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भाग ( 7) बलि

21 दिसम्बर 2021

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गतांक से आगे 

रवि को पिछले चालीस साल पुरानी बातें एकदम से याद आ गयी । उसकी आंखों के सामने जैसे सब कुछ एक चलचित्र की तरह चल रहा था । किस तरह षडयंत्र पूर्वक बेला ने उसकी सार्वजनिक बेइज्जती की थी । किस तरह भूल सकता है वह बेला को । उस घटना के बाद उसने कभी बेला से बात करना तो दूर उसकी ओर देखा तक नहीं था । उस घटना के थोड़े दिनों बाद ही वार्षिक परीक्षाएं हो गई । अगली कक्षा यानी कक्षा 6 के लिए रवि ने जिद करके अपना एडमिशन दूसरे स्कूल में करवा लिया था । ना रहे बांस और ना बजे बांसुरी । वह बेला से दूर चले जाना चाहता था जिससे फिर कभी ऐसी घटना ना दोहराई जा सके । इसके बाद से वह ना तो कभी विनोद से मिला था और ना ही कभी बेला से । आज अचानक उस घटना की याद आ जाने से रवि का मन थोड़ा कसैला सा हो गया था । 

विनोद रवि की मनोदशा भांप गया । और यह होना स्वावाभिक था । रवि की जगह और कोई भी होता तो उसकी प्रतिक्रिया भी ऐसी ही होती या फिर इससे भी खराब होती ।  उसने कहा " सॉरी रवि, उस दिन मैं आपको बीच मंझधार में छोड़कर भाग गया था । बेला के उस व्यवहार के कारण मैं एकदम से बहुत डर गया था । मुझे जब कुछ नहीं सूझा तो मैं भाग खड़ा हुआ । वास्तव में उस दिन बेला का वह व्यवहार बहुत ही खराब था । उस समय तो वह बड़ी खुश थी कि उसने आपको पटखनी दे दी थी लेकिन जब तुम वह स्कूल ही छोड़ गये तब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ । लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी । उसने तुमको बहुत मिस किया था । वह उदास रहने लगी थी । उसके बाद से बेला एकदम से बदल गई थी । वो षडयंत्रकारी बेला की मृत्यु हो गई और एक नई मासूम बेला का जन्म हुआ । और मैं तो आज तक खुद को माफ नहीं कर पाया हूँ" । विनोद की आंखें छलछला उठीं । 

कमरे का माहौल काफी भारी हो गया था । रवि ने विनोद का हाथ अपने हाथों में ले लिया और विनोद के आंसू पोंछते हुये कहा "वो तो बचपन की नादानियाँ थीं । बचपन में तो शैतानी करते ही हैं सभी लोग । सही गलत को पहचानने की क्षमता कहाँ होती है बचपन में । नादानी में बहुत कुछ उल्टा सीधा कर जाते हैं हम लोग ।  पर इसका मतलब यह तो नहीं हुआ ना कि अपनी दोस्ती ही खत्म हो जाये । भगवान ने आज चालीस साल बाद मुझे मेरा बचपन वाला यार फिर से मिलवाया है । मैं उसका शुक्रिया कैसे अदा करूं, समझ नहीं आ रहा है" । रवि ने विनोद को गले लगाकर कहा 

"यह आपकी महानता है दोस्त जो मुझ अकिंचन को इतना सम्मान दे रहे हो वरना तो मैं किसी काम का नहीं हूं । और मेरा अपराध तो क्षमा के योग्य भी नहीं है । अब जब बेला को मुसीबत में देखा तो हिम्मत करके आपके पास चला आया " । 

"अरे हां, मैं तो भूल ही गया था । क्या हुआ बेला को ? कैसी मुसीबत आ गयी जरा खुलकर तो बताओ" ? 

बेला ने एम. ए. बी. एड कर लिया था और वह स्कूल व्याख्याता बन गई हिन्दी की राजकीय विद्यालय में । विगत वर्ष उसका स्थानांतरण खीमच गांव में हो गया था । वह बस से अप डाउन करने लगी । उसके पास बोर्ड परीक्षा की कक्षा बारह की हिन्दी विषय की उत्तर पुस्तिका आईं थीं जांचने के लिए । वह उन्हें लेकर स्कूल जा रही थी बस से । जब वह बस से नीचे उतरी तो उत्तर पुस्तिकाओं का वह बंडल बस में ही छूट गया । स्कूल पहुंचने के बाद उसे याद आया मगर तब तक बस जा चुकी थी । उसने बहुत ढूंढा उस बंडल को मगर वह नहीं मिला । इस घटना के लिए शिक्षा विभाग ने उसे जिम्मेदार मानते हुये तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया और विभागीय जांच बैठा दी । सुना है कि अब उसकी सेवा से बर्खास्तगी की तैयारी चल रही है । इस घटना से बहुत दुखी है वह और डिप्रेशन में चली गयी है । गुमसुम सी रहने लगी है वह । उसकी इस हालत को देखकर मैं इसीलिए आपके पास आया हूँ कि उसके बचने का कोई रास्ता मिल जाये । उसकी बर्खास्तगी नहीं हो । उसे कोई छोटा मोटा दंड दे दिया जाये । क्या ये संभव है ? आप तो बहुत बड़े अफसर हैं क्या इस काम में कोई मदद करोगे" ? विनोद का गला भर आया था ।

