए भोजन उपलब्ध है। पर मनुष्य शाकाहार व मांसाहार दोनो है। अन्य जीव की अपेक्षा मनुष्य में चेतना है और उसी के कारण वह सभी जीवों में बुद्धिमान है। चेतना की उड़ान के लिए पंख चाहिए जो शाकाहार से सम्भव है। जीसस ने कहा है हम दूसरो से वही व्यवहार करे जो अपने लिए चाहते हैं। जीव जंतु व शाक सब्जी दोनो सजीव है जीव जंतु एक जगह से दुसरे जगह विचरण करते हैं जबकि पेड़ पौधे एक जगह रहते है। काटने व मारने पर दोनो को दर्द होगा पीड़ा होगी पर शाक सब्जी व फल को हम ग्रहण कर सकते हैं खा सकते हैं । ऐसे में शाकाहार किसे कहे ये पेड़ पौधे भी जीवित है । अगर इस पृथ्वी पर जीना है तो हमे फल व फसल को ग्रहण करना होगा फल तो पकने पर गिरने की अवस्था में होते हैं उसी प्रकार फसल भी जब सुख चुका होता है तो हम उसे काटते हैं। यदि हम इसे नही खायेंगे तो जिएंगे कैसे जीने के लिए तो कुछ ना कुछ खाना होगा।
हम कैसे खाए ये भी मायने रखता है कहने का मतलब है अगर मन दुखी होगा तो जो भी खायेंगे वो भी खाने के साथ हमारे मास मज्जा में चला जायेगा। अगर प्रसन्न चित्त के साथ भोजन ग्रहण करते हैं तो भोजन की गुणवत्ता बदल जाएगी । हमारा मन व शरीर दोनो ग्रहण करने को राजी हैं। कोई प्रतिरोध नहीं । ऐसे में जो भी खाओगे अमृत होगा।अन्न्ं ब्रह्मम ;अन्न में ब्रह्म का स्वाद जो चख लेते है वो स्वाद से मुक्त हो जाते हैं । काबिल लोगो ने ये भी जाना कि भोजन के स्वाद में ईश्वर है ।
save tree🌲save earth🌏&save life❤