आवारा बादल (भाग 2) जन्नत
रवि और विनोद दोनों चाय पीने लगे । इसी बीच विनोद ने बताया कि उसका विवाह कान्ता के साथ बीस वर्ष पहले हो गया था । तब रवि IAS की परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था । कान्ता एक घरेलू पत्नी है जिसने उसके छोटे से घर को स्वर्ग बना दिया है । दो बच्चे हैं उसके । बड़ी बेटी रमा BA कर रही है और बेटा शिशिर दसवीं की बोर्ड परीक्षा देने की तैयारी कर रहा है । वे अभी भी अपने गांव सरौली में ही रहते हैं ।
चाय खत्म कर रवि ने चपरासी को गाड़ी लगवाने को कहा तो चपरासी ने बताया कि गाड़ी तो पहले से ही लगी हुई है । आखिर ड्राइवर को भी तो घर जाने की जल्दी थी इसलिए उसने पहले ही गाड़ी लगा दी थी । रवि ने विनोद को इशारा किया और गाड़ी में अपने साथ ही विनोद को बैठा लिया ।
गाड़ी दिल्ली की सड़कों पर रेंगने लगी । दिल्ली में सब कुछ रेंगता है । आदमी, गाड़ी, जिंदगी । जिस तरह सड़क पर गाड़ियों का रेलम पेला है वैसे ही जिंदगी में मुश्किलों का मेला है । ट्रैफिक का ग्रीन सिग्नल भले ही मिल जाये मगर खुशियों का ग्रीन सिग्नल का इंतजार करते करते पूरी जिंदगी गुजर जाती है फिर भी नहीं मिल पाता ग्रीन सिग्नल । जिस तरह प्रदूषित हवा, पानी, भोजन जीवन का अभिन्न अंग बन गया है दिल्ली वासियों का उसी तरह गम, तन्हाई और परेशानियां भी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गये हैं ।
दिल्ली की सर्दी और गर्मी से भी ज्यादा भयावह है दिल्ली का ट्रैफिक । वो तो शुक्र है कि मैट्रो ने बहुत हलका कर दिया है दिल्ली का ट्रैफिक वरना तो पता नहीं क्या हाल होता दिल्ली का ? शाम के छ: बजे से रात के दस बजे तक इतना अधिक ट्रैफिक होता है कि गाड़ी चींटी की तरह से रेंगती हुई सी लगती है सड़क पर । कभी कभी तो लगता है कि पैदल चलकर जल्दी पहुंच सकते हैं लेकिन सरकारी लाल बत्ती वाली गाड़ी का सफर अपने आप में ही अद्भुत है ।
रवि ने अपनी पत्नी मृदुला को फोन पर बता दिया था कि उनके साथ उसका बचपन का यार विनोद भी आ रहा है । इसलिए खाने की तैयारी उसी हिसाब से कर ले और कमरा भी व्यवस्थित करवा दे ।
विनोद यह देखकर मन ही मन बहुत प्रसन्न था कि रवि बिल्कुल नहीं बदला है । अभी भी वह पहले जैसा ही निष्कपट , मासूम, सरल और यारों क यार बना हुआ है । उसे यह बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि वह इस तरह का आत्मीयता वाला व्यवहार करेगा । इतना बड़ा अधिकारी होकर भी इतना विनम्र ? उसे तो लग रहा था कि वह विनोद को पहचानने से ही इंकार कर देगा । आखिर इतना बड़ा अधिकारी जो ठहरा रवि । भारत सरकार में संयुक्त सचिव होना कोई मामूली बात तो नहीं है ? कहाँ एक संयुक्त सचिव और कहां एक अध्यापक !
