दिनांक :12.12.2021
समय : शाम 5:30 बजे
प्रिय सखी,
कार्यालयीन व्यस्तताओं के चलते, इस माह डायरी लेखन बहुत ही बाधित रहा, उसके लिए क्षमाप्रर्थी हूँ। लेकिन मैंने अपने सह लेखकों/ लेखिकाओं को बहुत ही मिस किया। 'मिस' शब्द से में कभी-कभी कंफ्यूजिया जाती हूँ क्योंकि 'मिस' में 'कुछ खोना' का नकारात्मक भाव रहता है, जबकि 'याद किया' में 'कुछ पाने' का सकारात्मक भाव होता है, इसीलिए हिंदी को वैज्ञानिक भाषा कहा जाता है।
किसान अपना आंदोलन समाप्त कर नाचते-गाते, खुशी मनाते अपने घरों को चले गए हैं। पर किसान नेताओं को मलाल है कि उनकी डेढ़ वर्ष की मेहनत उतना चटक रंग नहीं ला पाई जितना मोदी जी के अचानक कृषि क़ानून की समाप्ति के एलान ने योगी जी का चुनावी रंग चकाचक कर दिया, हींग लगी न फिटकरी, रंग चोखा टाइप!
लगभग 10-12 दिनों से मैंने शायद ही किसी का लेख पढ़ा है, इसीलिए मेरे लेखों पर भी पाठक कम हो गए हैं, इस आंख पढ़ और उस आंख पढ़ा टाइप!😛
खैर, अर्ज़ किया है:-
घर जाने की खुशी में,
किसानों के गालों पर
छाई है गुलाबी रंगत।
शीत की महकती प्रीत में,
हमको भी साथ ले ले।
उठाये तमाम मुद्दे,
जुटाए साजों-सामान भी,
मसीहा-ए-किसान-पंगत।
चुनावी मौसम की जीत में,
हमको भी साथ ले ले।
पृथ्वीराज चौहान संग
अनेकों जांबाजों ने,
जीवन की दी आहुति,
सीडीएस जनरल रावत की संगत।
देशभक्ति की शहादत में,
हमको भी साथ ले ले।
आपकी सखी,
गीता भदौरिया