रवि की जब आंखें खुली तो उसने अपने आपको एक अस्पताल में पाया । उसके पूरे बदन पर पट्टियां बंधी हुई थी । सिर भी पट्टियों से भरा पड़ा था । यह क्या हुआ, कैसे हुआ यह याद करने की उसने भरपूर कोशिश की मगर उसे कुछ भी याद नहीं आया । सिर में गहरी चोट लगने से शायद वह पिछली बातें भूल गया था ।
नर्स ने उसे होश में देखा तो वह डॉक्टर को बुलाकर ले आईं । डॉक्टर ने उसे देखते हुए मुस्कुरा कर कहा "भगवान का लाख लाख शुक्रिया अदा करो जो तुम बच गए वरना तो मरने का सारा इंतजाम कर लिया था तुमने । पूरे 48 घंटे बेहोश रहे हो तुम । चार बोतल खून की चढ़ानी पड़ी थी तुमको । टांकों की तो गिनती ही नहीं है । पूरे दस घंटे लगे थे तुम्हारी सर्जरी में । खैर., यह तुम्हारा दूसरा जन्म हुआ है । कुछ अच्छे काम किये होंगे तुमने जो तुम सही सलामत जिंदा हो । वरना तो मरने में कुछ भी बाकी नहीं रहा था । अच्छा, पहले ये तो बताओ कि तुम्हारा नाम क्या है" ?
रवि ने अपना नाम बहुत याद किया लेकिन उसे कुछ याद नहीं आया । उसने इंकार में सिर हिला दिया ।
"क्या ? अपना नाम भी नहीं मालूम" ?
इस पर रवि कुछ नहीं बोला
"पिताजी का नाम ? घर का पता " ?
"कुछ भी याद नहीं है" । बड़ी मुश्किल से इतना कह पाया था रवि । सिर में बहुत तेज दर्द होने के कारण वह सिर पकड़ कर लेटा रहा और दर्द से कराहने लगा । डॉक्टर ने उसकी हालत देखकर एक नींद का इंजेक्शन लगाया और नर्स से कहा कि शायद इसकी याददाश्त चली गयीं है इसलिए कोई इससे कुछ भी ना पूछे, यह ध्यान रखना । वरना ये सिर पर ज्यादा जोर डालेगा ।
रवि अगले दस घंटे और सोता रहा । जब वह होश में आया तो उसके बैड के पास एक सज्जन बैठे थे । नर्स ने कहा
"इनसे मिलो , ये अग्रवाल साहब हैं । इन्होंने ही तुम्हें अस्पताल पहुंचाया है और इलाज का सारा खर्च भी यही सज्जन उठा रहे हैं । तीन दिन से ये भी यहीं पर रह रहे हैं तुम्हारी देखभाल करने के लिए" ।
रवि ने अपने "नये भगवान अथवा देवदूत" की ओर देखा । उसकी आंखों से अश्रुधारा बह निकली ।
"अरे रे , ये क्या कर रहे हो ? ना ना , रोते नहीं हैं । तुम तो बहादुर बच्चे हो जो इतनी चोट सहने के बाद भी जीवित बचे हुये हो । क्या तुम अपने किसी परिचित का नाम व पता बता सकते हो जिससे उन्हें यहां बुलवा लिया जाये" ।
रवि ने इंकार की मुद्रा में सिर हिला दिया ।
"कोई बात नहीं , कोई बात नहीं " । अग्रवाल साहब ने उसके कंधे थपथपाते हुए कहा । तुम चिंता मत करो , मैं हूं ना ।
रवि ने मन ही मन भगवान को धन्यवाद कहा जो उन्होंने एक देवदूत को उसे बचाने के लिए भेज दिया ।
धीरे धीरे रवि संजय अग्रवाल के परिवार से परिचित हो गया था । उनकी पत्नी का नाम रेणु था । उनके एक ही बेटी थी जिसका नाम मृदुला था । उसने अभी हाल.ही में कक्षा 10 बोर्ड की परीक्षाएं दी थी । अग्रवाल साहब का लंबा चौड़ा व्यवसाय था ।.समृद्ध परिवार था । भगवान ने उन्हें कोई बेटा नहीं दिया था । मृदुला के होने के पश्चात रेणू के गर्भाशय में कोई समस्या आ गई थी इसलिए डॉक्टर ने रेणु का गर्भाशय निकाल दिया था । इसलिए मृदुला के बाद और कोई बच्चा नहीं हुआ । मृदुला उनकी इकलौती संतान थी ।
रवि के लिए खाना अग्रवाल साहब के घर से ही आता था । कभी अग्रवाल साहब ले आते थी तो कभी रेणु ले आतीं थीं । अग्रवाल परिवार से अपनापन पाकर रवि की हालत में बहुत तेजी से सुधार होने लगा । करीब पंद्रह दिनों के इलाज के पश्चात रवि एकदम से ठीक हो गया ।
"तुम कहाँ जाना चाहोगे रवि" । अग्रवाल साहब ने पूछा ।
इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं था रवि के पास । वह खामोश ही रहा ।
"तुम्हारा कोई अपना नहीं है क्या" ?
