गधे को तो कोई नहीं जानता है,
वह भूरा और चौड़ा, भारी होता है।
उसकी खुर्री फिसलती रहती है,
फिर भी वह अपनी जगह से हटता नहीं है।
एक दिन गधा सोते हुए था,
आसपास खाली-खाली था।
तभी वहां से एक कुत्ता गुजर रहा था,
उसने गधे को देखा और खूब हंसा।
कुत्ते ने कहा, "हाय! क्या असल्लीन है तू।
तेरी खुर्री फिसली रहती है फिर भी तू सोता है।
अगर मैं होता तो देखता क्या करता था,
शायद कुछ उपयोगी काम करता होता या फिर लोगों का मनोरंजन देता था।"
गधे ने सुना और सोचा,
कुत्ता सही कह रहा होगा।
उसे खुद पर शर्म आई,
अपनी बेकारी का अहसास हुआ उसे पाई।
वह अब नहीं सोता आराम से,
बल्कि काम भी करता है दिल से।
उसकी खुर्री अब नहीं फिसलती है,
बल्कि अब वह उपयोगी काम करता है।
कुत्ते के बोलने से गधा सीखा,
खुद को बेकार नहीं माना।
उसने सोचा कि वह क्या कर सकता है,
उसके लिए कौनसा काम उसके लिए ठीक होगा।
वह नदी के किनारे ले गया घास खाने,
जहां लोगों ने उसे परेशान करना बंद कर दिया था।
वह नदी में से पानी पीता था,
इससे उसके शरीर का तापमान भी नियमित हो जाता था।
उसने बीच-बीच में रुक कर देखा,
क्या उसे आस-पास कोई काम नहीं मिलता।
उसकी खुर्री से उसने अपने आप को फेंक दिया,
और बस उसे उपयोगी काम करने के लिए बनाया।
दोस्तों, यही तो होता है बदलाव,
जो हमें अपने आप में लाना होगा।
हमें अपनी बेकारी को छोड़ना होगा,
और खुद को उपयोगी काम में लगाना होगा।
इसी तरह जीवन के साथ खेलना होगा,
और खुद को स्थायी रूप से सफल बनाना होगा।