सफेद कागज हो या हो मन,
जब तक है खाली,
कितना लगता है प्यारा।
फिर भी उसके भरने को,
करता है दिल।
कुछ रंगीन तस्वीरे,
कुछ शब्द, कुछ कहानियां,
और कुछ कविताएं।
कभी गणित के मुश्किल सवाल,
कभी विज्ञान की बाते।
कभी शायरी तो,
कभी बही खाते।
जब भर जाता ये सफेद कागज,
रंग बिरंगे और कुछ काले नीले,
स्याह अक्षरों से।
फिर उसे फेंक दिया जाता,
किन्ही बंद अलमारियों में,
गोदामों में, कारखानों में।
हो जाता है कैद अपने,
इन रंगों के कारण,
वो सफेद कागज,
मिट जाती फिर उसकी मुस्कान,
जो कभी खुले आसमान के नीचे,
लहलहाता था,
हरी भरी पत्तियों का रंग,
रंगीन फल और सुनहरे पक्षियों,
के वो मीठे स्वर,
वो सब खो गए,
कागज बनकर।
कागज की किस्मत,
कब तक रह सकेगा वो कोरा।
भरा जाएगा, बंद किया जाएगा,
फेंका और कुचला जायेगा।
यही है नसीब कागज का,
जब तक था वो पेड़ बड़ा,
खुशियां थी उसके पास अपार,
नन्हे दोस्त रहते उसकी बाहों में,
बांटता था प्यार वो सारे जहां में अपना।
क्या किस्मत है कागज की,
कि वो इंसान का,
जब वो साथ पाया।
छीन ली पेड़ की सारी खुशियां,
चंद लफ्जों की खातिर,
न जाने कितने घर उजाड़े,
दिल उजाड़े, अहसास उजाड़े।
इंसान ने....