"यारों के लिए तो जान भी हाजिर है यार । बिल्कुल मदद करेंगे और जी भरकर करेंगे ।  बेला की बर्खास्तगी किसी भी कीमत पर नहीं होने देंगे । माना उससे गलती हुई है मगर वह अनजाने में हुई है, जानबूझकर नहीं हुई है । इस समस्या का कोई ना कोई तो हल निकल ही जायेगा । अच्छा, सुन, बहुत रात हो गई है , अब तू आराम कर । कल सुबह मिलते हैं नाश्ते पर । ठीक है । गुड नाइट" । 
"गुड नाइट" 
और रवि अपने कमरे में आ गया । तब तक मृदुला सो चुकी थी । रवि चुपचाप आकर सो गया । 

अगले दिन रवि और विनोद नाश्ते पर मिले । दोनों ने साथ में नाश्ता किया और दोनों रवि के ऑफिस आ गये । 

रवि ने मालूम करवाया कि वहां पर शिक्षा सचिव कौन हैं ? ज्ञात हुआ कि कोई मिस्टर भटनागर हैं वहां के शिक्षा सचिव । अचानक रवि उछल पड़ा । अरे , वहां तो रजनीश भटनागर हैं ना शिक्षा सचिव । अरे, वो तो मेरा बैचमेट है । अब काम हो जायेगा अपना " । रवि के होठों पर मुस्कान खेलने लगी । विनोद को भी लगने लगा कि उसने यहां आकर कोई गलती नहीं की थी । रवि ने रजनीश भटनागर को मोबाइल लगाया और कहने लगा 
"अरे रजनीश, और सुनाओ क्या हाल हैं ? कैसा चल रहा है ? बाल बच्चे सब मजे में हैं ? अच्छा सुन । एक काम है यार । एक स्कूल व्याख्याता हैं तुम्हारे वहां राजकीय सीनियर सैकंडरी स्कूल खीमच में , बेला त्रिवेदी । वो मेरी बचपन की सहपाठी है यार । उससे गल्ती से एक मिस्टेक हो गयी । वो एक दिन स्कूल जा रही थी । उसके पास बोर्ड की कॉपियों का एक बंडल था वह बस में ही रह गया । तुम्हारी सरकार ने उस बेचारी को सस्पेंड कर दिया और अब शायद टर्मिनेट करने की तैयारी है । इस घटना से बेला जी बड़ी अपसेट हो गई हैंऔर अब वो डिप्रेशन में है । उसे हर हाल में बचाना होगा । किसी भी कीमत पर । बताओ , तुम क्या मदद कर सकते हो" । रवि ने एक ही सांस में सारी बात बता दी और रजनीश को 'दबाकर' भी कह दिया था । सौभाग्य से शिक्षा विभाग के सचिव रजनीश भटनागर उसके बैचमेट निकल आये और एक बैचमेट इतना सा काम तो आसानी से कर ही सकता है । रजनीश भटनागर ने उसे आश्वस्त कर दिया था . 

विनोद को अब विश्वास हो गया कि अब बेला का टर्मिनेशन नहीं होगा । अब तक उसने सुना ही था कि IAS के पास असीम पॉवर होती है । वह दिन को रात और रात को दिन कर सकता है । सारी सरकारी मशीनरी उन्हीं के दिशा निर्देश में काम करती है । वह चाहे जो कर सकता है । "शक्तिमान" का दूसरा रूप है IAS । पलक झपकते ही काम बन जाता है । आज उसने साक्षात देख भी लिया था ।अब बेला का भी काम बन जायेगा इसका उसे विश्वास हो गया ।

शाम होते होते उधर से रजनीश का फोन आ गया था । अब काम हो ही जायेगा इसमें किसी प्रकार का कोई संदेह नहीं रह गया था । बस, उत्सुकता इतनी सी थी कि इस रायते को कैसे समेटा जायेगा " ? 

भारत में सरकारी मशीनरी की कार्य प्रणाली गजब की है । गधे को घोड़ा और घोड़े को गधा बनाने में यह सिद्धहस्त है । जिस किसी काम को करने के लिए अगर किसी IAS ने ठान लिया है तो वह फाइल सरपट दौड़ती है अन्यथा जिंदगी भर किसी आलमारी में पड़ी पड़ी धूल फांकती रहती है । और अगर किसी काम में कोई सचिव स्तर का IAS लग जाये तो फिर उस काम के होने में कोई संशय नहीं होना चाहिए । बड़े बड़े अधिकारियों का दिमाग बस इसी में ही चलता है । रवि ने ही रजनीश को युक्ति भी बता दी । कह दिया कि एक शपथ पत्र बेला से ले लिया जाये कि उसने तो वे कॉपियां संबंधित बाबू को दे दी थी । बाबू ने कहाँ रखी , उसे पता नहीं । इसमें बेला की क्या गलती है ? जब उसने कॉपी संबंधित बाबू को लौटा दी तो फिर ये सस्पेंशन कैसा और बर्खास्तगी कैसी" ? 