रवि ने इंकार में सिर हिला दिया । रवि की आंखों से आंसू निकल पड़े । वह कंपकंपाते हुए बोला
"साहब, आप मुझे अपने घर ले चलो । मैं घर का काम कर दिया करूंगा । बस, मुझे ठहरने और खाने की व्यवस्था कर देना । मैं दर दर की ठोकर नहीं खा सकूंगा, साहब" । रवि की हिलकियां कमरे में गूंजने लगीं ।
अग्रवाल साहब ने रवि के दोनों हाथ अपने हाथों में लेकर कहा "अरे अरे, घबराओ मत । हम तुम्हें ऐसे ही सड़क पर नहीं छोड़ेंगे । मुझे पहले रेणू से बात करनी होगी फिर मैं कुछ बता पाऊंगा । कुछ न कुछ तो इंतजाम हो ही जायेगा । तुम निश्चिंत रहो" । अग्रवाल साहब की बातों से रवि की कुछ चिंता दूर हुई ।
संजय अग्रवाल ने अपनी पत्नी रेणू और पुत्री मृदुला से इस संबंध में बात की तो दोनों ने हां कह दिया । दरअसल कुछ दिनों से उनका नौकर गांव गया हुआ था । घर का काम करते करते रेणू भी परेशान हो चुकी थी । उनके नौकर का कोई भरोसा भी नहीं था कि वह आयेगा भी या नहीं ? तो सबने यह तय किया कि रवि को घर का एक कमरा दे देंगे । वह उसमें रह लेगा और घर का सारा काम भी वह कर लेगा ।
जिंदगी कैसे करवट लेती है, कोई नहीं जानता है । जिस रवि के घर में बिहारी जैसा आदमी नौकर रहता था वही रवि आज किसी के घर में नौकर बनकर काम कर रहा है । इसलिए तो कहते हैं कि समय की लीला बड़ी विचित्र होती है । सब दिन न होते एक सम । कभी खुशी तो कभी गम ।
रवि अग्रवाल साहब के घर आ गया । उसे एक कमरा दे दिया गया । रवि के पास तो कपड़े वगैरह भी नहीं थे । अग्रवाल साहब ने उसे कपड़े वगैरह दिलवाये और जरूरत का दूसरा सामान भी दिलवा दिया । रेणू ने उसे घर का काम करना सिखाना शुरू कर दिया । झाड़ू, पोंछा, बर्तन, कपड़े और खाना । यही तो काम होते हैं घर में । झाडू पोंछा सीखने में आसानी होती है इसलिए लोग बड़ी जल्दी झाड़ू पोंछा सीख जाते हैं । मगर बाकी काम में थोड़ा समय अवश्य लगता है । खाना बनाना सीखने में तो महीनों लग जाते हैं । उन्हें भी ऐसी कोई जल्दी नहीं थी । रेणू ने धीरे धीरे उसे खाना बनाना सिखा दिया ।
रवि का नाम यहां पर कोई जानता नहीं था । रवि ने बताया भी नहीं था इसलिए अग्रवाल साहब ने उसका नाम "शिव" रख दिया । वे बड़े प्यार से उसे शिवा कहते थे । रेणू जी भी उसे शिवा ही कहती थी । रवि ने अपने व्यवहार से अग्रवाल परिवार का दिल जीत लिया था । जो व्यक्ति पहले से रवि को जानता हो और यदि वह अब आकर रवि को देखे तो उसके व्यवहार को देखकर वह यह नहीं कह सकता है कि ये लड़का रवि ही है । कहां तो वह रवि जो लड़कियों का दीवाना हुआ करता था । लड़कियां ही उसकी जिंदगी थी । येन केन प्रकारेण लड़कियां हासिल करना ही उसका मकसद था । वह रवि अब लड़कियों की छाया से भी दूर रहने लगा था । पुराने पापों का दंड मिल गया था शायद उसको । कोई माने या ना माने मगर एक बात तो तय है कि पापों का दंड तो भुगतना ही पड़ता है । कोई उसी जन्म में भुगत लेता है तो कोई अगले जनम में । पर भुगतता जरूर है ।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ पापों का दंड ही भुगतना पड़ता है । अच्छे कामों का फल भी मिलता है । अच्छे कामों पर भी यही बात लागू होती है । उनका फल इस जन्म में भी मिल सकता है और अगले जन्म में भी । कुछ बातें किस्मत के अधीन होती हैं । यदि रवि उस दिन गांव वालों के हाथ आ जाता तो वह जिंदा नहीं बच पाता । कुछ तो मरजी रही होगी कुदरत की जो उसे इस तरह बचाया था कुदरत ने । रवि का भागते भागते रेलवे स्टेशन की तरफ जाना । वहां से उसी समय एक सुपरफास्ट ट्रेन का गुजरना । रवि का उस ट्रेन में चढना । भयानक एक्सीडेंट से बचना और ट्रेन में अग्रवाल साहब का मिलना । शायद कुदरत भी रवि से कुछ न कुछ अच्छा काम करवाना चाहती थी इसीलिए ये सब संयोग रवि के साथ हो पाये थे । पर रवि को कुछ भी याद नहीं । उसे बस इतना याद है कि वह बहुत बीमार था और अग्रवाल साहब ने उसकी जान बचाई थी । रेणु जी से उसे मां का प्यार मिला था । अब सारी जिंदगी उनकी सेवा करने में बितानी है, यह रवि ने सोच लिया था ।
