दिनाँक : 24.11.2021
समय : शाम 7:50 बजे
प्रिय सखी,
कोरोना वायरस ने लोगों को आत्मनिर्भर बना दिया है। ऐसे लोग जो होटल, टिफिन या फिर ऑनलाइन खाना डिलिवर करने वाली कंपनियों पर निर्भर रहते थे उन्हें, लॉकडाउन ने यह बता दिया कि गृहस्थी का काम सीखना कितना जरूरी है। लॉकडाउन में सबसे अधिक परेशानी ऐसे लोगों को ही हो रही थी। तो अब लंच में कैंटीन में लोगों का टोटा रहेगा और लोग सीट पर ही घर का बनाया खाना खाएंगे।
कोरोना महामारी ने यह बात साबित कर दिया है कि इंसान फिजूलखर्जी बहुत ज्यादा करता है। ऐसा नहीं है कि लॉकडाउन में लोगों के खर्चे नहीं हो रहे हैं लेकिन कोरोना ने अनावश्यक खरीदारी पर लगाम जरूर लगा दी है। सीधी बात है, अगर बाजार ना जाओ तो खर्च नहीं होता। जब हम किसी शॉपिंग मॉल में जाते हैं तो हम उन चीजों को भी खरीद लेते हैं जिनकी हमें कुछ खास जरूरत नहीं होती है। तो अब मॉल में भीड़ देखने को नही मिलेगी।
कोरोना महामारी फैलने के बाद हमें साफ-सफाई की अहमियत समझ में आई है। मेट्रो की सीढ़ियों के हैंडल पर हाथ रखकर चलना, बालकनी की रेलिंग को छूना, लिफ्ट में एक कोने में जाकर टेक लेना, नाखून चबाना, नाक में उंगली करना जैसी आदतें लोगों ने छोड़ दी हैं।
हम जब किसी से मिलते थे तो हाथ मिलाते थे या फिर कोई ज्यादा करीबी होता है तो उसे लगे से लगाते थे। लेकिन कोरोना फैलने के बाद मेल-मिलाप का तरीका बदल गया है और कोरोना खत्म होने के बाद भी लोग एक-दूसरे से हाथ मिलाने से कतराने लगे है और उनकी जगह नमस्ते ने ले ली है।
डॉक्टर्स ने हमेशा से जंक और फास्ट फूड खाने से मना किया है। यह बात लॉकडाउन में साबित भी हो गई कि जंक फूड नहीं खाने से कोई बीमार नहीं पड़ता, बल्कि खाने के बाद बीमार जरूर हो सकता है। उम्मीद है कि MNCखुलने के बाद फास्ट फूड से लोगों को कुछ कम लगाव रहेगा।
लॉकडाउन और कोरोना ने लोगों के पारिवारिक रिश्ते को मजबूत किया है। वे लोग जो कल तक परिवार से दूर भाग रहे थे उन्हें भी आज परिवार की याद आ रही है। लॉकडाउन की वजह से लोगों को अपने बच्चों और परिवार के साथ वक्त बिताने का मौका मिला है जिसका सुखद परिणाम भविष्य में देखने को मिलेगा। आशा है कि पारिवारिक रिश्तों में मजबूती देखने को मिलेगी। लोगों को दोस्ती का मतलब भी समझ आ गया है।
अब बात सबसे जरूरी बदलाव की यानी, वर्क फ्रॉम होम- लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी कई कंपनियां वर्क फ्रॉम होम करवाना चाह रही हैं। लॉकडाउन खत्म होने के बाद वर्क फ्रॉम होम एक ट्रेंड बन गया है। पर यह आफिस जाने से बुरा है क्योंकि इसमे काम के घंटे असीमित हैं और कंपनी का कोई खर्च नही होता। क्योंकि वर्क फ्रॉम होम की स्थिति में कर्मचारी के लिए ऑफिस में कोई सेटअप की जरूरत नहीं है। इसके अलावा बिजली-पानी जैसे अन्य खर्च भी नहीं हैं| कई ऐसी कंपनियां पहले से ही वर्क फ्रॉम होम की सुविधा ले रही हैं।
पर मुझे चिंता उन नवीन बहुओं की है जो जॉइंट फैमिली में रहकर वर्क फ्रॉम होम में रात तक कार्य करती है, घर का काम करती है, और सास के ताने झेलती हैं कि सारा दिन फोन पे लगी रहती है। जान तो उन सासों की भी सांसत में है जिनकी बहु अब घर रहकर पूरे दिन छाती पर मूंग दलती है। कम से कम पहले सुबह काम करके आफिस चली जाती थी और शाम ढले आती थी तो रोब गांठ सकती थीं कि सारा दिन तुम्हारा घर संभालती हूँ। वर्क फ्रॉम होम वाले पतियों की तो इज्जत का ही फालूदा हो रखा है क्योंकि उनकी गृहणियों ने कामवाली बाई हटा रखी है। तो आफिस खुलने से इन सब की लाइफ पहले की तरह सेट हो जाएगी।
गीता भदौरिया