ओमिक्रोन घर-घर में फैल चुका है। घर और आफिस में, लगभग सभी को 2-3 दिन बुखार, खांसी, गला खराब, और पेट खराब की शिकायतें हो रहीं हैं। लोगों के मुताबिक यह ओमिक्रोन ही है, हालांकि वैरिएंट का टेस्ट तो हो नही रहा है, इसलिये विश्वास के साथ कह पाना मुश्किल है। लेकिन तसल्ली की बात है कि 3-4 दिन में सब ठीक हो जाते हैं। हालांकि डॉक्टर्स दवाइयां वही कोरोना वाली ही देते है -Livocetrizine+ montelucast, Azithromycine, pcm और एक अदद कफ सिरप।
ये दवाइयां इतनी कॉमन हो चुकी है कि बच्चे-बच्चे को याद हैं। पिछले डेढ़ साल से आप डॉक्टर के पास जाएं, कि बुखार है, गला खराब है, जुकाम है या सिर दर्द है, सबसे पहले आपको यही दवाइयां दी जाएंगी, क्योंकि जब से कोरोना आया है, बाकी बीमारियां नदारद हो गई है।
ठीक उसी तरह जैसे करोड़ों वर्ष पहले जब एक वायरस से मनुष्य की उत्पत्ति हुई थी तब डायनासौर गायब हो गए थे और बंदर आधे रह गए थे। यानी हम सबके पूर्वज बंदर नहीं हैं, कुछ के पूर्वज वायरस भी है।
मजे की बात है कि वही आधे बचे हुए बंदर आने वाली 10 फरवरी या उसके बाद ओमिक्रोन ग्रसित भीड़-भाड़ में मतदान करवाएंगे और डायनासौर की नई प्रजाति को जीत या हार मिलने के साक्षी बनेगें। आखिरकार लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव मनाना बहुत जरूरी है। बाकी सांस्कृतिक उत्सवों पर तो प्रतिबंध भी लगाए जा सकते हैं, पर इस उत्सव पर प्रतिबंध ना तो राम भक्त चाहते हैं, ना कृष्ण भगवान को केवल स्वप्न में देखने वाले।
अब इस लोकतांत्रिक उत्सव के निष्कंटक रूप से संपंन्न कराए जाने की निश्चिंतता के लिए दुर्लभ प्रजाति के केंद्र सरकारी लंगूर भी मतदान केंद्र भेजे जा रहे है, कि कहीं ये बंदर मतदान में कुछ गड़बड़ी ना करवा दें, और डायनासौर की कुछ विलुप्तप्राय प्रजातियां जीत ना जाएं।
लेकिन डायनासौर की कोई भी प्रजाति जीते, इनकी शारीरिक और मानसिक बनावट ऐसी है कि बाद में, जनता के साथ -साथ बंदर और लंगूर इन्हें नजर नहीं आते। लेकिन इसमें इन बेचारों का कोई दोष नहीं है, इन्हें बनाने वालों का दोष है।
इसलिए हे दोषयुक्त! कर्मठ जनता और सभी लंगूर व बंदर जिनकी डयूटी चुनाव में लगी है, अपना ओमिक्रोन अपने घर छोड़ कर जाना, अपनी रजाई और चद्दर ढोकर ले जाना क्योंकि सर्दी अभी तक अपनी ड्यूटी मुस्तैदी से निभा रही है।
चुनाव से स्वस्थ घर वापिसी की शुभकामनाओ के साथ।
गीता भदौरिया