वो आकाश,
जो मेरे दिल को छू जाता है,
जो होता है कभी,
बादलो से भरा,
तो कभी खाली।
कभी करता वो वादे,
बरसती बूंदों संग,
उन ठंडी हवाओ का।
जो करता है पसंद,
दिल मेरा।
मगर न जाने क्यों,
ये आकाश तोड़ता दिल,
न जाने क्यों।
शायद है ये,
सबसे बड़ा।
ये आकाश,
जो दिल छू जाता है मेरा,
शायद इसलिए,
कि वो है बहुत बड़ा।
उसको नही पड़ता कोई फर्क,
किसके दिल पर क्या गुजरा।
वो आकाश,
जो है बहुत बड़ा।
और खुदगर्ज,
उसको क्या पता,
किसी का,
क्या दुख,
और क्या दर्द।
वो है अकेला,
न वास्ता इश्क से।
न दुख से,
न दर्द से।
वो आकाश,
उसे क्या पता।
उड़ते परिंदे,
मांगे क्या दुआ।
आकाश तो बस,
खाली स्थान है।
चमके जहां सूरज,
गरजे बादल महान है।
आकाश है गर्वित,
अपने स्वरूप पर।
क्या पता उसे,
सत्य स्वरूप का।
फिर भी है आकाश,
इस धरा का साया।
जिसका अंत न,
किसी ने पाया।
बड़े स्वरूप के बड़े ही रंग है,
बड़े रंग के अपने ही ढंग है।
कोन कहे आकाश को,
क्या सही,
क्या गलत।
जो भी कहे वो,
वोही गलत।
छोटे से कीट को,
जानना ये चाहिए।
बड़े आकाश से,
टकराना न चाहिए।
कीट की तो,
मृत्यु ही तय है।
मृत्यु ही तो,
कीट का भय है।
बादलों से भरा आकाश,
ही आस है।
जीवन की बस वोही,
मीठी सी प्यास है।
क्या पता आकाश,
कोन है।
गड़गड़ाते बादल,
या फिर मौन हैं....