दिनांक : 13.11.2021
समय : सुबह 10 बजे
प्रिय सखी,
जिसे आप कल पूरा नहीं कर सके
उसका अफ़सोस करते हुए मत जागिए।
आज आप क्या हासिल कर पाएंगे,
इसके बारे में सोचते हुए जागिए।
सखी, आजकल इतनी व्यस्तता हो गई है कि मैं खुद इसका रोना रो रही हूँ। जबकि मैं दूसरों को कहती रहती हूँ कि टाइम मैनेजमेंट करने वाले कभी व्यस्तता का रोना नहीं रोते। पर सखी, "पर उपदेश कुशल बहुतेरे"।
जब खुद पर पड़ती है , तब पता चलता है। पर मन की बात भी उसी से की जाती है जो सुने। पर इतना मत सुनाओ की कान बहरे हो जाएं और मुखारविंद से आवाजें आनी शुरु हो जाएं कि भैया मन की बात ही कहते रहोगे, कि किसी और की भी सुनोगे या कुछ करके भी दिखाओगे? इसका मतलब अन्यथा ना लें। दो या तीन दिन से मैंने किसी-किसी की एक दो रचनाएँ ही पढ़ पाई हैं और मेरी रचनाओं पर पाठकों के कमैंट्स के उत्तर भी नहीं दिए। केवल किसी तरह डायरी लिख पा रही हूँ।
मेरी कहानी 'राम वही जो सिया मन भाये' पूरी हो गई है, ऐसा लग रहा है जैसे लड़की की शादी करके गंगा नहा ली हो। भई अब तो हमें डर लग रहा है, कि कहीं हम कभी प्रथम, द्वितीय या तृतीय ना आ जाये! कहे कि प्राउड मोमेंट को स्वीकारने के लिए आजकल के एटिकेट्स और डिसेंसी हमारी फितरत से नदारद है। तो हम डरते है कि कभी कौनो पोजीसन आ गया तो कहीं ऊदबिलाव की तरह बिहैव ना करने लगे। बहुत सोचते हैं कि एक सभ्य भारतीय की तरह डिसेंटली बिहैव करेंगे, पर हम ज्यादा देर तक अपनी आत्मा को कंट्रोल नहीं कर पाते।
सखी, कुछ मेरे शुरु के पाठक अब नदारद हैं, वजह पता नहीं , कारण शायद दैनिक और साप्ताहिक प्रतीयोगिता हो सकता है। अब चूंकि मैं आपको नहीं पढ़ पा रहीं हूँ तो आप मेरी रचना नहीं पढ़ेगें। अरे यार! लिखते रहिए।
लेकिन बहुत ज्यादा लिखने वालों,
कभी-कभी खामोशी को भी सुनो,
उसके पास भी बहुत कुछ है,
तुम्हे सुनाने के लिए,
तुम्हारी सुनने के लिए।।
ईर्ष्या ऐसी चीज़ है वो उन लोंगों से ज्यादा होती है जो लोग आपके बेहद करीब होते है। अनजान लोगों से ईर्ष्या कौन करता है?
भय ऐसी चीज़ है जो उन चीजों से होती है जो हमने कभी देखीं ही नहीं होती। देखी हुई चीजों से भय कौन खाता है?
अभिमान ऐसी चीज़ है जो उसे ही होती है जिसे ईश्वर समय से पहले बहुत कुछ दे देता हैं। समय के साथ मेहनत कर कमाई गई चीजों से अभिमान किसके अंदर आता है? उसे तो नम्रता की सीख मिल जाती है।।
स्वाभिमान उसे होता है जिसे ईश्वर ने समय पर भी कुछ नहीं दिया होता। जीवन में कमाने के चक्कर में स्वाभिमान कब पीछे छूट जाता है, पता भी नही चलता।
प्यार वो चीज़ है जो बाटने से बढ़ती है। लौट-लौटकर वापिस आती है। नफरत वो धुँआ है, जो एक सेकंड में सबको आपनी चपेट में ले लेता है। सबसे पहला शिकार वही होता है, जो अंदर से कमजोर है। स्वस्थ मन और शरीर में नफरत कहाँ टिक पाती है?
बहुत उपदेश हो गए।😊
मौसम बदल रहा है तो ध्यान से रहे, लापरवाही ना करे।
सखी, मैं बार-बार कहती हूँ आज भी कछुआ ही जीतता है। जो लोग रेगुलर लिखते रहे, बिना लाभ हानि की परवाह किये, वे आज मुझसे कहीं आगे हैं। इसलिए जो काम शुरु करें उसमें रेगुलर रहें, गृहणियों की तरह।
एक और दिन, एक और नई सुबह, एक और आशीर्वाद और जीवन में एक और मौका। उठो प्रयास करो और हर सांस को उपहार समझो और आसमान छूने की कोशिश करो।
क्या पता, आज आपका ही दिन हो। जिह्वा पर दिन में एक बार सरस्वती विराजती है, ऐसा लोग कहते हैं।
तुम्हारी सखी,
गीता भदौरिया