रवि की आंखों से नींद गायब हो गई । वह सोच में पड़ गया कि वह लड़की कौन हो सकती है ? पिंक कलर का सूट किसने पहना था आज ? दिमाग पर काफी जोर देने के बावजूद उसे कुछ याद नहीं आया । तब उसे महसूस हुआ कि लड़के लोग कपड़ों पर कहाँ ध्यान देते हैं ? ये तो लड़कियां ही होती हैं जो न केवल कपड़े बल्कि चूड़ी, कंगन, बिंदी, गहने सब पर ध्यान देती हैं । आज उसे अहसास हुआ कि लड़कियां इतनी खास क्यों होती हैं ।
उसके दिमाग में षड़यंत्र चलने लगा । क्यों न उस लड़की को ब्लैकमेल किया जाये ? जब ऐसा मौका कुदरत ने दिया है तो फिर इसका लाभ उठाना ही बुद्धिमानी है । ऐसे अवसर रोज रोज थोड़े ना आते हैं ? और वह चाहता क्या है ? थोड़ी सी मौज मस्ती ही ना । इसमें उसे कोई हर्ज नहीं होना चाहिए । इतनी सी तो इच्छा है उसकी । वैसे , इच्छाओं का क्या है ? अथाह समुद्र है । जितना मिल जाये उतना कम है । खेल खेल में अगर कुछ मिल रहा हो तो उसे लेने में क्या बुराई है ?
उसके दिमाग में एक सरगोशी सी उठी "अगर कहीं कुछ गलत हो गया तो ? अगर उसने मामीजी को बता दिया तो ? अगर खेल उल्टा पड़ गया तो " ?
"इसमें उल्टा क्या होगा ? आज तक तो ऐसा हुआ नहीं । और अगर होगा तो देखा जायेगा" । मन ने कहा । रवि ने खेल खेलने का मन बना लिया तब जाकर उसे नींद आई ।
सुबह मामीजी चाय का कप लेकर उसके पास आई तब वह जागा । उसने मामीजी के चरण स्पर्श किये और मामीजी की नजरों में अपने नंबर बढवा लिये । मामीजी प्रसन्न हो गयीं ।
चाय पीकर फ्रेश होकर वह आंगन में आ गया । तब तक सब लोग चाय वगैरह लेकर आंगन में आ गये थे और अपना अपना काम कर रहे थे । मेहमान गप्प लगाने और अखबार पढ़ने में मशगूल थे ।
रवि की खोजी निगाहें पिंक कलर के सूट को ढूंढ रही थी । वहां पर कई लड़कियां थीं मगर पिंक कलर वाली कोई नहीं थी । वह निराश हो गया । लगता है कि वह अंधेरे के कारण ढंग से देख नहीं पाया था । उसे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था । एक छोटा सा काम भी सही ढंग से नहीं कर पाया था वह । उसे अपने आप पर बहुत अफसोस हुआ । उसकी सारी योजना पर पानी फिर रहा था । वह थोड़ा अपसेट हो गया था ।
काफी देर तक आंगन में बैठे बैठे वह बोर हो गया था । कब तक इंतजार करे वो ? जागती आंखों से देखा जो ख्वाब देखा था वह टूटता सा लगा । चल बेटा , यहां क्या कर रहा है । नहा ले । नहा धोकर तैयार होने के लिए जैसे ही वह खड़ा हुआ तो उसने देखा कि पिंक कलर के सूट में एक लड़की चली आ रही है । रवि की बाछें खिल गई । उसने पहचान लिया कि यह वही सूट था जो रात में उसने देखा था । यह तो मामीजी की कोई रिश्तेदार लगती है । उसने बातों बातों में पता कर लिया कि वह मामीजी की दूर की बहन लगती है । नाम है रीना । बी ए कर रही है अभी । रवि के चेहरे पर मुस्कान खेलने लगी । आंखों में चमक आ गई ।
रवि नहा धोकर नाश्ता करने आ गया था । अब सब लोग तैयार होकर नाश्ता ले रहे थे । रीना मामीजी का हाथ बंटा रही थी । और भी लड़कियां और औरतें थीं जो घर का काम निपटा रही थीं । रवि ने वह दुपट्टा अपने पैंट की जेब में रख लिया था ।
धीरे धीरे लोग नाश्ता करके काम पर जाने लगे । आंगन में कम लोग रह गये थे । मामाजी ने रवि को दो चार काम बता दिये । रवि उन कामों को करने से पहले रीना तक संदेश पहुंचाना चाहता था । उसने अपने पैंट की जेब से दुपट्टा थोड़ा सा बाहर निकाला और किचन में पानी पीने के लिए गया । वहां रीना ने उस दुपट्टे को देख लिया और आश्चर्य से उसने रवि को देखा । रवि बिना उसे देखे किचन से बाहर आकर ऊपर छत पर चला आया ।
उसने महसूस किया कि रीना भी उसके पीछे पीछे आ रही थी । छत पर आकर वह धूप में बैठकर आसमान में खेलते बादल देखने लगा । इतने में रीना वहां आ गयी ।
"ये गुलाबी दुपट्टा मेरा है, मुझे दीजिए" । रीना ने कोमल शब्दों में आग्रह पूर्वक कहा ।
रवि को आज किसी लड़की से इस तरह पहली बार बात करने को मिल रहा था । उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा । उसे रीना की आवाज बहुत मधुर लगी थी । दिल को भा गयी उसकी आवाज । रवि ने बिना उसकी तरफ देखे ही कहा
"आपके पास क्या सबूत है कि यह आपका ही दुपट्टा है" ।
"मैं कह रही हूं न । बस यही सबूत है"
"अच्छा जी । आप कहें और हम मान लें ? इतने भी भोले भंडारी नहीं हैं हम"। रवि पूरी ढिठाई से बोला "अच्छा यह बताइये कि आपने इसे कहाँ रखा था" ?