रवि ने विनोद को एक शपथ पत्र का प्रारूप बनाकर दे दिया और कहा कि बेला से यह शपथ पत्र सौ रुपये के स्टांप पेपर पर लिखवा ले और शिक्षा सचिव रजनीश भटनागर साहब को दे दे, बस समझो अपना काम बन गया । 

विनोद को यह बात हजम नहीं हो रही थी कि बेला को बचाने के लिए बेचारे बाबू की बलि लेनी पड़ेगी । यह तो नाइंसाफ़ी है किसी के साथ । ऐसा कैसे कर सकता है कोई ? उसे खामोश देखकर रवि ने उसे समझाया । 
"एक मिनट इधर देख विनोद "। रवि ने एक कागज पर नक्शा बनाते हुए कहा " ये एक सड़क है । इस सड़क पर एक लेन में तू अपनी कार से कहीं पर जा रहा है । अचानक तुम्हारे सामने एक ट्रक आ जाये तो तुम क्या करोगे" । रवि ने एक प्रश्न उछाल दिया विनोद की ओर ।

विनोद ने सोच समझकर कहा "बांये घुमा देंगे कार को" । 
"और अगर बांयी ओर कोई आदमी साइकिल से जा रहा है तब ? वह मर नहीं जायेगा " ?
"तब क्या ? तब दांयी ओर घुमा देंगे" ।
"अगर दांयी ओर से भी एक ट्रक ओवरटेकिंग करता हुआ तेज स्पीड से आ रहा है तब क्या करोगे" ? 

अब विनोद सोच में पड़ गया । बड़ी अजीब स्थिति है । सामने से ट्रक आ रहा है । अगर दांये या बांये नहीं मुड़े तो अपना मरना तय है । यदि दांयी ओर मुड़े तो भी अपना मरना तय है क्योंकि उधर से भी एक ट्रक बड़ी तेज गति से ओवरटेकिंग करता हुआ आ रहा है । और अगर बांयी ओर गाड़ी मोड़ी तो उस साइकिल सवार का मरना निश्चित है जो उधर से निष्फिक्र जा रहा है । करें तो क्या करें ? 

तब रवि ने कहा "सड़क पर तत्काल निर्णय लेना पड़ता है दोस्त ! इतना लंबा समय नहीं मिल पाता है । एक सेकंड भी बहुत होता है ऐसे समय । इतनी देर में तो सब कुछ बर्बाद हो जाता है । यह सड़क का सिद्धांत है कि जब अपनी जान पर बन आई हो तो अपनी जान बचाने के लिए और किसी की जान ले लेनी चाहिए । बस, यही काम हम भी कर रहे हैं । सड़क का सिद्धांत काम में ले रहे हैं ।  बेला की जान बचाने के लिये किसी न किसी की तो बलि देनी ही पड़ेगी न " ? रवि में समझाने की स्किल बहुत गजब की थी ।

विनोद को अब महसूस होने लगा था कि किस तरह पुलिस अपराधियों को छोड़कर निर्दोषों को फंसा देती है । उसी तरह ये बड़े बड़े नौकरशाह भी ऐसा ही करते हैं । अब इसके सिवाय और कोई विकल्प नहीं था । विनोद ने बेला को ऐसा करने के लिये कहा । बेला ने बुझे मन से वह शपथ पत्र प्रस्तुत कर दिया पर उसे यह समझ में नहीं आया कि इस शपथ पत्र से हो क्या जायेगा" ? 

तब रवि ने ही विनोद को समझाया "जब एक शपथ पत्र से सजा सुना देते हैं कोर्ट तो उस शपथ पत्र से किसी की नौकरी तो बच ही सकती है" । रवि की आंखों में चमक थी । 

शेष अगले अंक में 
 
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रचनाएँ
आवारा बादल
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एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिसने अपनी जिंदगी अपने ही ढंग से जी । मस्तमौला प्रवृत्ति का यह व्यक्ति प्रेम के सागर में गोते लगाकर भी सफलता के नये सोपान गढ़ता चला गया ।
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सुबह के आठ बज चुके थे मगर रवि गहरी नींद में सो रहा था । दिल्ली की लाइफ ऐसी ही है । लोग रात को देर से सोते हैं और सुबह देर से जगते हैं । सब कुछ लेट होता है दिल्ली में । शादी भी लेट, बच्चे भी लेट । "उठो

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