रवि की आत्मीयता ने विनोद का मन बहुत हलका कर दिया था । वरना उसने तो मन ही मन बचपन की बहुत सारी घटनाएं रट ली थी कि यदि रवि उसे पहचान नहीं पायेगा तो वह इन घटनाओं को याद दिलाकर पहचानवाने की प्रक्रिया करेगा । मगर यहां तो ऐसा कुछ भी नहीं हुआ ।रवि की दोस्ती पर अब उसे नाज होने लगा । काश कि सभी दोस्त रवि जैसे हों । कितनी अहमियत दी थी रवि ने उसे ! यह सोचकर उसके होठों पर एक मधुर मुस्कान तैर गई ।
दोनों यार आखिरकार घर पहुंच ही गये । मृदुला इंतजार कर रही थी उनका । रवि ने विनोद का परिचय मृदुला से करवाते हुये कहा "इनसे मिलिए । ये हैं मेरे "नेकरिया यार" विनोद शर्मा । नेकरिया यार शब्द से चौंक मत जाना । हम दोनों तब के दोस्त हैं जब हम लोग नेकर पहनते थे । कहने को तो "लंगोटिया यार" शब्द ज्यादा प्रचलित है पर आजकल लंगोट पहनता ही कौन है ? हमने भी बस एक साल तक ही पहनी थी लंगोट । सभी बच्चे लगभग एक साल तक ही लंगोट पहनते हैं , तो हमने भी तब तक ही पहनी होगी । मगर तब का तो हमें कुछ पता नहीं है क्योंकि एक साल तक के बच्चे को तो भूख के सिवाय और कुछ पता नहीं होता है ना । बाकी बातें तो घरवाले बताते हैं । इसलिए "लंगोट काल" के बारे में हमें भी कुछ याद नहीं है । जब हम लंगोट पहनते थे तब तो हम दोस्त बने नही थे अतः इन्हें हम लंगोटिया यार तो कह नहीं सकते इसलिए 'नेकरिया यार' कहकर काम चला लेता हूं । मेरे सभी मित्र या तो नेकरिया यार हैं या फिर पैंटिया यार । रवि ने मृदुला को यह समझाने की कोशिश की कि वे दोनों बचपन में गहरे दोस्त रहे हैं ।
"ठीक है , पहले मुंह हाथ धो लीजिए । खाना ठंडा हो जायेगा । जल्दी से डाइनिंग टेबल पर आ जाइये" । मृदुला ने किचन में जाते हुये कहा ।
विनोद रवि की "कोठी" देखकर चकरा गया । कितनी विशाल कोठी है यह और कितनी आलीशान भी । बड़े बड़े पांच कमरे । ड्राइंगरूम, लिविंगरूम , स्टोर वगैरह सब कुछ है इसमें । और तो और एक ऑफिस भी बना हुआ था । नौकरों के रहने के लिए अलग से कमरे बने हुये थे । कोठी पूरी फर्निश्ड थी । सब कुछ सरकारी । अपने तो बस कपड़े वगैरह थे । यहां तक कि बिजली का बिल भी सरकार ही भरती थी । आखिर घर में ऑफिस इसीलिए बनाया जाता है जिससे बिजली का बिल ऑफिस के नाम पर सरकारी खजाने से भरा जा सके । नौकरशाहों का दिमाग ऐसे ही थोड़े ना चलता है । तीन तीन चार चार नौकर चाकर । खाना बनाने वाला अरग और झाड़ू पोंछा वाला अलग । बर्तन, कपड़े वाला अलग ।
घर में तीन तीन सरकारी गाड़ियां थीं । रवि के लिए अलग । पत्नी मृदुला के लिए और बच्चों के लिए अलग अलग । सब कुछ सरकारी । गाड़ी, ड्राइवर, पेट्रोल और मरम्मत वगैरह । राजा महाराजाओं से ठाठ होते हैं IAS अफसरों के । तभी तो कोई आदमी IAS बनना पसंद करता है । अंग्रेज तो चले गये और अपने प्रतिनिधि के रूप में IAS छोड़ गये । इन्होंने भी अंग्रेजी परंपरा का पूरी तरह निर्वाह किया है । भारतीयता का जितना ह्रास IAS ने किया है उतना तो अंग्रेजों ने भी नहीं किया था ।
विनोद जल्दी से हाथ मुंह धोकर डाइनिंग टेबल पर आ गया । रवि भी फ्रैश होकर डायनिंग टेबल पर आ गया । मृदुला ने खाना लगा दिया था । खाना भी देसी अंदाज का ही बनाया था आज । रवि को मालपुए, खीर बहुत पसंद थी । मक्की की रोटी, सरसों का साग लोनी घी के साथ परोसा गया । मजा आ गया शुद्ध देसी खाना खाकर । विनोद को तो जैसे यह सब कुछ सपना सा लग रहा था । शायद इसी को जन्नत कहते होंगे , ऐसा सोच रहा था विनोद । उसे अपना जीवन तुच्छ लगने लगा ।