नई दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग पर बलवंत राय मेहता लेन में है कोठी नंबर 11ए. बाहर से देखने में यह एक शांत सरकारी बंगला है, जो देश के बाकी सांसदों की तरह बिहार के मधेपुरा से छह बार से सांसद राकेश रंजन उर्फ पप्पू यादव को मिला हुआ है. बंगले में दाखिल होते ही ‘द्रोहकाल के पथिक’ पप्पू यादव नजर आते हैं. किसी चैनल को फोन पर बाइट दे रहे हैं. उनके सामने उनके समर्थक बैठे हुए हैं. फोन पर उनकी बातचीत में आवाज इतनी बुलंद है कि लगता है फोन पर नहीं किसी चुनावी सभा में बोल रहे हैं. वे मुजफ्फरपुर कांड के बारे में काफी खफा थे.
उनसे इंटरव्यू इस बारे में करना था कि देश के अगले लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी का रुख किस तरफ होगा. क्या वे अलग लड़कर आरजेडी और कांग्रेस के गठबंधन के वोट काटेंगे या फिर कांग्रेस से सांसद अपनी पत्नी रंजीता रंजन की सलाह मानकर लालू और कांग्रेस के करीब जाएंगे. हम यह भी जानना चाहते थे कि पहले लोकसभा और फिर विधानसभा चुनाव में बिहार के जातिगत समीकरणों को वह किस तरफ देखते हैं.
लेकिन सुभाष चंद्र बोस को अपना आदर्श मानने वाले पप्पू को जैसे राजनैतिक बातों में कोई रुचि ही नहीं आ रही थी. वे बोले, चलिए पहले मेरे साथ चलिए. वे अपने बंगले में अंदर दाखिल हुए. बाहर से लुटियन की दिल्ली का सामान्य नजर आने वाला बंगला अंदर से बदलने लगा. बाकी सांसद और मंत्रियों के बंगले की तरह यहां झाड़-फानूस, खूबसूरत पेंटिग्स, अष्टधातु के गणेश जी और सजावटी बुद्ध नहीं दिखाई दे रहे थे. उलटे पीछे बहुत से अस्थायी ढांचे खड़े दिखाई दिए. ये प्लाईवुड से बनाए गए कमरे थे, जिनके ऊपर टीन की छत थी. उनके बीच से गुजरने के लिए संकरे गलियारे थे. जिनमें यहां वहां कपड़े सुखाने के लिए रस्सियां टंगी हुई थीं, और कई बार किसी के सूखते हुए अंडरवियर-बनियान से सिर बचाकर आगे बढ़ना होता था.
इन कमरों में झांककर देखना शुरू किया तो वहां गद्दे बिछे हुए थे. बिहार के गांवों से आए लोग वहां दिखाई दे रहे थे. इनमें सूती साड़ी पहने महिलाएं और पजामा बंडी पहने पुरुष थे. कोई लेटा हुआ था तो किसी के चेहरे पर दर्द के भाव थे. एक लड़के के सिर पर पट्टी बंधी हुई थी. तभी एक बूढ़ी माताजी पप्पू यादव के पास आकर रोने लगीं, मेरे बेटे को ब्रेन ट्यूमर हो गया है. पप्पू ने उन्हें ढांढस बंधाया.
फिर हमसे मुखातिब हुए: यहां बिहार से या यों कहें देशभर से लोग आते हैं. ये मेरा सेवाश्रम है जिसको भी दिल्ली में इलाज कराना होता है, सीधा यहां चला आता है. करीब 500 लोगों के ठहरने का इंतजाम मैंने बंगले में कर रखा है. वैसे इससे ज्यादा ही लोग यहां बने रहते हैं. उनके खाने-पीने का इंतजाम यहां रहता है. एम्स, सफदरजंग और दूसरे बड़े अस्पतालों में इन लोगों के इलाज का इंतजाम कराना पप्पू की जिम्मेदारी है. लोगों को अस्पताल में अप्वॉइंटमेंट दिलाने और वहां लाने ले जाने के लिए सांसद ने पांच लोगों को स्टाफ रखा हुआ है. सबका इलाज सुनिश्चित कराना इन लोगों की जिम्मेदारी है. और जो काम इनके किए न हो, उसके लिए पप्पू का फोन हाजिर है.
