गतांक से आगे
खाना खाते खाते ही रवि मृदुला को विनोद की बातें बताने लगा
"जानती हो मृदुला , विनोद बचपन में बहुत बदमाश, शरारती, झगड़ालू और नंबरी हुआ करता था । इसीलिए तो इसका नाम "नंबरी" रख दिया था स्कूल में । इसकी और मेरी दोस्ती कैसे हुई, पता.है" ?
"मुझे कैसे पता होगा, बाबा ? मैं कोई आपके स्कूल में थोड़े ही पढ़ी थी जो आप दोनों की शैतानियों को देखती रहती थी । आप बताओगे तब तो पता चलेगा ना" । मृदुला के स्वर में उलाहना था लेकिन अधरों पर मुस्कान खेल रही थी ।
"यह भी सही है । तो फिर सुनो । नंबरी का स्कूल में एडमिशन मेरे बाद हुआ था । जैसा कि आमतौर पर होता है शुरू शुरू में बच्चे बहुत रोते हैं स्कूल जाते समय । विनोद भी बहुत रोता था । बहुत नाटक करता था स्कूल जाने में । शुरू में तो इसको इसकी मां या इसके पिताजी स्कूल छोड़ने आते । मगर आगे शायद वो व्यस्त रहे होंगे इसलिए नहीं आये । एक दो दिन विनोद स्कूल नहीं आया । तीसरे दिन तो गुरुजी ने हमें आदेश दे दिया कि जाओ और विनोद को यहां लेकर आओ । अपने साथ चार लड़के भी लेकर जाओ । और हां , खाली हाथ मत आना" ।
मृदुला आश्चर्य चकित होकर उन दोनों के बचपन की कारस्तानियां सुन रही थी । वैसे तो उसकी आंखें बड़ी बड़ी ही थीं मगर कौतूहल से वे और भी बड़ी बड़ी हो गयीं थी । झील सी गहरी नजर आने लगी थीं उसकी आंखें ।
रवि आगे कहने लगा " गुरुजी का आदेश मिलने के बाद हम सब लोग विनोद के घर की ओर दौड़ पड़े थे । जैसे कि कोई शिकारी अपने शिकार पर टूट पड़ता है । उन दिनों गुरुजी का आदेश भगवान के आदेश से भी बढ़कर होता था । टांगाटोली करके लाने में जो मजा था वह किसी और चीज में कहाँ था । टांगाटोली मतलब चार लड़के चारों हाथ पांवों को पकड़कर किसी को हवा में उछालते हुये लेकर आते थे और वह लड़का बुरी तरह चीखता रहता था । हाथ पांव चलाने की कोशिश करता रहता था । मगर उसके प्रयासों पर पानी फेरकर झूला झुलाते हुये स्कूल तक लेकर आते थे । इसे टांगाटोली कहते थे । गुरुजी ने कह रखा था कि इसे हर हाल में लाना है । कोई बहाना नहीं चलेगा इसका । राजी राजी या गैर राजी, जैसे भी आये ? और अगर इसे साथ नहीं लाये तो तुम लोगों की खैर नहीं, यह भी आदेश का हिस्सा था । मरता क्या ना करता वाली बात हो गई थी । इस धमकी से हम लोग डर गये थे इसलिए आदेश का अक्षरशः पालन करना हमारा धर्म हो गया था ।
जब हम लोग इसके घर पहुंचे तब यह हमको देखकर नौ दो ग्यारह हो गया । हमें महसूस होने लगा कि "काणा मास्टर" शीशम की लौद से मार मार कर हमारी खाल उधेड़ देगा इसलिए इसे हर हाल में पकड़ कर लाना ही होगा । मैंने आव देखा ना ताव , सीधे दौड़ लगा दी फुल स्पीड में । बकरे की मां आखिर कब तक खैर मनाती ? आखिर में आ ही गया बच्चू पकड़ में । और जब पकड़ में आ गया तो दे लात, दे घूंसा , दे थप्पड़, दे चप्पल । अधमरा कर दिया था इसको मैंने । फिर हमारे चारों जांबाजों ने इसके हाथ पैर पकड़े और इसकी बीच बाजार से बारात निकालते हुये टांगाटोली करते हुए स्कूल ले आये । स्कूल तक जाते जाते उन चारों बच्चों का कचूमर निकल गया था जो इसे लेकर आये थे । एक कोने में बैठकर वे लंबी लंबी सांसें लेने लगे ।
उस दिन के बाद से इसने फिर कभी मुझसे पंगा लेने की हिम्मत नहीं दिखाई । मेरा कसरती बदन देखकर इसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती थी । इसके घरवालों के सामने ही उस दिन मैंने इसकी अच्छी खासी धुनाई कर दी थी । इतनी मार खाने के बाद कौन ऐसा पागल कुत्ते का काटा इंसान है जो ऐसा दुस्साहस फिर करेगा " ? रवि विनोद के मजे लेने लगा ।
"बस, उसी दिन से हमारी दोस्ती हो गई । और दोस्ती भी ऐसी हुई कि पूरे स्कूल में हमारी दोस्ती के चर्चे होने लगे" । इस बार विनोद ने दबी हुई जुबान से अपनी बात कही । अब उसे भी पुरानी बातों को बताने में मजा आने लगा । उसने कहा "ये भी कमाल के थे भाभी , बचपन में । मालूम है इन्होंने क्या किया" ?
