आप बीमार हो और डॉक्टर को दिखाने हॉस्पिटल जाओ. लेकिन वहां पहुंच कर आपको पता चले कि आपका इलाज डॉक्टर के बजाय सफाई कर्मी करेगा. फिर तो कुछ देर के लिए सन्न हो जाओगे. सही-गलत की समझ होगी तो बवाल काट दोगे. लेकिन उत्तर प्रदेश में ऐसा न हुआ. क्योंकि ये घटना जहां की है, वहां हाई-फाई लोग इलाज के लिए न पहुंचते हैं. वहां जो लोग जाते हैं, उनके पास ऑप्शन नहीं होता है.
ये घटना यूपी के मऊ के सरकारी अस्पताल की है. जहां साफ-सफाई करने वाले सफाई के अलावा इमरजेंसी वार्ड में मरीज का इलाज भी करते हैं. जैसे दवा देना, इंजेक्शन लगाना. मामला सामने के बाद बड़े अफसरों ने इस पर बात करने से मना कर दिया.
सरकारी अस्पताल की लापरवाही का ये कोई पहला नमूना नहीं है. हाल ही में मध्य-प्रदेश के एक अस्पताल से महिला गायब हो जाती है और उसे कुत्ते खा जाते हैं. और अस्पताल वालों को खबर तक नहीं है. उनकी नींद तब टूटी जब कैंपस से लाश की बदबू आने लगी.
साफ-सफाईकर्मियों द्वारा मरीज का ख्याल रखना कोई गलत बात नहीं है. लेकिन गलत ये है कि जिस चीज की आपके पास ट्रेनिंग नहीं है. आप उसे कैसे कर सकते हो. इनकी एक गलती की वजह से किसी मरीज की जान जा सकती है. फिर उसकी भरपाई कौन करेगा? ये घटना सरकारी अस्पतालों की हालत बयां करती है. जाहिर सी बात है डॉक्टर, नर्स अपनी जिम्मेदारी ढंग से नहीं निभा रहे हैं. ऐसे में सरकार को उन डॉक्टरों पर कार्रवाई करना चाहिए, जो अस्पताल और मरीज को भगवान भरोसे छोड़ देते हैं.
यूपी में सरकार नई है. सीएम नए हैं. कई नियम बदले हैं, लोगों को उम्मीद है चीजें बेहतर होंगी. कुछ चीजें सुधारी भी गईं. शोर भी हुआ. मीटबंदी और रोमियो की खबर गर्म है. पर ये जो हो रहा है ना, ये भी उसी यूपी में हो रहा है. इसे भी योगी आदित्यनाथ को ही देखना होगा. सरकारों की प्राथमिकताएं होती हैं. और हमारी समझ से एक मरीज की ज़िंदगी से जरुरी कुछ भी, किसी भी सरकार के लिए न होगा.