दिनांक : 27.11.2021
समय : सुबह 9:30
प्रिय सखी,
गुड मॉर्निंग!
बहुत दिनों बाद गुड मॉर्निंग बोलने का समय मिला है, तो अपने अनुभव से एक काम की बात बताती हूँ।
हमारी जिंदगी का समय सीमित है, जिसे हम किसी भी तरीके से बढ़ा नहीं सकते पर उसकी क्वालिटी को इम्प्रूव कर सकते हैं। मान कर चलिये कि आप की लगभग आधी जिंदगी समाप्त हो चुकी है।
क्या आज भी आप किसी और की जिंदगी जी रहे हैं? नहीं समझे?
मेरे ऐसा करने से इसको बुरा लगेगा, उसको बुरा लगेगा, वह ये चाहते हैं, वह वैसा चाहते हैं, आदि आदि। इसका मतलब है, आप ने अपना दिमाग ताक पर रख दिया है और किसी और के दिमाग से चल रहे है। वह शख्श अपनी जिंदगी तो शान से जी रहा/रही है पर आपको मजबूर कर रहा/रही है कि आप भी उसके अनुसार चलें, और आप चले जा रहे हैं।
184 लाख योनियों के बाद सत्कर्म से मनुष्य का जीवन आपको मिला है, अपना जीवन तो जियें, कब जिएंगे? आपको अपने हिसाब से चलाने वाले पूरा जीवन आपके पास ही रहने वाले हैं। आप बुढ़ा जाएंगे, तब अपने आपको कोसेंगे, काश मैने अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी होती!
आप जिंदा है, जिंदा होने का सबूत तो दीजिये!
सुप्रभात!
गीता भदौरिया