"अरे बाबा, मुझे कैसे मालूम होगा ? मैं कोई अंतर्यामी तो हूँ नहीं जो हर एक के दिल की बात जान ले ? अब आप भी सुना दीजिए इनकी कारस्तानियां" । मृदुला ने हंसकर कहा । वह भी अब सहज हो रही थी ।
"आप सही कह रही हैं भाभी । आपको कैसे पता होगा ? इनकी कारस्तानियों का कच्चा चिट्ठा खोलता हूँ अभी" । कहकर विनोद हंसने लगा ।
"ओए साले, देख ले तू । फिर तेरा भी कच्चा चिट्ठा खुल जायेगा , हां । सोच समझ कर बोलना प्यारे यहां पर " । रवि ने विनोद को धमकाने की कोशिश की मगर अब विनोद कहाँ रुकने वाला था । कहने लगा " जब हम कक्षा तीन में पढ़ते थे तब रवि कक्षा का मॉनीटर हुआ करता था । एक मास्टर था खिलाड़ी मीणा । बहुत मारता था वह । बिना लात घूंसों के तो बात ही नहीं करता था वह । और तो और लड़कियों तक की पिटाई बुरी तरह से करता था वो । बड़ा निर्दयी था वह । हम सबने उसका नाम "जल्लाद" रखा हुआ था ।
वह हमको गणित पढ़ाता था । एक दिन उसने गणित का एक सवाल दिया था कक्षा में हल करने के लिए । सब बच्चों ने वह सवाल हल कर लिया लेकिन इनसे नहीं हो पाया । मैंने भी समझाने की कोशिश की मगर पता नहीं इनकी अकल तब न जाने कहाँ चली गई थी, समझ ही नहीं आया इन्हें । तब जल्लाद की निगाह इन पर पड़ी और बोला " तू स्लेट लेकर क्या कर रहा है ? अभी तक नहीं किया वह सवाल " ?
ये भला क्या कहते । नीची गर्दन किये चुपचाप बैठे रहे । इस बात से वह जल्लाद और भी चिढ़ गया और उसने इनके हाथ से स्लेट लेकर स्लेट से ही पीठ में मारना शुरू कर दिया । खून निकल आये थे पीठ में । ये तो डकराने लगे थे वहीं पर । जल्लाद ने अपना पूरा नजला इन पर उतार दिया था । इतने में छुट्टी हो गई । ये तो रोये जा रहे थे । हम तीन चार लड़कों ने इन्हें चुप कराने की बहुत कोशिश की मगर ये चुप होने का नाम ही नहीं ले रहे थे । फिर हम तीन चार लड़के इनको लेकर इनके घर आ गये । ये तब तक लगातार रोये जा रहे थे और आंसुओं से अपनी यूनिफॉर्म भिगोये जा रहे थे ।
इनके पिताजी घर पर ही थे । हमने सारा वृत्तांत संक्षेप में कह सुनाया । इससे इनके पिताजी के तन बदन में आग लग गई । आखिर गांव के सरपंच जो थे । ऐसे कैसे मार सकता था कोई उनके लाल को ? लाल पीले होते हुये वे इनको लेकर स्कूल पहुंचे । स्कूल में तब सब मास्टर वॉलीबॉल खेल रहे थे । इनके पिताजी ने तब जल्लाद को खूब गालियां सुनाई । मां बहन सब एक कर दी थी । सब मास्टरों ने उन्हें बहुत समझाया, चुप कराया मगर उस दिन तो उनका पारा सातवें आसमान पर था । खूब गाली गलौज की थी उन्होंने । जमकर भड़ास निकाली । जल्लाद ने जब जंमाफी मांगी तब जाकर शांत हुये थे वे " । विनोद ने चुटकी ली । बहती गंगा में उसने भी हाथ धो लिए थे ।
शेष अगले अंक में
हरिशंकर गोयल "हरि"
17.12.21