दिनाँक : 20.11.2021
समय : सुबह दोपहर 12 बजे
प्रिय सखी डायरी,
समयभाव के कारण ना तो कहानी ही लिख पा रही हूँ और ना ही साथी लेखकों की रचनाओ पर कमेंट नहीं कर पा रही हूँ, पर एक-दो पढ़ने की कोशिश जरूर करती हूँ। कृपया अन्यथा ना सोचें।
कल मैंने किसान कृषि बिल को वापिस लेने के संदर्भ में व्यंग लिखा था पर दो तीन कमेंट पढ़ने के बाद मुझे लगा कि मेरे हास्य व्यंग्य को कोई समझा ही नहीं।
"विश्व की बड़ी से बड़ी समस्या का हल चुनाव है। किसान मजबूरी में मरियल बैल की सेवा करता है और हल में खुद जुत जाता है। ...... लेकिन शानदार और अड़ियल बैल से भी अपना काम करवा लेता है।"
तो बता देती हूँ कि यह किसान कृषि बिल 2020 के बारे में है। मुझे नही लगता किसी को समझ आया या आनंद आया।
सखी व्यंग भी लेखन की एक विधा है, और छोटा हो तो ज्यादा मजा आता है- "देखन में छोटो लगे, घाव करे गंभीर"। हो सकता है कुछ लोगों ने जानबूझ कर ना समझना चाहा हो।
खैर! यही बात आज बताना चाह रही हूँ। ऐसा मौका विरला ही होता है जब कोई प्रधानमंत्री जनता से माफी मांगे। जानकारों का कहना है कि भारत में ये दूसरा मौका है, इससे पहले नेहरू जी ने माफी मांगीं थी। जिसका मुझे तो नहीं पता था।
हैरानी इस बात पर हो रही है कि सत्ता पक्ष का मुँह उतरा हुआ है क्योंकि उनके माननीय प्रधानमंत्री जी ने माफी मांगी, लेकिन उससे ज्यादा हवाइयां विपक्ष के चेहरे की उड़ी हुई है, एन चुनाव के मौके पर उनसे एक धाकड़ मुद्दा छीन लिया गया।
किसान नेता तो रोने-रोने को हो रहे हैं, सारा क्रेडिट प्रधानमंत्री जी ले गए, एक साल की मेहनत बेकार चली गई। चुनावी सीजन में जो रैलियां प्लान की थीं, उनपर रोलर चला दिया प्रधानमंत्री जी ने। अब जाकर क्या भाषण दें, किसे रोएं?
न्यूज़ चैनलो के सामने असमंजस की स्थिति रही, पूरा साल फायदे गिनाते रहे किसान बिल के, अब तो प्रधानमंत्री जी ने आधार ही खींच लिया। जब वे खुद कह रहे हैं कि वे बिल के फायदे नहीं समझा सके तो अब चैनल कैसे समझाए? खैर! न्यूज़ 24 फायदे में रहा कि वह शुरू से बिल के अगेंस्ट में था तो उसकी साख बढ़ गई।
मुस्कान है तो केवल किसान, खासकर पंजाब और हरियाणा, के चेहरे पर। बेबे तो पिंड में मिठाई बांट रही है कि इस सर्दी में दारजी और नू-पुत्तर घर मे रहेंगे और जमीन भी अपनी ही रहेगी। छोटे किसान दुखी हैं कि एक अच्छी योजना उनके हाथ से निकल गई।
राकेश टिकैत समेत संयुक्त किसान मोर्चा ने साफ कर दिया है कि वो संसद से कृषि कानूनों की वापसी का बिल पारित होने तक आंदोलन खत्म नहीं करेंगे। किसान नेताओं ने साथ ही एमएसपी पर कानूनी गारंटी, बिजली सुधार विधेयक समेत कई अन्य मुद्दों पर भी अपनी लड़ाई जारी रखने की हुंकार भरी है। आखिर जो रैलियां प्लान कर रखी है उनको कैसे कैंसिल कर दें? फिर एक साल से जो मीडिया कवरेज मिल रहा था, यकायक उसकी कमी भी तो खलेगी।
लेकिन एक बात तय है कि कुछ दिन बाद सभी पक्ष इसे एक बुरा सपना समझ कर भूल जाएंगे।
आपकी सखी,
गीता भदौरिया