दिनांक : 15.11.2021
समय : दोपहर 2 बजे
प्रिय सखी,
सर्दियों की सुगबुगाहट के उपरांत अब उसकी तेज आवाजे भी सुनाई देने लगी हैं। सुबह शाम सर्दी है और दिन में नार्मल। सर्दी की ये जादू वाली झप्पी हमे बहुत पसंद आ रही है। क्या है ना कि हम ऐसे प्राणी है जिसे सर्दी में बहुत सर्दी लगती है और गर्मी में बहुत गर्मी, पता नहीं क्यूँ? तो ये वाला मौसम हमारे मिजाज के अनुकूल है।
वैसे ये मौसम काफी बचत वाला मौसम है। पंखे और एसी बन्द हैं, ब्लोअर का मौसम है नहीं, गीजर भी कम चलता है क्योंकि, बच्चों के प्रैक्टिकल चल रहे हैं तो बिना नहाए भाग जाते हैं, बड़े चलाते नहीं, कहीं बूढ़े न समझ लिए जाए। कुल मिलाकर, घर में बिजली की और गाड़ी में पेट्रोल की बचत हो रही है। पता नहीं कब तक? क्योंकि दिल्ली किसी भी सिचुएशन में नार्मल बिहैव नहीं करती। या तो भयंकर गर्मी या भंयकर सर्दी, भारी बरसात और वोटिंग हो जाये तो एकतरफा वोट, चाहे स्टेट हो या सेन्टर (सेन्टर भी दिल्ली में ही बैठा है ना)।
मुद्दे से भटकना हमारी आदत बनता जा रहा है।
तो बात हो रही है जादू की झप्पी की। अमा! एक जादू की झप्पी कोई कंगना रनौत को भी दे दो, अरसे से बीमार है बिचारी, कुछ भी अनाप-शनाप बोलती है। इतना कुछ दिया इस देश ने उसे फिर भी भी उसकी सोच भीख तक ही पहुंच पाई। अब तो पार्टी ने भी किनारा करना शुरू कर दिया। उसे जादू की झप्पी की सख्त जरूरत है। सुन रहीं है ना कंगना की माताजी!
वैसे एक बार शब्द को भी जादू की झप्पी देना चाहते है। आपका सॉफ्टवेयर घपला कर रहा है। सॉफ्टवेयर के संविधान में आपने अभिव्यक्ति की आज़ादी का नियम डाला ही नही। हमने दूसरी पुस्तक पब्लिश की वह भी अटक गई आपके सॉफ्टवेयर में- अभिव्यक्ति या अंतर्द्वंद। सॉफ्टवेयर गड़बड़ा गया है शायद! क्योंकि पहले भी मिलते जुलते नाम से पुस्तक उसे पसंद नहीं आई और किसी को भी दिखाई नही दी । हमने गुस्से में उससे चेप्टर ही गायब कर दिए।,🤣
और भी लिखना चाहते है, पर लंच टाइम समाप्त हो रहा हैं, फिर मिलते हैं।
जादू की झप्पी मेरी सभी सखियों ऐसे ही लिखती रहें।
आपकी जादुई सखी,
गीता भदौरिया