इस पर वह थोड़ी घबराई फिर कहने लगी "मुझे याद नहीं है"
"अगर आप हुक्म करें तो हम बता सकते हैं"
"जी, आप ही बता दीजिए फिर" । रीना भी अब मजाक के मूड में आ गई थी ।
"तो सुनिए मेमसाहब । आप रात को एक कमरे में घुसीं थी । आपके साथ एक लड़का भी था । फिर चूमा चाटी का खेल चला। थोड़ी छीना झपटी भी हुई तब आप बाहर भाग गई और इस छीनाझपटी में ये दुपट्टे महाराज वहीं विराजे रह गए" । रवि ने एक ही झटके में सब सस्पेंस खत्म कर दिया ।
रीना यह सुनकर अवाक् रह गई । उसे तो सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि उसकी चोरी पकड़ी जायेगी । इसका मतलब है कि रवि ने वह सब कुछ देखा है जो कल रात हुआ था । यह कहाँ था ? वहां तो घुप्प अंधेरा था, रीना सोचने लगी । कहीं यह तुक्का तो नहीं मार रहा है ? यह सुनिश्चित करने के लिए उसने कहा
"ऐ मिस्टर ! ये क्या बदतमीजी है ? क्या क्या अनाप शनाप बोले जा रहे हो , कुछ पता भी है" ?
"हां, पता है । पर यह अनाप शनाप नहीं है , सत्य है । आप जब कमरे में घुसी थीं तब मैं सो रहा था । आपके आने से मेरी नींद खुल गई थी और मैंने सब कुछ देख लिया और सुन भी लिया" । रवि अब अपनी योजना के अनुसार काम कर रहा था
यह जानकर कि रवि ने वह सब देखा और सुना है, रीना थर थर कांपने लगी । बड़ी मुश्किल से कह पायी
"मेरा दुपट्टा मुझे वापस दे दीजिए न" । बड़े ही कातर शब्दों में कहा था रीना ने ।
"दे देंगे , दे देंगे । हम क्या करेंगे इसे अपने पास रखकर । लेकिन ऐसे कैसे दे देंगे , आखिर इतना कीमती जो है "। पूरी सौदेबाजी के मूड में था रवि
"क्या चाहिए आपको" ?
"बहुत कुछ"
"फिर भी"
"खुद ही समझ जाइये । जितना 'उसे' दिया उससे कहीं ज्यादा चाहिए" ।
"शैतान लड़के ! अभी उम्र नहीं है इन सबकी । पढने की उम्र है अभी आपकी " ।
"और आपकी" ?
इस पर रीना संकोच से सिमट सी गई । फिर साहस जुटाकर बोली । "मैं तो कॉलेज में पढ़ती हूं मगर तुम तो अभी बच्चे हो । ज्यादा चीं चपड़ करोगे तो मैं दीदी को कह दूंगी " ।
"तुम क्या कहोगी मामीजी से , मैं खुद ही जाकर मामीजी को कह देता हूँ । रात की सारी घटना बता देता हूँ और यह दुपट्टा भी उन्हें दे देता हूँ" । रवि ने पूरी दृढता से कहा और रीना की आंखों में सीधे देखा । "और हां, इतना छोटा भी नहीं हूँ मैं" ।
कहते हैं कि चोर के पैर कमजोर होते हैं । रीना के साथ भी ऐसा ही था । वह एकदम से घबड़ा गयी और जल्दी से बोली "दीदी से मत कहना नहीं तो मेरा कबाड़ा हो जायेगा । प्लीज" ।
"ठीक है । तो मेरा ईनाम" ?
"ऐसे कैसे दे दूं यहां ? सबके सामने" ।
"तो फिर जगह और समय बताओ" । रवि को खुद पर विश्वास नहीं हो रहा था कि वह इस सफाई के साथ यह "डील" पूरी कर लेगा । जीत की चमक आ गयी थी उसके चेहरे पर ।
"मैं फिर सोचकर बताऊंगी । लाओ, अब तो मेरा दुपट्टा मुझे वापस कर दो" ।
"पागल समझा है क्या मुझे ? पहले ईनाम फिर दुपट्टा" । रवि ने साफ कर दिया कि ब्लैकमेल के धंधे में उधारी नहीं चलती है ।
रीना पशोपेश में पड़ गई । थोड़ी देर सोचने के बाद वह बोली
"क्या मेरा विश्वास नहीं है आपको" ?
"बात विश्वास की नहीं , ईनाम की है । पहले ईनाम फिर विश्वास"।
"अच्छा ठीक है । मै दोपहर तक बताती हूँ" । और वह चली गई ।
रवि को विश्वास ही नहीं हुआ कि ऐसा भी हो जाएगा । उसे तो लगा था कि कहीं ऐसा ना हो कि वह मामीजी को कुछ इधर उधर की लगाकर उस पर ही कोई इल्जाम ना मढ़ दे । पर होनी को तो कुछ और ही मंजूर है शायद ।