भारत और पाकिस्तान, दोनों मेरे मुल्क हैं. मैं पाकिस्तान जाने के लिए कोई पासपोर्ट नहीं लूंगा.
– महात्मा गांधी
गांधी को भावनात्मक दृष्टिदोष था. साफ देख पाएं, इसलिए चश्मा पहनते थे. मुल्क के बंटवारे के बाद बॉर्डर नहीं देख पा रहे थे मगर. जनवरी 1948 आ गई थी. विभाजन को पांच महीने बीत गए थे. गांधी की रट थी, पाकिस्तान जाऊंगा. उनको कुछ काम निपटाने थे भारत में. हिंदू-मुस्लिम हिंसा खत्म करानी थी. इरादा किया था कि इसके बाद पाकिस्तान जाएंगे. बिना वीजा और पासपोर्ट के. कहते थे, मेरा ही देश है. अपने देश जाने के लिए पासपोर्ट क्यों लूंगा? गांधी का क्या हश्र हुआ, ये सब इतिहास है. सत्यापित. सिद्ध. आज उनके जन्मदिन पर पड़ोसी के यहां झांकने का दिल किया. उसने कैसे याद रखा है गांधी को? याद करता है कभी कि नहीं? सन 1947 के बाद पैदा होने वाली नस्लें गांधी को जानती हैं? उनका कोई नामलेवा है या नहीं वहां? कुछ वाकयों में देखिए, पाकिस्तान ने गांधी के साथ क्या सलूक किया है:
पाकिस्तान के इतिहास की किताबों में ‘हिंदू विलेन’ हैं गांधी
पाकिस्तान ने अपनी इतिहास की किताबों में गांधी को जगह दी है. हिंदुओं के नेता के तौर पर. हिंदुत्व में गहरी आस्था रखने वाला. हिंदुओं का समर्थक. बंटवारे के लिए जिम्मेदार. अल्लाह के कानून की जगह हिंदुओं के कानून वाला देश बनाने का पक्षधर. ऐसा देश, जहां मुसलमानों को अछूत समझा जाता. जहां अंग्रेजों की गुलामी खत्म होने के बाद मुसलमानों को हिंदुओं का गुलाम बनना पड़ता. मुसलमानों की सच्ची आजादी का विरोधी. ऐसी आजादी का विरोधी, जहां मुसलमानों पर केवल मुसलमान ही राज करते. पाकिस्तानी इतिहास में गांधी को ऐसे ही ‘खलनायक’ की जगह दी गई है. जिन्होंने इतिहास के नाम पर केवल ऐसी ही कोर्स की किताबें पढ़ी हैं वहां, वो गांधी को ऐसे ही जानते हैं.
पाकिस्तान दुनिया की इकलौती जगह है, जहां गांधी को संत नहीं माना जाता. सबसे ऊंचे सरकारी महकमों से लेकर किसी छोटे-मोटे पत्रकार तक, सब गांधी को पाखंडी मानते हैं. ऐसा शख्स, जो कि भारत की आजादी के बाद वहां रहने वाले मुसलमानों के ऊपर हिंदुओं का राज कायम करना चाहता था.
: गांधी, द व्यू फ्रॉम पाकिस्तान (वॉशिंगटन पोस्ट में छपे एक लेख की पंक्तियां)
‘गांधी’ को पाकिस्तान ने बैन कर दिया
सर रिचर्ड ऐटनबरो की मशहूर ऑस्कर-विजेता फिल्म ‘गांधी’ पाकिस्तान में बैन कर दी गई थी. वहां उसे रिलीज करने की इजाजत नहीं दी गई.
गांधी की हत्या पर जिन्ना ने क्या कहा?
आपको पाकिस्तान के कायदे आजम जिन्ना का वो बयान पढ़ना चाहिए. जो उन्होंने गांधी की हत्या के बाद दिया था. उनके बयान से ऐसा लगा कि जैसे गांधी ने बस हिंदुओं की आजादी के लिए आंदोलन किए. बस हिंदुओं की आजादी के लिए अपना हाड़-मांस जलाया. वो भी तब, जब हत्या से ठीक पहले गांधी ने मुसलमानों की हिफाजत के सवाल पर ही अन्न-जल त्यागा था. जब दोनों देशों की सरकारें आजादी का जश्न मना रही थीं, तब गांधी नोआखाली में हिंदू-मुस्लिम नफरत खत्म करने के लिए गलियां नाप रहे थे. 1947 में शुरुआत से लेकर अब तक पाकिस्तान में गांधी की आधिकारिक पहचान ऐसी ही बनी हुई है.
गांधी के ऊपर हुए बेहद कायराना हमले के बारे में जानकर मैं हैरान हूं. इस हमले में उनकी मौत हो गई. हमारे राजनैतिक विचारों में चाहे जितना विरोध रहा हो, लेकिन ये सच है कि वो हिंदू समुदाय में पैदा होने वाले महानतम शख्सियतों में से एक थे. मैं काफी दुखी हूं और अपनी हिंदू समुदाय के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करता हूं. गांधी की हत्या से भारत को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई नहीं की जा सकती.
