धरती के गोद में घुमता था एक सर्प,
अपनी लम्बी बड़ी चाल में था अधिक अभिश्रांत।
उसकी आँखों में था कुछ अनोखा सा तेज,
जैसे वह जानता हो कि उसका खेल ज्यादा भयानक होगा।
उसने कुछ देर चलते हुए एक चूहे को पकड़ा,
और उसके चमड़े से बनी थी उसकी आशा।
जैसे ही वह उसे निगलने के लिए खोला अपना मुँह,
सर्प ने उसे छोड़ दिया, और फिर उसे चले जाने दिया।
यह दिखता है कि सर्प था बड़ा दयालु,
और वह किसी जीव के भीतर जो दूसरों को दिखाई नहीं देता हो।
जैसे वह चूहे को छोड़ दिया था,
इसी तरह उसने किसी व्यक्ति को भी अपनी भयानकता नहीं दिखाई।
सर्प की बड़ी चाल में था कुछ निर्भीकता,
और यह देखकर लगता है कि उसे दुनिया से कुछ नहीं डरता।
उसका स्वभाव था बड़ा अद्भुत,
और वह था एक सर्प, जो दूसरों के लिए हमेशा से रहस्यमय रहा।