समय अपनी गति से चलता रहता है । तीन वर्ष कब बीत गये, पता ही नहीं चला । मृदुला अब कॉलेज में आ गयी थी । पढने लिखने में तेज थी इसलिए अच्छे अंकों से पास होती थी ।
एक दिन वह कॉलेज से आई थी और घर के अंदर घुसने ही वाली थी कि इतने में "पोस्टमैन" की आवाज ने उसे चौंका दिया । पोस्टमैन ने उसे एक लिफाफा दिया , हस्ताक्षर करवाये और चला गया । मृदुला ने बाहर से लिफाफा देखा तो उस पर रवि नाम लिखा था । मृदुला ने सोचा कि इस घर में तो इस नाम का कोई भी व्यक्ति नहीं है । पोस्टमैन शायद गलती से किसी और का लिफाफा उसे दे गया है । फिर उसने लिफाफे पर अंकित पते को देखा तो वह उनके ही मकान का पता था । वह सोच में पड़ गई । किसक लिफाफा है ये ? रवि तो कोई नहीं है इस घर में । फिर उसने लिफाफे की विंडो में से देखा कि आखिर लिफाफे में क्या है ? लोग तो लिफाफा देखकर मजमून भांप लेते हैं । मृदुला भी मजमून भांपने का प्रयास करने लगी । लग रहा था कि कोई अंक तालिका थी जो गुजरात विश्वविद्यालय से आई थी । उसे कुछ समझ नहीं आया तो उसने वह लिफाफा अपनी मां को दे दिया और कहा "शायद गलत जगह पर आ गया है यह लिफाफा । इसे पोस्टमैन को वापस दे देना । या तो वह सही आदमी तक पहुंचा देगा या फिर वह इसे वापिस गुजरात विश्वविद्यालय को भेज देगा" । रेणू जी भी आश्चर्यचकित थीं उस लिफाफे को देखकर ।
कई दिन बीत गए । रेणू जी उस लिफाफे को पोस्टमैन को देना भूल गईं । वह लिफाफा वहीं पर पड़ा रह गया ।
एक दिन जब डोरबेल बजी तो रेणू जी ने देखा कि पोस्टमैन है कोई चिट्ठी लाया है । रेणू जी ने वह चिट्ठी ले ली और पोस्टमैन को रुकने के लिए कहा कि एक गलत लिफाफा आ गया है उसे वापस ले जाये । उसने उस लिफाफे को बहुत ढूंढा मगर उन्हें वह लिफाफा कहीं नहीं मिला । उन्होंने मृदुला से पूछा तो उसने इंकार कर दिया । बड़ी अजीब सी बात थी । वह लिफाफा आखिर गया तो गया कहाँ ? पूरा घर छान मारा दोनों मां बेटी ने पर वह लिफाफा कहीं भी नहीं मिला । रेणू जी ने शिवा से भी पूछा मगर उसने अनभिज्ञता जाहिर की । रेणु जी ने यह बात अग्रवाल साहब को भी बताई , वे भी आश्चर्यचकित रह गये ।
एक दिन मृदुला घर में अकेली थी । उसने किसी काम से शिवा को आवाज लगाई लेकिन वह नहीं आया । दो तीन बार आवाज लगाने के बाद भी जब शिवा नहीं आया तो मृदुला शिवा को ढूंढती हुई उसके कमरे में चली गईं । उसके कमरे में घुसते ही उसकी नजर सामने रखी टेबल पर पड़ी तो वह चौंक गई । वहां पर वह लिफाफा पड़ा हुआ था जिसे उस दिन रेणू जी और मृदुला ने बहुत ढ़ूंढा था । "यह लिफाफा शिवा के यहां कैसे और क्यों आया" ? वह सोचने लगी । कहीं शिवा रवि तो नहीं है ?
मृदुला शिवा की कहानी के तार जोड़ने लगी । किस तरह शिवा को अपना अतीत याद नहीं था । किस तरह उसका कोई नाम नहीं था । तो क्या शिवा पहले रवि था ? वह लिफाफा उनके घर के पते पर रवि के नाम से आया था । इसका मतलब है कि गुजरात विश्वविद्यालय को जो पता दिया था वह रवि ने ही दिया होगा ।
वह झटपट उस लिफाफे को देखने लगी । बी ए की अंक तालिका थी वह । उसके अनुसार रवि ने 80% अंकों के साथ बी ए की परीक्षा उत्तीर्ण की थी । तो क्या शिवा ने बी ए प्राइवेट पढ़कर की है ? यदि शिवा ही रवि है तो उसने यह बात उनसे क्यों छुपाई थी ? विचारों की श्रंखला दौड़ने लगी थी मृदुला के मस्तिष्क में ।