: मुहम्मद अली जिन्ना, 30 जनवरी, 1948. (महात्मा गांधी की मौत पर बोलते हुए)
दंगाइयों ने गांधी की प्रतिमा पर उतारा गुस्सा
साल 1931. कराची, पाकिस्तान. यहां एक महात्मा गांधी की एक मूर्ति लगाई गई. कांसे की. ये प्रतिमा मौजूदा कोर्ट रोड पर थी. पहले इस सड़क का नाम किंग्स वे हुआ करता था. यहीं, सिंध हाई कोर्ट की इमारत के उल्टी तरफ थी गांधी की मूर्ति. इंडियन मर्चेंट्स असोसिएशन ने लगवाई थी. प्रतिमा के नीचे, पैरों के पास लिखा था- महात्मा गांधी, स्वतंत्रता, सत्य और अहिंसा की नामी शख्सियत. 14 अगस्त, 1947. पाकिस्तान आजाद मुल्क बना. 1950 आते-आते गांधी की मूर्ति तोड़ दी गई. दंगा हुआ था. दंगाइयों ने गांधी की निर्जीव मूर्ति पर गुस्सा उतारा. उसे क्षत-विक्षत किया. 1981 में ये टूटी मूर्ति कराची स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास को सौंप दी गई. इस्लामाबाद स्थित भारतीय दूतावास ने मूर्ति की मरम्मत कराई. इसे अपने परिसर में लगाया. आज भी ये मूर्ति वहीं मौजूद है. पाकिस्तान में है, लेकिन फिर भी पाकिस्तान में नहीं.
गांधी के नाम पर एक बाग था, उसका भी नाम बदल दिया
कराची शहर में एक बाग था. ठीक उस जगह जहां 1799 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना पहला कारखाना खोला था. विक्टोरिया गार्डन. 1934 के पहले तक इसी नाम से जाना जाता रहा. 1934 में गांधी कराची गए. इसी विक्टोरिया गार्डन में उनका भव्य स्वागत हुआ. उनके प्रति सम्मान दिखाते हुए इस जगह का नाम बदलकर महात्मा गांधी गार्डन रख दिया. बंटवारे के बाद पाकिस्तान में जगहों और चीजों के नाम बदलने की रवायत शुरू हुई. ये शुरुआत तो भारत में भी हुई, हो रही है. पाकिस्तान में ये रोग पहले आया. इतिहास बदलना उसके हाथ में नहीं. सो वर्तमान बदलकर खुश हो रहा था. इसी कड़ी में गांधी गार्डन का नाम बदलकर कराची जुलॉजिकल गार्डन्स कर दिया गया.
एक जगह फिर भी मौजूद है गांधी की मूर्ति
साल 2010. पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद. यहां एक संग्रहालय खुला. नैशनल मोन्युमेंट म्यूजियम. यहां एक जगह जिन्ना और गांधी आमने-सामने खड़े हैं. मूर्तियों की शक्ल में. ऐसा लग रहा है मानो दोनों बहस कर रहे हों. गांधी का वहां जैसा चरित्र चित्रण किया जाता है, उस हिसाब से शायद इस मूर्ति का संदेश हम समझ सकते हैं. ‘हिंदुओं के नायक’ गांधी ‘मुस्लिमों के नायक’ जिन्ना से बहस करते हुए. बंटवारे के विरोध में. पक्का तो नहीं पता, लेकिन शायद इस दृश्य में जिन्ना की भूमिका मुख्य अभिनेता और गांधी की मौजूदगी किसी ‘सहयोगी कलाकार’ की तरह रची गई है.
म्यूजियम एक तरह से चेतना का प्रबंधन करते हैं. वे हमारे सामने इतिहास की व्याख्या करते हैं. बताते हैं कि दुनिया को किस नजर से देखा जाए. दुनिया में खुद को कैसे तलाशा जाए. सकारात्मक नजरिये से किया जाए, तो म्यूजियम बेहद शानदार शैक्षणिक संस्थान हैं. अगर नकारात्मक तरीके से किया जाए, तो वो दुष्प्रचार करने का तंत्र हैं.
: हान्स हाक, मशहूर जर्मन कलाकार
नुकसान तो ले-देकर पाकिस्तान का ही है
जिन्ना और गांधी के बीच बहसें तो खूब होती थीं. मुलाकातों में भी. चिट्ठियों में भी. मगर गांधी के विरोध का जो तर्क था, वो इतिहास पाकिस्तान ने छुपा लिया. सही कहते हैं. सत्ता को जब अजेंडा पूरा करना होता है, तो इतिहास के साथ खिलवाड़ करना बड़ा कारगर साबित होता है. पाकिस्तान में गांधी इसी अजेंडे के शिकार हैं. इसमें नुकसान किसी और का नहीं, पाकिस्तान का ही है.