इन कमरों में घूमते-घूमते पप्पू यह बात ताड़ गए कि पत्रकार महोदय अब यह पूछेंगे, तो वोट पाने का आपका यही तरीका है. इसलिए वे एक छोटे कमरे में ले गए. यहां एक पति-पत्नी पिछले ढाई साल से रह रहे हैं. मनोज कुमार पेशे से अध्यापक हैं और पति-पत्नी दोनों गंभीर रूप से बीमार हैं. पप्पू उनका हालचाल पूछते हैं और उनसे कहते हैं, इन्हें बता दीजिए कि आप पप्पू को वोट नहीं देंगे. आप वोट जाति देखकर ही देंगे. मनोज हाथ जोड़कर खामोश रहे.
पप्पू कहते हैं, इस देश की राजनीति बहुत खराब है. देश को नेता लूट रहे हैं. लेकिन इससे भी ज्यादा खराब यहां की जनता है. जनता को अपने भले-बुरे से कोई मतलब नहीं है. वह जात, धर्म और रिश्वत पर वोट देती है. कौन सिलाई मशीन बांट रहा है, कहां से साइकिल मिलेगी, कौन सस्ता चावल दे रहा है, कौन अपना सगा है और किसकी जात क्या है. इसी पर वोट पड़ता जा रहा है. देश के अच्छे भले से जनता को कोई मतलब ही नहीं है. मेरा बस चले तो मैं इस जनता के ऊपर परमाणु बम पटक दूं.
इतना गुस्सा, तो फिर लोगों का इलाज क्यों करा रहे हैं. पप्पू कहते हैं, तो क्या करूं. मैं आनंदमार्गी हूं, क्रांतिकारियां के परिवार से हूं. देखा नहीं जाता, इसीलिए तो राजनीति में आया हूं. इन सबके लिए लड़ता ही रहूंगा. आपकी छवि तो बाहुबली नेता की है, इस सब के लिए पैसा कहां से जुटाते हैं.
पप्पू यादव: पता कर लीजिए हम बिहार के सबसे बड़े जमीदार परिवारों में से थे. आजादी के समय हमारे पास 9,000 एकड़ जमीन थी. लेकिन हमारा परिवार जमींदारी के खिलाफ खड़ा हुआ. अब तो 100 एकड़ जमीन ही बची है. जमीन बेच-बेचकर लोगों की सेवा कर रहा हूं. आप मधेपुरा में किसी से पता कर लीजिए. और हां, सिर्फ इलाज ही नहीं कराता, रोज दो-तीन लाख रुपये लोगों को बांटता हूं. दोस्तों से और भले लोगों से गुजारिश करता हूं कि वे मदद करें और वे करते हैं.
अब यह पूछना बनता था कि जब भाई-भाई की मदद करने पर राजी नहीं हैं और लोग बूढ़े मां-बाप को वृद्धाश्रम में छोड़ आते हैं, तब कोई किसी के कहने पर लाख रुपये कैसे दे देगा. पप्पू कहते हैं, यहां बैठ जाइये और देखते रहिए. दुनिया उतनी बुरी भी नहीं है. एक बात और कि देशभर के डॉक्टरों को पता है कि अगर पप्पू यादव कोई मरीज भेजेगा तो उसके इलाज में लूट नहीं करनी है. मेरा फोन पहुंचते ही लोगों के बिल कम हो जाते हैं.
उसके बाद बंगले की पीछे की सड़क पर जाकर उन्होंने दिखाया कि कैसे इलाज कराने आए बहुत से लोग बाहर टहल रहे हैं. पप्पू यह सब दिखाकर बहुत खुश नजर आ रहे थे. इसके बाद उन्होंने अपनी दो किताबें द्रोह काल का पथिक और जेल हमें भेंट की. चलते-चलते हमने उनसे सवाल पूछा तो चुनाव में किधर जाएंगे. पप्पू ने कहा लोकसभा चुनाव में चार सीटें जीतने का मेरा लक्ष्य है. विधानसभा चुनाव में 40 सीटों पर जन अधिकार पार्टी दिखाई देगा. बिहार की सरकार बिना पप्पू के नहीं बनेगी. केंद्र की राजनीति में उन्होंने कहा कि राहुल गांधी साफ दिल के नेता हैं. बीजेपी में उन्होंने गडकरी के काम की तारीफ की और बिहार के बारे में बोले के लालू जी बहुत अच्छे नेता हैं, लेकिन आज बुढ़ापे में उनकी जो दशा हो रही है, उसकी वजह उनका यह परिवार है. लालू का परिवार सिद्धांतों से भटका हुआ है, यह लालू की राजनीति को खत्म कर देगा.
Source: Zee News