दिनाँक : 11.1.2022
समय : शाम 6:30 बजे
प्रिय डायरी जी,
आपको पता है अध्यात्म क्या है?
अध्यात्म का शाब्दिक अर्थ है – ‘स्वयं का अध्ययन। यानि -
अध्ययन+आत्म
गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है – स्वभावो अध्यात्म उच्यते –
यानी, स्वभाव को अध्यात्म कहा जाता है।
स्व शब्द से कई शब्द बने हैं। ‘स्वयं’, स्वार्थ, स्वानुभूति, जो कि अनुभव विषयक ‘स्व’ है। सभी प्राणी मरणशील हैं। जब तक जीवित हैं, तब तक स्व हैं, तभी तक सुख हैं, संसार है, जिज्ञासाएं हैं। विज्ञान और दर्शन के अध्ययन है। प्रत्येक ‘स्व’ एक अलग इकाई है।
इन सबसे मिलकर भीतर एक नया जगत् बनता है। इस भीतरी जगत् की अपनी निजी अनुभूति है, प्रीति और रीति भी है। इन सबसे मिलकर बनता है ”एक भाव” इसे ‘स्वभाव’ कहते हैं। स्वभाव नितांत निजी वैयक्तिक अनुभूति होता है लेकिन स्वभाव की निर्मिति में माँ, पिता, मित्र परिजन और सम्पूर्ण समाज का प्रभाव पड़ता है।
जब हम इन सब को अलग- अलग पहचानते हैं और फिर इन सब को एकाकार करते हुए यह मानते है कि एक सत्ता है जो हमे चलाती है, यानी ईश्वर! तभी अध्यात्म का जन्म होता है।
इसलिये सखी अध्यात्म एक भाव है, जो मन में कहीं भी बैठकर और कुछ भी काम करते हुए आ सकता है, उसके लिए हमे अलग से पूजा-पाठ करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
कुछ ज्यादा ही आध्यात्मिक हो गया, चलो अब सांसारिक चायपान किया जाए।
शुभ संध्या!
गीता भदौरिया