ऐतिहासिक मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम बदल चुका है। अब इसे पं दीन दयाल उपाध्याय स्टेशन के नाम से जाना जाएगा। परसो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, रेल मंत्री पीयूष गोयल और उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित थे। उधर दूसरी ओर मुगलसराय का नाम बदलते ही सोशल मीडिया में विवादों का दौर शुरू हो गया है। इसी बीच वरिष्ठ पत्रकार निराला विदेसिया ने खुला पत्र लिख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बनारस के लंका चौक, गया रेलवे जंक्शन और सासाराम जंक्शन का नाम बदलने का आग्रह किया है। बड़े ही रोक ढंग से उन्होंने अपनी बातों को रखा है।
आदरणीय प्रधानसेवकजी,
सादर दंडवत,
महोदय,
मुगलसराय बदल गया तो अब और कोई मांग मानिए ना मानिए बाकि आप बनारस के सांसद हैं तो यह मांग जरूर मान लीजिए। सबसे पहले बनारस के लंका का नाम बदल दीजिए। देश में रामराज टाइप लाने की मूल अवधारणा पर ही करेजा पर मुंग टाइप दरते हुए अब तक यह नाम विराजमान है। देश में रामराज लाना है और आपके ही संसदीय क्षेत्र में लंका का वजूद रहेगा तो कईसे होगा? सामने घाट गंगा के उस पर रामनगर बाजार है। अहा, कितना सुंदर नाम है। अब इस पार लंका ठीक नहीं लग रहा। अगर ई नाम अईसहीं चलता रहेगा तो माना जाएगा कि गंगा जो है उ समंदर है तभी तो एक बार रामराजवाला रामनगर अउर ओकरे पार लंका। लंका का नाम बदलकर विभिषणनगर जैसा कुछ करना यथोचित होगा। सुंदर भी लगेगा। रामराज को स्थापित करने में अपना सर्वस्व दांव पर लगाने और कुर्बान कर देने के बावजूद डचों,पुर्तगालियों,मुगलों,फिरंगियों और फिर बाद में कांग्रेसियों के शासनकाल में सतत उपेक्षा की मार झेल चुके विभिषण के साथ न्याय भी होगा। यह ऐतिहासिक काम भी होगा। लंका पहले बदल दिया जाए अपने संसदीय क्षेत्र में, तब आपको दूसरा मांग पत्र सौंपेंगे कि बनारस के ही दिल में बसे खोजवां बजार का नाम बदलिए। बनारस के नवाबों के खोजाओं का वह मोहल्ला था तो खोजवां बजार बना दिया था बनारसियों ने।
बताइये तो एक तो मुसलमान नवाब उपर से खोजा लोग के नाम पर शहर के दिल में मोहल्ला। अच्छा जब खोजवा बदल दिया जाएगा तो फिर लहुरावीर,डयोढ़ियावीर,भोजूवीर आदि का भी नाम बदलने की मांग करेंगे। भूतों के नाम पर है यह सब नाम। बताइये, आप जैसे दुनिया के ताकतवर शासक के इलाके में भूतों के नाम पर कोई इलाका एग्जिस्ट करता रहे, यह तो चुनौती टाइप है आपके लिए। अभी ढेरे जगह का मांग करेंगे आपके संसदीय क्षेत्र बनारस में, पहिले प्लीज—प्लीज लंका का नाम बदल दीजिए। इसके लिए हम सदैव आभारी रहेंगे। हमरे बाबूजी लंका इलाका में ही घर बनाये हैं तो वहां के निवासी होने के नाते हक से मांग किये हैं।
