दिनांक 24.11.2021
समय : रात 12 बजे
प्रतिभा पलायन के विषय पर चर्चाओं का बाज़ार हमेशा गर्म रहा है। प्रश्न यह है कि इतने वर्षों में इसका प्रभाव हमारी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर क्या पड़ा है और इस पलायन को रोकने के लिए कौन से कदम उठाए जाने चाहिए ।
मेरा मानना है कि प्रतिभा पलायन को तभी भारी हानि माना जा सकता है यदि बाहर जाने वाले इन व्यक्तियों का उपयोग राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और विकास के लिए किया जा सकता हो । परन्तु यदि उन की प्रतिभा का उनके देश में उचित उपयोग नही किया जा सकता तो देश के लिए यह बेहतर होगा कि इन प्रतिभा-सम्पन्न लोगों को बाहर जा कर अपने भाग्य का स्वयं निर्माण करने दिया जाए । ऐसी स्थिति में यह तथाकथित ”प्रतिभा पलायन” वास्तव में ”प्रतिभा का अतिरेक” बन जाता है ।
केवल इसलिए कि वह प्रतिभाशाली बच्चा किसी एक गरीब देश से का है, उसकी प्रतिभा को उसी देश में पड़े रहने दिया जाए, यह ठीक नहीं होगा । यदि वह राष्ट्र जिसके वे नागरिक हैं इन प्रतिभाशाली व्यक्तियों का सर्वोत्तम उपयोग नही कर सकता तो इसमें कोई बुराई नही कि विश्व के दूसरे देश उनकी प्रतिभा और क्षमताओं से लाभ उठा सके उर उस को भी अपनी प्रतिभा का उचित मूल्य मिल सके।
प्रतिभा पलायन को रोकने से आर्थिक समस्याऐं हल नहीं होती। जहाँ सरकार को इन प्रतिभासम्पन्न पुरूषों और महिलाओं को ऐसी प्रकार की सुविधाएं मुहैया करने का प्रयास करना चाहिए, वहां इन लोगो को भी पारस्परिकता और देश प्रेम की भावना को स्वीकार करना चाहिए।
इन प्रतिभाशाली व्यक्तियों को अपने देश को अधिक प्यार और श्रद्धा की दृष्टि से देखने का प्रयास करना चाहिए और पहला अवसर प्राप्त होते ही इसे छोड़ कर नहीं भाग जाना चाहिए । हाँ! अगर उसकी प्रतिभा के अनुरूप उसे पारिश्रमिक नहीं मिल रहा है तो उसे रोकने भी ठीक नहीं होगा।
गीता भदौरिया