मुगलसराय का नाम पेंट—पोचारा कर के जिस दिन दीनदयाल नगर हो रहा था, उस दिन अहले सुबह से शाम तक वहीं खड़ा था। देख रहा था, महसूस रहा था। मुगलसराय ही वह स्टेशन है, जिससे सबसे ज्यादा वास्ता रहा है। वहीं सबसे ज्यादा बार उतरना हुआ है, वहीं से कहीं जाना हुआ है। 11 साल की उम्र में पहली बार अकेले यात्रा करना शुरू किया था। ट्रेन चढ़ाकर नाना ने भेज दिया था कि चले जाओ, उतर जाना मुगलसराय, फिर चले जाना बनारस। तब से मुगलसराय स्टेशन से रिश्ता बना सो दिन—ब—दिन प्रगाढ़ ही होता गया। न जाने कितनी रातें गुजरी है उस स्टेशन पर। न जाने कितनी बार घंटों—घंटों बैठ ट्रेन आने के इंतजार में समय गुजारे हैं वहां। एक तरीके से माशूक स्टेशन सा ही रहा है वह तो बदलाव को महसूसने ही अहले सुबह पहुंचा था। उसी अनुभव को लिखने के लिए सुबह से बैठा हूं लेकिन उफ्फ यह फोन।।।बार—बार,ट्रिंग—ट्रिंग।
हमरे मूल ननिहाली के शहर गया का नाम तो अविलंब बदलना चाहिए। बताइये भला, हर साल करीब 15 लाख हिंदू धर्मावलंबी आते हैं वहां। सरकारी आंकड़ा बताता है। दुनिया भर में प्रसिद्ध है गया बाकि सोचिए तो आते होंगे तो टिकट लेते समय गया नाम लेते होंगे। शहर में रहते होंगे तो गया नाम लेते होंगे। रास्ता में जहां जाते होंगे गया—गया देखते होंगे।पाप लगता होगा कि नहीं। आते होंगे पाप काटने, चढ़ जाता होगा पाप। असुर के नाम पर भला कहीं नगर होना चाहिए अब। गयासुर के नाम पर ही न गया नाम है? ई तो हिंदू धर्म के खिलाफ है। देश के विकास में और हिंदू धर्म के विराट प्रसार में सबसे बड़का बाधक। इ से हम मांग करते हैं कि इसका नाम अविलंब बदला जाए। विष्णुनगर, वामनगर वगैरह किया जाए। नहीं करेंगे न श्रीमान तो हमलोग बुझेंगे कि देश से कटा हुआ इलाका है हमरा।देश का हिस्सा नहीं है। होता तो आप विचारते नहीं हमें भी मुख्यधारा में शामिल करने पर। विकास में सहयोगी नहीं बनाते।
ऐसा है कि मेरे शहर सासाराम का मूल या ओरिजनलवाला नाम सहसराम बताते हैं सब। कहते हैं कि सहस्त्राबाहू और परशुराम लड़े—भीड़े थे वहां तो सहस्त्राबाहू का सहस और परशुराम का राम लेकर उसका नाम सहसराम हो गया था जो बाद में सासाराम हुआ। यह तो एकदम्मे से घोर अन्याय है। विकास पथ में बाधक। हिंदू धर्म का मजाक उड़ाता हुआ नाम है। बताइये भला पहले राक्षस का नाम, फिर परशुराम जैसे देवता का नाम? देवता के पहले राक्षस का नाम अब नहीं सोहाता। लगता है कि हमारा इलाक देश की मुख्यधारा से कटा हुआ है, तभी तो इतिहास के इतनी बड़ी भूल को सुधारा नहीं जा रहा। अत: श्रीमान से विनम्र निवेदन है कि मेरे शहर का नाम बदलकर देश के विकास में और हिंदू धर्म के अनुसार देश को ढालने में हमारे इलाके के लोगों की भूमिका को भी नजरअंदाज न किया जाए। हमारे शहर का नाम रामसहस या रामसासा कर दिया जाए। इस कृपा के लिए हम श्रीमान का सदैव आभारी रहेंगे।
भवदीय
गया-सासाराम रेलवे स्टेशन का नाम बदलने के लिए PM को लिखा गया पत्र, सोशल मीडिया पर हुआ वायरल